क्यों रह गए संजीव कुमार कुंवारे?
मेरी मां उन्हें राखी बांधती थी. कई बार वो राखी के वक़्त लंदन में होतीं तो राखी भेज देतीं तो उनके बदले मैं हरि को राखी बांधती थी.इस नाते वो मेरा मामा भी थे, भाई भी और दोस्त तो ख़ैर थे ही.वो बहुत कम बोलते थे. लेकिन उनका सेंस ऑफ ह्यूमर कमाल का था. वो मुझे राखी में कभी रुपए तो कभी महंगी साड़ियां तोहफे में देते थे.
मैं उनसे अक्सर कहती, "ऐसे तो तुम कुंवारे ही मर जाओगे. ऐसा थोड़े ना होता है. किसी एक औरत पर तो भरोसा करो."ऐसे ही वो एक महिला को खासा पसंद करते थे. लेकिन शायद उस अफेयर में भी उनका दिल टूटा. एक ये वजह भी थी उनके बीमार पड़ने की.
वो अपने आख़िरी दिनों में बेहद शांत हो गए थे. किसी से मिलते जुलते नहीं थे.प्यार और प्रॉपर्टी के मामले में हरिभाई कभी भी भाग्यशाली नहीं रहे. जब भी वो फ्लैट खरीदने का सोचते उनके पास कुछ पैसे कम पड़ जाते.आखिरकार उन्होंने जुहू में एक प्रॉपर्टी खरीदी. लेकिन उसका सुख नहीं भोग पाए. वहां शिफ्ट होने से पहले ही उनकी 6 नवंबर 1985 को 47 साल की उम्र में मृत्यु हो गई.