- महिलाओं और छात्राओं की सुरक्षा के लिए बनाई गई थी कई स्कीमें

- छेड़छाड़ और महिलाओं से जुड़े आईटी एक्ट के मामले लगातार बढ़ रहे

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LUCKNOW: महिलाओं और छात्राओं की सुरक्षा के दावे हवा हवाई साबित हो रहे हैं. इनकी जमीनी हकीकत दावों की पोल खुद ब खुद खोल रही है. वैसे तो महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित कई स्कीमों की शुरुआत की गई, लेकिन चंद दिनों तक कागजी घोड़े दौड़ाने के बाद पुलिस ने अपनी ही मुहिम पर अल्पविराम लगा दिया. एंटी रोमियो स्क्वॉयड हो या फिर हेल्पलाइन. आज यह सब लापता हो चुकी हैं जबकि लगातार महिलाओं और छात्राओं से छेड़छाड़, आईटी एक्ट संबंधी अपराध बढ़ रहे हैं. सुरक्षा से संबंधित जो योजना चल भी रही हैं वह नाकाफी हैं. मजबूरी में न्याय पाने को उन्हें थानों के चक्कर लगाने पड़ते हैं और खुद को अपमानित महसूस करना पड़ता है.

कोरम पूरा कर रही हेल्पलाइन और सेल

निर्भया कांड के बाद प्रदेशस्तर पर महिलाओं और छात्राओं की सुरक्षा के लिए बड़े पैमाने पर सेल गठित होने के साथ हेल्पलाइन समेत अन्य सर्विस शुरू की गई थी. राजधानी में स्कूल कॉलेज के बाहर छुट्टी के समय पुलिस पिकेट, कंप्लेंट बॉक्स, एंटी रोमियो स्क्वॉयड जैसी तमाम सर्विस शुरू की गई थी. वर्तमान में यह सर्विस अब केवल कागजों तक सीमित हैं न तो सेल में कोई कर्मचारी तैनात है और न ही बनाए गए नियम कानून ही फॉलो हो रहे हैं.

योजना नंबर- एक

एंटी रोमियो स्क्वॉयड

योजना - दो साल पहले पुलिस विभाग ने एंटी रोमियो स्क्वॉयड बनाया था. इस स्क्वॉयड में पुलिस का एक दल जिसमें एक सब इंस्पेक्टर, दो महिला कांस्टेबल के साथ दो पुरुष कांस्टेबल होते थे. इस टीम को एक चार पहिया वाहन भी दिया गया था. टीम सुबह और शाम स्कूल कॉलेज, पार्क, पब्लिक प्लेस, मार्केट, मॉल के बाहर तैनात रहकर रोमियो पकड़ने का काम करती थी.

हकीकत

एंटी रोमियो स्क्वॉयड आज कागज पर चल रहा है जबकि हकीकत में अब न टीम है और न ही व्हीकल. स्क्वॉयड पर तैनात पुलिस कर्मी भी दूसरे सेल में अपनी सर्विस दे रहे हैं.

योजना नंबर दो

1090 वीमेन पॉवर लाइन

योजना- स्कूल, कॉलेज की छात्रा और वर्किग वीमेन्स की सुरक्षा और उन्हें परेशान करने वाले शोहदों को सबक सिखाने के लिए 6 साल पहले राजधानी में 1090 वीमेन पॉवर लाइन की स्थापना हुई थी. राजधानी के साथ-साथ पूरे प्रदेश से पीडि़ता कॉल कर मदद भी मांगती थीं. 1090 कॉलिंग के जरिए उन पीडि़ता की मदद की जाती थी. कभी 1090 हेल्प लाइन में रिकार्ड तोड़ कॉल आती थी और कॉल करने वाली पीडि़ताओं को मदद भी पहुंचाई जाती थी.

हकीकत-

नेचर ऑफ क्राइम बदलने के चलते यह हेल्पलाइन चल तो रही है, लेकिन छात्राओं के लिए पूरी तरह संजीवनी साबित नहीं हो पा रही है. अब महिलाओं से जुड़े ज्यादातर मामले आईटी एक्ट के तहत सामने आ रहे हैं, जिसके लिए यह सेल मददगार नहीं है.

योजना नंबर- तीन

स्कूल, कॉलेज में कंप्लेंट बॉक्स

योजना- राजधानी पुलिस ने स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाली छात्राओं की मदद करने के लिए यहां गेट पर कंप्लेंट बॉक्स लगाने की योजना शुरू की थी. कई स्कूल कॉलेज के बाहर कंप्लेंट बॉक्स लगाए भी गए थे, जिसकी मानीटरिंग सीओ स्तर पर की जानी थी. साथ ही सप्ताह में एक दिन चौकी इंचार्ज को बॉक्स खोलकर शिकायतों का निस्तारण की जिम्मेदारी दी गई थी. इस कंप्लेंट बॉक्स की चाबी भी स्थानीय चौकी इंचार्ज के पास होती थी.

हकीकत-

स्कूल कॉलेज के बाहर कंप्लेंट बॉक्स तो लगे हैं, लेकिन अब न तो साप्ताहिक बॉक्स खोला जाता है और न ही उसमें आने वाली शिकायतों का निस्तारण किया जा रहा है. पुलिस की निष्क्रियता के चलते बॉक्स में अब कंप्लेंट भी आना बंद हो गई और बॉक्स की चाबी का तो पता ही नहीं है.

योजना नंबर- चार

चुप्पी तोड़ो खुलकर बोलो

योजना- एक साल पहले लखनऊ पुलिस ने एक अभियान चलाया था. चुप्पी तोड़ो खुलकर बोलो अभियान के तहत लखनऊ पुलिस ने ग‌र्ल्स स्कूल, कॉलेजों में सेमिनार करके छात्राओं को जागरूक किया था और उन्हें पुलिस की हेल्पलाइन नंबर देकर वादा किया था कि उनकी मदद की जाएगी. यह अभियान एसएसपी स्तर से चालू किया गया और हर सर्किल के सीओ नोडल इंचार्ज बनाये गये थे.

हकीकत-

चुप्पी तोड़ो खुलकर बोलो अभियान भी अब कागजों तक सीमित रह गया है. जागरुक करने के बाद लखनऊ पुलिस भी मौन हो गई है. अभियान के दौरान किए गए वादे भी टूट गए. अब न तो स्कूल कॉलेज के बाहर गश्त और पिकेट लगाई जाती है और न ही सुरक्षा को लेकर कोई अभियान चलाया जा रहा है.

योजना नंबर पांच

महिला हेल्प डेस्क

योजना - लखनऊ पुलिस ने महिलाओं से संबंधित होने वाले छोटे छोटे अपराध पर तत्कालीन मदद के लिए हर थाने में महिला हेल्प डेस्क बनाने का दावा किया गया था. एक साल पहले हर थाने में डेस्क बनाई भी गई थी और महिला हेल्प डेस्क पर महिला पुलिस कर्मी तैनात भी कई गई थी, जो महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराध को सुनने के लिए उनकी मदद कर सके.

हकीकत-

कई थानों में स्पेशल काउंटर पर महिला हेल्प डेस्क का प्रिंट आउट चस्पा तो है, लेकिन न तो महिलाओं की मदद के लिए वहां कोई महिला पुलिस कर्मी तैनात है और उन पर होने वाली अपराधिक घटनाओं के लिए त्वरित कार्रवाई हो रही है. यहां तक कि अपने साथ होने वाली अपराधिक घटनाओं की सूचना भी उन्हें पुरुष पुलिस कर्मियों को बतानी पड़ रही है.

Posted By: Kushal Mishra