सबहेड: आईजी जोन ने चेक किए चैनल, अधिकतर चैनल मिले खामोश

- पुलिस विभाग में अधिकारियों को ही नहीं पता अपने सीनियर का कोड

-- वायरलैस सिस्टम के लिए बना है अलग डिपार्टमेंट, होता है सालाना लाखों खर्च

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LUCKNOW : जी, पीपी, माउंट, अल्फा, राकेट, स्टार, जुपिटर, कमांडर, वीनस, स्पैरो, हंटर, लीमा, प्लुटो। यह वह कोड हैं जिनका इस्तेमाल पुलिस डिपार्टमेंट में होता है। इनको कई चैनलों में डिवाइड किया गया है जैसे चार्ली, डेल्टा, टैंगो, गामा, बीटा, टीपी लाइन, डीसीआर। लेकिन जब मंगलवार को आईजी जोन ए। सतीश गणेश ने एक के बाद चैनल को चेक किया तो ज्यादातर चैनल खामोश मिले। अब उन्होंने इस पूरे सिस्टम का रिव्यू करने का निर्णय लिया है, जिससे सभी चैनलों को एक लाइन की संभावनाएं तलाशी जाएंगी।

न के बराबर इस्तेमाल हो रहा वायरलेस

किसी भी थाने, सीओ ऑफिस या एसपी, एसएसपी ऑफिस की छत पर तारों पर टिके पतले और लंबे टावर जरूर देखे होंगे। यह टावर किसी मोबाइल कंपनी का नहीं, बल्कि पुलिस के इंटरनल नेटवर्क वायरलेस रेडियो सिस्टम का होता है। यह तब की ईजाद है जब न तो मोबाईल था और न ही डायरेक्ट कम्युनिकेशन का कोई दूसरा सिस्टम। अधिकारियों की आपस में जोड़े रखने का सबसे बड़ा माध्यम हुआ करता है, उसी वायरलेस सिस्टम का यूज अब ना के बराबर हो रहा है। जबकि इसके लिए अलग से डिपार्टमेंट है और रखरखाव के लिए लाखों का सालाना खर्च आता है।

वीआईपी मूवमेंट पर ही होता है शोर

वायरलेस सिस्टम का इस्तेमाल इतना कम हो गया है कि इसकी आवाज अब अधिकतर उस वक्त सुनाई देती है जब कोई वीआईपी मूवमेंट हो रहा हो। इसके अलावा बाकी समय में वायरलेस सेट खामोश ही नजर आते हैं। एक दूसरी की बात टकराये न इस लिए अलग-अलग चैनल पर अलग-अलग एरिया के अधिकारियों को रखा गया था। चैनलों के नाम भी अलग-अलग हैं।

विक्टर को नहीं पता कि पैंथर कौन?

हालत यह है कि थाने स्तर की बात भूल जाइये। सीओ और एडीशनल एसपी को भी अपने मातहतों के कोड नहीं पता है। आम लोगों को न पता चलने पाये, इसके लिए थाने से लेकर चीफ सेक्रेटरी और सीएम गवर्नर के नाम के लिए कोडिंग की गयी थी। जिसका मकसद सिक्योरिटी परपज हुआ करता था। अधिकारियों को इसके बारे में जानकारी होती थी कि कौन क्या है? लेकिन आज की तारीख अधिकतर अधिकारियों को ही नहीं पता कि आईजी जोन को क्या कहते हैं, विक्टर को नहीं पता कि पैंथर कौन है, पैंथर को नहीं पता कि ईगल कौन है।

आईजी जोन को मिले अधिकतर सेट खामोश

मंगलवार को आईजी जोन ए। सतीश गणेश ने सुबह दस बजे से शाम पांच बजे तक एक-एक करके सभी वायरलेस चैनल ट्यून किये जिसमें अधिकतर चैनल खामोश मिले। जबकि चैनलों का डिस्ट्रिब्यूशन सिर्फ इसलिए किये गये थे ताकि किसी चैनल पर ट्रैफिक अधिक न हो। क्योंकि अब मोबाइल और दूसरी टेक्नोलॉजी कहीं आगे निकल गयी हैं और आसानी से उपलब्ध हैं, वहां चैनल को भी सेंट्रलाइज किये जाने की जरूरत है। हालत यह है कि राजधानी में बैठे अधिकतर अफसर को ही अपने सीनियर के कोड नहीं पता है।

अब व्हाट्स एप्प पर देते हैं निर्देश

सबसे पुरानी टेक्नालॉजी वायरलेस रेडिया सिस्टम जो कभी पुलिस डिपार्टमेंट की रीढ़ की हड्डी हुआ करता था, वह अब खत्म होने की राह पर है। हालत यह है कि राजधानी में बैठे अधिकतर अफसर को ही अपने सीनियर के कोड नहीं पता है। इसकी बड़ी वजह नयी टेक्नोलॉजी, मोबाइल और खास कर व्हाट्स एप्प ने ले ली है। इससे सुविधाएं बढ़ी हैं तो पुलिस डिपार्टमेंट में कामचोरी में भी इजाफा हुआ है। अधिकारियों ने अपने मातहतों का अलग अलग व्हाट्स एप्प ग्रुप क्रिएट कर रखा है जिस पर वह निर्देश जारी कर देते हैं। उसे करने का काम अधिकारी के पीआरओ का होता है। अधिकारियों को रिप्लाई के तौर पर ओके लिखना होता है। जिस अधिकारी या मातहत की ओर से रिप्लाई नहीं आता उसे सूचना देने का काम पीआरओ को होता है। संबंधित ग्रुप में अधिकारी का पीआरओ भी शामिल होता है और यह चेक करता है कि किस मातहत का रिप्लाई आया और किसका नहीं।

Posted By: Inextlive