- कोरोना को मात देने वालों की कहानी, उन्हीं की जुबानी

-संयम तो किसी को योग व ध्यान से मिली कोरोना पर जीत

शहर में कोरोना संक्रमितों की संख्या 376 हो गई है। बढ़ते केस से हर कोई डरा हुआ है। लेकिन डर के आगे जीत भी है। यह साबित किया हैं कोरोना से जंग जीतने वालों ने। अभी तक 260 लोग ठीक हो चुके है। संयम तो किसी ने योग व ध्यान से इस बीमारी से लड़ाई में जीत हासिल की। कोरोना के डर को दूर करने के लिए आप भी पढि़ए ऐसे ही कोरोना को मात देने वालों की कहानी, उन्हीं की जुबानी

-घनश्याम सिंह (काल्पनिक नाम) -निवासी हरहुआ ब्लॉक

कई बार लगाया हॉसिपटल का चककर

वो दिन मैं कभी नहीं भूलुंगा, मैं दुबई की एक कम्पनी में फोन ऑपरेटर का कार्य करता था। पत्नी को पहली संतान होने की सूचना पर खुशी में वतन के लिए चला। 20 मार्च को हवाई जहाज से बाबतपुर हवाई अड्डा पर उतरा। प्राइवेट कार में सवार होकर घर पहुंचा। दूसरे दिन एयरपोर्ट से काल आया कि अपनी जांच कराकर रिपोर्ट करें। इससे चिंता बढ़ी और अगले दिन पंडित दीनदयाल चिकित्सालय गया। कोई सिप्टम नही होने से डॉकटर्स ने दवा देकर छोड़ दिया और घर में रहने की सलाह दी। गले में परेशानी हुई 26 फिर 27 मार्च को हॉसिपटल पहुंचा। डॉकटर ने जांच की और आइसोलेशन वॉर्ड में रख लिया।

डॉक्टर्स ने बढ़ाया साहस

कोरोना संकरमित होने की जानकारी मिलते ही मैं चिंतित हो गया। समझ नहीं पा रहा था कि आगे कया होगा। लेकिन वहां मेरा हौसला बढ़ाया डॉकटर्स और पैरामेडिकल सटॉफ ने। निराश होने पर कहते थे कि 'कुछ नही हुआ है हिम्मत से अस्पताल में रहो तुम ठीक हो'। अस्पताल में सुबह-शाम दवाएं, समय पर भोजन, नाश्ता,चाय सब मिलता रहा। मैंने भी हिम्मत जुटायी और धीरे-धीरे हेल्दी होने लगा.10 दिन बाद रिपोर्ट निगेटिव आई। मेरे हॉसिपटल में रहने के दौरान पत्नी ने बेटे को जन्म दिया। मेरे घर में खुशियां लौट आयीं थीं।

राजेश शर्मा, (काल्पनिक नाम)

निवासी कतुआपुरा

बना लिया रोग से लड़ने का मन

कोरोना से मैं भी डरा हुआ था। दुबई से भारत के लिए उड़ान भरा तो तय कर लिया था कि किसी से भी संपर्क में नहीं आना है। 27 अप्रैल को घर पहुंचा तो खुद को कमरे में बंद कर लिया। मेरी काफी सतर्कता के बाद भी दो दिन बाद ही गले में खरास होने लगा तो पं। दीनदयाल अस्पताल में जांच कराने पहुंचा। डॉक्टर्स ने सैंपल जांच के लिए भेजा। रिपोर्ट पॉजिटिव मिली तो दिल बैठ गया। पर खुद को संभाला और बीमारी से लड़ने का मन बनाया। ईएसआईसी हॉस्पिटल के आइशोलेशन वॉर्ड में भर्ती कर दिया गया।

नियमित करता था ध्यान

अस्पताल में रहने के दौरान मेरा नियमित दिनचर्या पर फोकस रहा। मालूम था कि इस बीमारी की कोई सटीक दवा नहीं है। रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना होगा। सुबह उठने के बाद योगा करता था। इसके बाद स्नान कर ध्यान लगाता था। फिर सुबह नौ बजे नाश्ता, दोपहर दो बजे व रात आठ बजे तक भ्भोजन करता था। 14 दिन बाद जब जांच रिपोर्ट में निगेटिव आने की जानकारी हुई तो मेरे का ठिकाना नहीं रहा।

Posted By: Inextlive