मध्‍य प्रदेश में सोमवार को हुए विधानसभा चुनाव के लिए रिकॉर्ड 71 फीसदी मतदान हुआ. बढ़े हुए वोट प्रतिशत को सियासी पार्टियां अपनी सुविधा के अनुसार परिभाषित कर रही हैं लेकिन ये मानने से किसी को गुरेज़ नहीं होना चाहिए कि मतदाता जागरूक हो गया है और यह लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत है.


अचरज की बात यह है कि लगभग आधा दर्जन से ज़्यादा विधानसभा सीटों पर 80 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट पड़े हैं.सबसे ज़्यादा 83 फ़ीसदी वोट होशंगाबाद और श्योपुर ज़िले में पड़े और सबसे कम 54 फ़ीसदी वोट सतना ज़िले में.लेकिन असल में ज़्यादा वोटिंग के ज़मीनी मायने क्या हैं.ज़ाहिर है कि राजनीतिक दलों के लिए मायने उनके नफ़ा-नुक़सान पर आधारित है. इस बार राज्य में युवा मतदाताओं की संख्या ग़ौर करने लायक थी.युवाओं में उत्साहगुप्ता एक और तर्क देते हैं. वे कहते हैं, “मध्य प्रदेश में आश्चर्यजनक रूप से 28 प्रतिशत नए मतदाता पंजीकृत हुए, जबकि पूरे देश में इसका औसत आठ से 12 प्रतिशत के बीच रहा था. हमने इसकी जांच की मांग की थी. हमने समय रहते चुनाव आयोग से इसकी शिकायत भी की थी.”


राजनीतिक विश्लेषक गिरिजाशंकर कहते हैं, “वोट प्रतिशत का बढ़ना अप्रत्याशित नहीं है. पहले आमतौर पर 45 से 50 फीसदी तक ही वोटिंग हो पाती थी. ऐसे में यदि कभी मत प्रतिशत का आंकड़ा 60 फीसदी तक हो जाता था तो उसे व्यवस्था विरोधी वोट माना जाता था. अब यह धारणा बदल गई है. अब 70 फीसदी मतदान को सामान्य माना जाता है.”

वे कहते हैं, “बस्तर जैसे आदिवासी और नक्सल प्रभावित क्षेत्र में इस बार 80 फ़ीसदी से ज़्यादा मतदान हुआ. इसे आप क्या मानेंगे.”स्थानीय पत्रकार राजेश चतुर्वेदी की राय भी कमोबेश ऐसी ही है. वो कहते हैं, “मतदान प्रतिशत में बढ़ोतरी लोकतंत्र में नागरिकों के बढ़ते विश्वास का परिणाम है. इसे किसी के खिलाफ या किसी के समर्थन के साथ जोड़ना ग़लत है.”

Posted By: Subhesh Sharma