वास्तव में जागरूकता के साथ किया गया हर सकारात्मक कार्य योग कहलाता है। इसलिए हमें अपने अंदर जागरूकता विकसित करनी चाहिए।


मां अमृतानंदमयी। एक बार मेले में एक बच्चा मां से बिछड़ गया। उसने अपनी मां को हर जगह खोजा, लेकिन भीड़ में वे नहीं मिल पा रहीं थीं। डर के कारण बच्चे ने दौड़ना शुरू कर दिया और  गिर गया। उसने जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। तब उसने महसूस किया कि मां उसके माथे पर चुंबन कर रही हैं। 

वास्तव में छोटा लड़का कहीं खोया नहीं था, बल्कि उसने कोई बुरा सपना देखा था, जिसमें वह अपनी मां से अलग हो गया था। ईश्वर भी हमसे कभी अलग नहीं होते हैं। वे हमेशा हमारे साथ होते हैं। उनसे हमारा तथाकथित 'अलगाव' बच्चे के सपने की तरह ही है।

अपनी स्थिति को समझने के लिए हमें बस जागना होगा। अलग-अलग आध्यात्मिक कार्य जैसे कि समाज के लिए नि:स्वार्थ सेवा, ध्यान, मंत्रों का जाप या शास्त्रों का अध्ययन आदि हमें हमारी नींद से जगाने में मदद करते हैं। वे हमें ईश्वर के करीब लाते हैं, जिन्हें हम योग कहते हैं।

ध्यान के माध्यम से विशेष प्रकार की मुद्राएं जब उचित जागरूकता के साथ बनाई जाती हैं, तो यह बहुत फायदेमंद आध्यात्मिक अभ्यास हो सकता है। योग में जैसे ही आप स्थिति में बदलाव करते हैं और दूसरी स्थिति में आते हैं, तो आप हर गतिविधि को पूरी जागरूकता के साथ करने की कोशिश करते हैं। जैसे ही आपका हाथ ऊपर जाता है, आप उस गतिविधि से पूरी तरह अवगत होने की कोशिश करते हैं। इसी प्रकार जब हाथ को वापस नीचे लाते हैं, तो भी जागरूक रहते हैं। 

इस बाहरी जागरूकता के माध्यम से ही आप आंतरिक जागरूकता प्राप्त करते हैं। जब ऐसा किया जाता है, तो योग न केवल व्यायाम का एक रूप होता है, हमारे शारीरिक स्वास्थ्य में भी सुधार करता है। यह एक वास्तविक आध्यात्मिक अभ्यास बन जाता है, जो हमें मानसिक और आध्यात्मिक रूप से परिष्कृत करता है। वास्तव में जागरूकता के साथ किया गया हर सकारात्मक कार्य योग कहलाता है। इसलिए हमें अपने अंदर जागरूकता विकसित करनी होगी। तभी हम आत्मकेंद्रित हो सकेंगे तथा देश और समाज में शांति और एकता स्थापित हो सकेगी।

ये भी पढ़ें: आसन-प्राणायाम ही नहीं, कुशल कार्य व तनावरहित जीवन बिताना भी है योग Posted By: Vandana Sharma