- घटते पायथन की संख्या चिंता का विषय

- वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया का जिम्मा

प्रोजेक्ट पर एक नजर

58 लाख बजट खर्च होगा

20 पायथन पर होगा रिसर्च

13 पायथन अब तक ऑपरेट

देहरादून।

वाइल्ड लाइफ बचाने को केन्द्र सरकार की एक मुहिम पर अजगर करे न चाकरी कहावत फिट बैठ रही है। देश भर में तेजी से कम हो रहे पायथन (अजगर) की वजह से पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ने के खतरे को भांपते हुए केन्द्र सरकार ने इलेक्ट्रॉनिक चिप के जरिए पायथन की मॉनिटरिंग शुरू करने की तैयारी की है। अजगर की चाकरी करने का जिम्मा सौंपा गया है देहरादून स्थित वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) को। इस प्रोजेक्ट को पाइथन टेलीमेट्री नाम दिया गया है। डब्ल्यूआईआई के साइंटिस्ट देश में जिन इलाको में अजगर बहुतायत हैं, वहां जाकर सर्जरी के जरिए उनमें एक इलेक्ट्रॉनिक चिप इन्सर्ट कर मॉनिटरिंग के जरिए उनके बिहेवियर में आ रहे चेंजेज की स्टडी करेंगे। आशंका यह भी है कि कहीं स्मगलिंग के लिए पायथन मारे तो नहीं जा रहे।

सर्जरी कर इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमीटर फिक्स

सेंट्रल गर्वन्मेंट के डिर्पाटमेंट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी से अप्रूवल मिलने के बाद डब्ल्यूआईआई देहरादून के साइंटिस्ट डा। रमेश चिन्नासामी ने सबसे पहले तमिलनाडु में मोयार रिवर वैली में एनेस्थिसिया के जरिए के सबक्यूटेनियस में ट्रांसमीटर और आई बटन इंजेक्ट किया गया है। देश में सबसे अधिक पायथन तमिलनाडु की मोयार रिवर वैली में पाए जाते हैं। रिवर वैली के एक तरफ मुदुमलाई वाइल्ड लाइफ सेंचुरी और दूसरी तरफ सत्य मंगलम टाइगर रिजर्व है। वहां की थर्मल इकोलॉजी और स्पैटो टेम्पोरल में पायथन के बिहेवियर में आ रहे चेंज पर रिसर्च की जा रही है।

इमीटिंग सिग्नल से ट्रैकिंग

ट्रांसमीटर से इमीटिंग सिग्नल मिलेगा। जिससे पायथन की लोकेशन उसके एक किलोमीटर दूर से ही ट्रैक होती रहेगी। इसके अलावा आई बटन से पायथन का बॉडी टेंपरेचर रिकॉर्ड होता रहेगा। इस प्रोजेक्ट में जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ यूनाइटेड स्टेट्स का भी कोलोब्रेशन है। रिसर्च से अजगर की लाइफ स्टाइल पता चल सकेगी।

मानसून, प्री मानसून में दिखते हैं

यह रिसर्च इंडियन रॉक पाइथन पर की जा रही है। पायथन सबसे अधिक मानसून और प्री.मानूसन के मौसम में दिखाई देते हैं। देश में अब तक रॉक पायथन की सबसे अधिक संख्या राजस्थान के केवलादेव नेशनल पार्क में काउंट की गई है। वहां इनकी संख्या 180 है। इसके अलावा देश में अन्य कहीं भी इनकी संख्या की एक्जेक्ट जानकारी नहीं है। तमिलनाडू के अलावा राजस्थान और उत्तराखंड में बड़ी संख्या में पायथन है।

पायथन की घटती संख्या पर चिंता

पायथन की संख्या कम होने के पीछे शिकार की आशंका प्रकट की गई है। वहीं लोगों में अवेयरनेस न होने के कारण पायथन पर हमलों की घटनाएं भी शामिल हैं। जिन क्षेत्रों में पहले पायथन काफी संख्या में दिखाई देते थेए वहां अब इनका दिखना बेहद कम हो गया है। ऐसे में रिसर्च कर इनकी घटती संख्या की वजह खोजी जा रही है।

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गवर्नमेंट ऑफ इंडिया की ओर से अजगरों की घटती संख्या पर चिंता जताई है, इस प्रोजेक्ट से उनके मूवमेंट की जानकारी होगी तो उनके रहन-सहन के तरीके के साथ ही अन्य वजहों की भी जानकारी मिल सकेगी।

डा। रमेश चिन्नासामी, डब्ल्यूआईआई, देहरादून

Posted By: Inextlive