Meerut : मेडिकल कॉलेज की एंबुलेंस को कहीं किसी की नजर न लग जाए शायद इस डर से उन्हें नजर बंद करके रखा गया है. डर है कहीं एंबुलेंस सड़क पर निकाली तो बीमार न हो जाए. कॉलेज में इनको संभाल कर रखा गया है और प्राइवेट एंबुलेंस को चलवाया जा रहा है. इतना ही नहीं एंबुलेंस को रखने के लिए अब इमारत का भी निर्माण कराया जा रहा है.


दर्जन भर ambulanceवैसे तो सरकार ने गरीबों के इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज को दर्जन भर एंबुलेंस दी हुई हैं। पर, शायद ही मेडिकल कॉलेज में किसी को याद हो कि आखिरी बार ये एंबुलेंस सड़क पर कब दौड़ी थी। अब ये एंबुलेंस प्राइवेट वार्ड के पीछे के गैराज में खड़ी हैं। हालात ये हैं कि इनके इंजन तक में जंग लग चुका है, लगता है जैसे स्पाईडर मैन ने अपनी सारी वेब इन्हीं पर चिपका दी है। एंबुलेंस नुमा डिब्बे के भीतर के तमाम अंजर-पंजर और मशीने सालों पहले ही ठिकाने लगा दिए गए हैं।क्यों छुपाई गईं


मेडिकल कॉलेज ने अपनी एंबुलेंसों को कंडम घोषित कर दिया है, लेकिन हकीकत यही है कि प्राइवेट एंबुलेंस का बिजनेस बढ़ाने के लिए ही सरकारी एंबुलेंस छुपा कर रखी गई हैं। मेडिकल कॉलेज में हर समय करीब पंद्रह-बीस प्राइवेट एंबुलेंस खड़ी रहती हैं। मेडिकल इमरजेंसी में रोज करीब चालीस केस आते हैं, जिनमें से अधिकतर को प्राइमरी ट्रीटमेंट के बाद प्राइवेट हॉस्पिटल्स में रेफर किया जाता है। तीमारदारों से एंबुलेंस लाने को कह दिया जाता है। जब इंतजाम नहीं हो पाता तो इमरजेंसी का स्टाफ अहसान दिखाते हुए इनमें से किसी एंबुलेंस से डील करा देते हैं। इसके लिए इमरजेंसी स्टाफ को बंधा कमीशन दिया जाता है। जो नीचे से ऊपर तक सभी में बंटता है।यहां छुपी हैं ambulanceमेडिकल कॉलेज में कई एंबुलेंस हैं, जिन्हें छुपा दिया गया है। इन्हें प्राइवेट वार्ड्स के पीछे बने गैराज में छुपाया गया है। इसके अलावा गल्र्स हॉस्टल के पास भी कुछ एंबुलेंस खड़ी हैं। इनमें से कुछ तो खड़े-खड़े कंडम हो चुकी हैं और कुछ कंडम होने की कगार पर है। मेडिकल कॉलेज की ओर से इन्हें खराब बताया जा रहा है। इनके साथ ही प्रिंसीपल के आधिकारिक आवास में भी कंस्ट्रक्शन का काम हुआ है यहां भी एंबुलेंस को छुपाया जाने लगा है। आई नेक्स्ट के पास कंस्ट्रक्शन के दौरान के फोटोग्राफ भी हैं।कौन प्रभावित हैइस नेक्सस का सीधा असर गरीब मरीजों पर पड़ता है। उन्हें न चाहते हुए भी हजारों रुपए सिर्फ एंबुलेंस पर ही खर्च करने पड़ते हैं, और रात में तो इनकी दबंगई चलती है। रात को ये अपने रेट्स दो से तीन गुना कर देते हैं। उसमें भी सामने वाले की शक्ल और हैसियत देखी जाती है। इसी के हिसाब से रेट लगाए जाते हैं।सब कुछ ऑन डिमांड

सूत्रों के मुताबिक सभी एंबुलेंस ड्राइवरों के नंबर इमरजेंसी स्टाफ के पास होते हैं। जब भी कोई कस्टमर आता है तो इनको बुलाया जाता है। एक चक्कर के एक से डेढ़ हजार रुपए लिए जाते हैं। दिन में कम से कम चालीस मरीज रेफर कर दिए जाते हैं। इस हिसाब से दिन का चालीस हजार से साठ हजार और महीने का 18 लाख रुपए बन जाते हैं। इसमें से चालीस परसेंट का स्टाफ को जाता है। ये भी करीब सात लाख के आसपास बैठता है।मरीजों के लिए नहीं है येमेडिकल कॉलेज में कंडम हालत तक पहुंचने वाली ये एंबुलेंस कभी नई थीं, जिनका कभी इस्तेमाल ही नहीं किया गया। ये एंबुलेंस कभी मरीजों को लाने-ले जाने के काम नहीं आईं। बल्कि मरीजों को प्राइवेट एंबुलेंस का सहारा लेना पड़ता है और इसी वजह से मेडिकल कॉलेज में इन प्राइवेट एंबुलेंस का कारोबार फल-फूल रहा है।

Posted By: Inextlive