एक बड़ा goal तो सभी बनाते हैं लेकिन उसे achieve करने के लिए action बहुत कम लोग ही ले पाते हैं. ऐसा क्यों होता है कि goal और planning तय करने के बाद मामला action पर अटक जाता है. आइए तलाशते हैं उन वजहों को जो आपको action लेने से रोकते हैं...


हो सकता है कि आप जीनियस हैं लेकिन ये भी हो सकता है कि आपका रिजल्ट हमेशा एवरेज आता हो. कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप ऑर्डिनरी हैं या एक्स्ट्राऑर्डिनरी अगर आप एक्शन लेने के रास्ते में आने वाली कुछ रुकावटों को हटा दें तो आप एक बेहतर अचीवर हो सकते हैं.Having wish not a goal ज्यादातर लोगों के पास केवल विश होती है, गोल नहीं. ह्यूमन साइकोलॉजी के मुताबिक आप विश पूरी करने के लिए एक्शन नहीं लेते बल्कि एक्शन हमेशा गोल अचीव करने के लिए लेते हैं.


क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट दीपक नंदवंशी कहते हैं, ‘दरअसल जब आप यह कहते हैं कि मुझे डॉक्टर बनना है तो यह विश है लेकिन जब आप यह कहते हैं कि मुझे 2012 का मेडिकल एंट्रेंस टेस्ट क्वॉलिफाई करना है तो यह गोल है. विश पूरी करने के लिए आप प्लानिंग करते हैं जिसके बाद एक गोल तय होता हैं.’ Your take: हां, ये जरूर है कि गोल का फस्र्ट स्टेप विश होती है लेकिन विश पूरी करने के लिए ऐसी प्रैक्टिकल प्लानिंग बनानी होगी, जिस पर एक्शन लेना आसान हो.Absence of burning desire      

सबसे पहले यह देखना होगा कि आपने जो गोल तय कर रखे हैं क्या वाकई उसे लेकर आपके अंदर डिजायर है. अगर यह आपके मस्ट हैव में शामिल नहीं है तो इसके लिए एक्शन लेना मुश्किल होगा. मुम्बई में एक एड पीआर कम्पनी के डायरेक्टर अरविंद माहेश्वरी कहते हैं, ‘उन लोगों की भीड़ से बाहर निकलना होगा जो आपको अपने गोल के बारे में बताते हैं और पांच मिनट बाद उन्हें याद तक नहीं होता कि उन्होंने आपसे क्या कहा था.’ साइकोलॉजिस्ट दीपक नंदवंशी कहते हैं, ‘अगर आप आईएएस बनना चाहते हैं, एक बिजनेस स्टार्ट करना चाहते हैं या फिर एक अच्छा घर बनवाना चाहते हैं तो आपके सोचने का तरीका और लाइफस्टाइल आपकी ड्रीम के मुताबिक होनी चाहिए और यह तभी पॉसिबल है जब आपका अपने गोल से लगाव हो.’ Your take: अगर अपने गोल को लेकर आपमें डिजायर नहीं है गोल को चेंज करने की जरूरत है. Enjoying comfort zoneयह कुछ ऐसा ही है कि ज्यादातर लोग एग्जाम की तैयारी साल भर नहीं करते हैं लेकिन आखिरी महीनों में ऑटोमैटिकली कम्फर्ट जोन से बाहर आ जाते हैं.

आप नया टारगेट तय करते हैं तो आपको कुछ एक्स्ट्रा एफर्ट करना होता है. इसके लिए कम्फर्ट जोन से बाहर आना होगा. दीपक कहते हैं, ‘अगर आप सिर्फ एंग्जॉयटी प्रेशर में काम करते हैं तो आप पूरी तरह से कम्फर्ट जोन में हैं. इससे निकलना होगा.’Your take: इसके लिए खुद को मोटिवेट करना होगा. बेहतर होगा कि बड़े गोल को छोटे गोल में बांट लें. छोटे-छोटे गोल को अचीव कर खुद को मोटिवेट करें. Fear of failureहम फेल ना हो जाएं, इस बात से हम इतना डर जाते हैं कि एक्शन लेने से ही कतराने लगते हैं. हो सकता है कि फेल होने के बाद आपको फैमिली, फ्रेंड और सोसाइटी की ओर से क्रिटिसाइज किया जाए, लेकिन इससे एक्शन लेना नहीं छोड़ा जा सकता. अमेरिकन स्पीकर और ऑथर जिम रॉन के शब्दों में, ‘आप किसी एक गलती से रात भर में फेल नहीं हो जाते, बल्कि आप की रोजाना की कई ऐसी गलतियां होती हैं जो रिपीट होती रहती हैं और आपको फेल्योर बनाती हैं.’ कहने का मतलब फेल होने से डरने के बजाय गलतियों के रिपीटिशन से बचें. Your take: डायरी में रोजाना किसी एक फेल्योर के बारे में लिखें और एनालाइज करें कि इससे आपने क्या सीखा. फेल्योर कोई वर्ड नहीं होता बल्कि एक्सपीरियंस होता है.Low self-esteem
कई लोग यकीन नहीं कर पाते कि वे भी कुछ हासिल कर सकते हैं और वे हमेशा दूसरों को फॉलो करते हैं. इसी वजह से वे किसी काम की शुरुआत नहीं करते. यह समझना होगा कि हर किसी में यूनीक टैलेंट होता है और कोई भी फेल्योर नहीं होता बल्कि ये हम होते हैं जो खुद को फेल्योर समझते हैं. Your take: आप अपनी स्टे्रेंथ को रिकग्नाइज कीजिए और ऐसे काम में खुद को इन्वॉल्व कीजिए जहां स्ट्रेंथ यूज कर सकें. आप खुद को सरप्राइज कर सकते हैं.

Posted By: Surabhi Yadav