कभी ब्लै‍क मनी कभी जन लोकपाल और कभी भ्रष्टाचार को लेकर अपोजीशन से लेकर अन्ना और रामदेव तक सब सरकार पर आरोप लगाते रहे हैं. बिना राइट आईडी के मेल की तरह हर चीज अब तक बाउंस बैक होती दिख रही है. क्या वाकई सरकार इनोसेंट है या कमी कहीं ना कहीं इन सारे मूवमेंट ही रह गयी.

आप यानि कामन मैन जो इस सारे मामले में सबसे ज्यांदा इन्वाल्व और इफेक्ट होते हैं क्या सोचते हम आज यही जानना चाहते हैं। लगभग सवा साल पहले अन्ना जन लोकपाल बिल की मांग को लेकर भारी पब्लिक सर्पोट के साथ सरकार के सामने आए। उस समय उनके और उनकी टीम के तेवर देख कर लगा कि बदलाव दरवाजे पर दस्तक दे रहा है सिर्फ दरवाजा खुलने की देर है। पर जैसे जैसे समय बीता टीम के कांटिडिक्टरी स्टेटमेंटस और ढेर सारी अलग अलग मांगों के चलते बेसिक डिमांड कहीं गुम हो गयी जिसके चलते मूवमेंट का जैसे बेस ही खिसक गया।

इन सारी बातों के चलते जो गवरमेंट अब तक टीम अन्ना के प्रेशर में नजर आ रही थी अचानक बेहद स्ट्रांग नजर आने लगी जिसका डायरेक्ट असर मूवमेंट के सेंकेंड फेज पर पड़ा और अनशन तो बिना किसी मुकाम तक पहुंचे खत्म हुआ ही अन्ना को वो डेक्लेरेशन करना पड़ा जिसको उन्होंने लास्ट ऑप्शन के तौर पर भी एक्सेप्ट करना मंजूर नहीं था। यानि अन्ना को टीम अन्ना को डिजाल्व करके पॉलिटिकल पार्टी बनाने के लिए राजी होना पड़ा।

इस डिसीजन से पब्लिक और अन्ना के लाखों सर्पोटर्स हर्ट हुए और उनसे दूर हो गए। इसके बाद उन्हीं के कई सहयोगियों ने यह भी कहा कि अन्ना ने यह डिसीजन प्रेशर में लिया वे पार्टी नहीं बनाना चाहते थे। सवाल यह है कि प्रेशर किसका था उनकी टीम का, लोगों की भलाई का या फिर सरकार का जिसने उनके मूवमेंट के सेकेंड फेज को कतई इग्नोर कर दिया जिसके चलते अन्ना को इस बार कोई चांस नहीं मिला कि वो किसी किस्म का प्रेशर क्रिएट कर पाते। बिना किसी डाउट के अन्ना एक अच्छे इंसान हैं और दिल से ईमानदार हैं पर क्या सिर्फ ऑनेस्टी ही इस फाइट में उनको सर्पोट कर सकती थी। जवाब आपको तलाशना है.

दूसरी ओर बाबा रामदेव हैं जिनका कहना है कि ब्लैक मनी के रूप में विदेशों में जमा इंडियन मनी को वापस अपनी कंट्री में लाया जाए। इस बात को लेकर जब फर्स्टे टाइम दिल्ली के रामलीला ग्राउंड पर अपना मूवमेंट शुरू करने का एलान किया तो आधी रात को ही उन्हें लेडीज आउटफिट में वहां से भागना पड़ा। सेकेंड टाइम जब वे 9 अगस्त को वापस रामलीला ग्राउंड पहुंचे तो अन्ना सरकार की उपेक्षा और इंटरनल डिस्यूकट का शिकार हो कर फेल हो चुके थे। खुद रामदेव उनसे डिस्टेंस बना कर रखना चाहते थे। उन्होंने शुरू से ही डिफेंसिव हो कर काम शुरू किया। पहले सरकार का डायरेक्ट विरोध करने से खुद को बचा कर रखा, दूसरे पहले ही क्लियर कर दिया कि वे अनलिमिटेड और टोटल फास्ट ना करके तीन दिन का सिंबालिक अनशन करेंगे। उसके बाद तीसरे दिन हालात का रुख भांप कर अपनी स्ट्रेटिजी डिस्लोकज करेंगे। तीन दिन बीत चुके हैं अनशन आज खत्म हो जाएगा और स्ट्रेटिजी का अब तक कुछ पता नहीं और सरकार ने उन्हें भी पूरी तरह इग्नोर किया हुआ।
आखिरी एंगल सरकार है जो पहली बार तो अन्ना के प्रेशर में दिखाई दी पर दूसरी बार उसने उनको कतई नोटिस में नहीं लिया ओर यही रवैया उनका रामदेव के साथ रहा। कुछ मिनिस्टर्स और पॉलिटिकल लीडर्स की ओर से सटायरिकल स्टेरटमेंट आते रहे लेकिन पी एम, सोनिया गांधी और राहुल गांधी की ओर से किसी तरह का कोई कमेंट नहीं आया और किसी भी किस्म की कंट्रोवर्सी क्रिएट नहीं हुई जिससे मामला गरम रहता और मूवमेंट को अटेंशन मिलता। नतीजा यह हुआ कि जिस आंदोलन पर सक्सेज की नयी इबारत लिखने की बात की जा रही थी वह अपने आप अपनी मौत मरता लग रहा है।

Posted By: Inextlive