आगरा। भारत में जन्म के समय ही कई कारणों से नवजातों की मृत्यू हो जाती है। जन्म के बाद का पहला मिनट नवजात की सेहत के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। ज्यादातर बच्चे जन्म लेते ही रोते है और उनका सांस लेना बेहद आवश्यक होता है। लेकिन करीब दस फीसदी मामलों में बच्चे पैदा होने के बाद तुरंत नहीं रोते। खुद से सांस भी नहीं ले पाते.ऐसे में नवजात को कृत्रिम तरीके से सांस लेने की जरूरत पड़ती है। वह भी जन्म शुरूआती एक मिनट में। ऐसे महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर एसएन मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में एक विस्तृत चर्चा की गई। साथ ही डॉक्टरों को प्रशिक्षण दिया गया कि वह ऐसी स्थिति में नवजातों को पुर्नजीवन प्रदान करने के लिए किस तरह से कार्य करे।

जन्म के 30 सेंकेड से एक मिनट बेहद जरूरी

एसएन मेडिकल कॉलेज के बाल रोग विभाग में नवजात को पुर्नजीवन प्रदान करने की आधुनिक तकनीकों पर एक कार्यशाला का आयोजन किया गया। जिसमें प्रमुख रूप से नवजात शिशु मृत्यू दर में कमी लाने के लिए हर पहलू पर चर्चा की गई। जिसके लिए एसएन समेत कई डाक्टरों को लाइव डोमेस्ट्रेशन से प्रशिक्षण दिया गया। दिल्ली से आए नेशनल न्यूट्रोलॉजी फोरम के सचिव डॉ। ललन भारती ने बताया कि बच्चा अगर पैदा होते ही नहीं रोता है तो कई प्रकार की परेशानियां हो सकती है। उसका जीवन खतरें में होता है। जीवित रह गया तो भी उसके मस्तिष्क में पर्याप्त ऑक्सीजन न पहुंच पाने के कारण उसके शारीरिक और मानसिक विकास में कमी आ जाती है। इस एक मिनट के पहले 30 सेंकेड के अंदर शिशु को साफ कर तुरंत मां की छाती से लगाकर गर्म के जरिए उसकी सांस लौटाई जा सकती है। इस विधि को कंगारू केयर भी बोलते है।

एंबु बैग से भी सांस न लेने पर तत्काल एनआईसीयू में कराए भर्ती

दिल्ली के ही डॉ। अनुराग अग्रवाल ने बताया कि यदि बच्चा सांस नहीं ले पा रहा है तो उसे मां से अलग कर सीधा लिटाया जाता है। उसकी गर्दन सीधी की जाती है। उसके बाद मुंह में पाइप लगाकर सांस नली को साफ किया जाता है। फिर पैर के तलवे को थपथपाया जाता है। इस प्रक्रिया में 30 सेकेंड लगते है। बच्चा फिर भी सांस न ले तो अगले 30 सेकेंड की प्रक्रिया शुरू की जाती है। इसमें बच्चे को तुरंत एम्बु बैग से कृत्रिम सांस दी जाती है। सांस न चले तो उसे तुरंत ऑक्सीजन लगाकर एनआईसीयू में रेफर कर दिया जाता है।

साढ़े तीन लाख मौतें होती है हर साल

बाल रोग विभाग के अध्यक्ष डॉ। राजेश्वर दयाल ने बताया कि भारत में हर साल लगभग साढ़े तीन लाख नवजात शिशुओं की 24 घंटे के भीतर मृत्यू हो जाती है। ऐसे में नवजात शिशुओं की देखरेख को बेहतर बनाकर इस मृत्यू दर को कम करने कवायद की जा रही है। बाल रोग विभाग के ही डॉ। नीरज कुमार यादव ने बताया कि तकरीबन 10 लाख बच्चे पूरी दुनिया में जन्म के बाद दम तोड़ देते है। भारत में सर्वाधिक एक तिहाई मौतें होती है। ऐसे में नेशनल रिसस्किटेशन प्रोग्राम जरूरी हो जाता है। क्योकि यह माध्यम बनता है कुछ जरूरी पहलुओं को जानने का। साथ ही डॉ। राजेश्वर दयाल ने बताया कि जन्म के तुरंत बाद मां का दूध पिला दिया जाए तो बच्चा कई बीमारियों से बच जाता है।

Posted By: Inextlive