World AIDS Day Today

-करीब सवा लाख लोग हैं बिहार में एड्स इंफेक्टेड

-एडस पेशेंट में 60 परसेंट तक होता है टीबी इनफेक्शन

PATNA: आज व‌र्ल्ड एड्स डे है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें जानकारी ही बचाव है, पर यहां दशकों बाद भी जमीनी लेवल पर इस दिशा में ठोस काम नहीं दिख रहा। बिहार में इसके केसेज तेजी से बढ़ रहें है। कारण है काउंसिलिंग की प्रॉपर व्यवस्था न होना। विशेष से बिहार के नार्थ बेल्ट के जिलों और बिहार-नेपाल बार्डर से सटे इलाकों-वेस्ट चंपारण, पूर्णिया, अररिया, मुजफ्फरपुर, कटिहार आदि में इसका प्रभाव अधिक है। बिहार में हर साल करीब दस हजार की मौत एड्स से हो रही है।

प्रोडक्टिव एज ग्रुप को बचाने की चुनौती

एड्स की पूर्व संध्या पर आयोजित एक जागरूकता कार्यक्रम के मौके पर डॉ दिवाकर तेजस्वी ने कहा कि एचआईवी एड्स से मोस्ट प्रोडक्टि एज ग्रुप (25-35) को बचाना एक चुनौती है। बिहार के मामले में दवा और लॉजिस्टिक सपोर्ट की समस्या एक बड़ी समस्या है। माइग्रेशन के कारण यहां करीब 90 परसेंट केसेज आते हैं, इसलिए होली और छठ में इनके बिहार में आने पर एक प्रॉपर जांच की व्यवस्था होनी चाहिए। इससे प्रीवेंशन बेहतर होगा।

Highlights

- इंडिया में 20 लाख 88 हजार 638 हैं एडस पेशेंट

- 16 हजार 459 न्यू एचआइवी इंफेक्शन

- एक लाख 47 हजार 729 पेशेंट की होती है मौत

- बिहार में चिह्नित केस- 70 हजार केस

- बिहार में एड्स इंफेक्टेड पेशेंट - एक लाख 23 हजार 873

- बच्चों की संख्या- नौ हजार 751

बिहार में एड्स से हुई मौत- नौ हजार 750

(2012-2013 के आंकड़े)

कोसने से क्या होगा?

एड्स बचाव में लगे लोगों का एटीट्यूट ही इसके आड़े आ रहा है। खासकर महिलाएं इसका सीधा शिकार बन रही हैं। यह कहना है बिहार नेटवर्क फॉर पीपल लिविंग फार एड्स सोसाइटी के अध्यक्ष ज्ञान रंजन का। उन्होंने इस बात पर अफसोस जताते हुए कहा कि उन्होंने फिल्ड वर्क के दौरान ऐसे कई केसेज देखे हैं, जिसमें बचाव में लगे डॉक्टर ही एड्स पीडि़त खासकर महिला से चिल्ला-चिल्लाकर कहते हैं-'पता नहीं कहां-कहां से और किसकी बीमारी लेकर यहां चली आती है'। यह बात दीगर है कि क्या ऐसे ही समुचित बचाव किया जाएगा। पेशेंट्स के साथ इतना भेदभाव किया जाता है कि वे इलाज नहीं करा पाते है या फिर दर-दर भटकते रह जाते हैं।

आइसीडीसी द्वारा गलत काउंसिलिंग

एड्स कंट्रोल में गलत काउंसिलिंग भी एक समस्या है। इंटीग्रेटेड काउंसिलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर (आईसीटीसी) का काम है एड्स के बारे में जानकारी देना और बचाव के साधनों के बारे में सही और समुचित जानकारी देना, लेकिन इसके गलत जानकारी के कारण कई पेशेंट्स मानसिक रूप से पीडि़त होकर रह जाते हैं। ऐसे ही एक पीडि़त से आई नेक्स्ट ने बात की।

एड्स को छूत की बीमारी बताया

रीना कुमारी (ख्भ्) ने अपनी आपबीती बतायी। उसके पति विपिन की मौत एडस के कारण हो गई थी। ख्00म् में उनकी मौत हो गई। उनके मरने से मात्र एक माह पहले उन्हें जानकारी मिली कि उनके पति को एड़स था। आईसीटीसी की गलत जानकारी के कारण वह मानसिक रूप से कमजोर पड़ गई थी। काउंसिलिंग के दौरान उन्हें बताया गया कि वह एक महीने में ही मर जाएगी। यह छूत की बीमारी है। उन्हें किसी के साथ उठना-बैठना नहीं है। यह बात उन्हें ख्00म् में मोकामा के नजारत हॉस्पिटल में बताया गया था। यह एक कम्यूनिटी सेंटर के रूप में स्थापित है।

टेस्ट में कोई खतरा नहीं दिखा

नजारत हॉस्पीटल में डाक्टरों की सलाह पर उन्हें पटना में जयप्रभा ब्लड बैंक में सीडी-ब् टेस्ट करने को कहा गया। और फिर छह माह के बाद पीएमसीएच में भी टेस्ट कराया। दोनों टेस्ट में वह एड्स पॉजिटिव नहीं पायी गयी। इसके बाद उसने ठान लिया कि वह एड्स के बारे में लोगों को अवेयर करेगी। वह वर्तमान समय में बिहार नेटवर्क फॉर पीपल लिविंग फार एड्स सोसाइटी नामक संस्था में पटना जिला में कार्यरत है।

एडस पेशेंट में टीबी होने की संभावना म्0 परसेंट तक बढ़ जाती है। उसका इम्यूनिटी पर तेजी से असर होता है। बिहार जैसे हाइली पॉप्यूलेटेड स्टेट में टीबी का प्रीवलेंस है। इसके लिए अवेयरनेश और प्रीवेंशन की जरूरत है।

डॉ अशोक शंकर सिंह, हेड टीबी डिपार्टमेंट, पीएमसीएच

यह मिथ्या है कि अगर मां एचआइवी इनफेक्टेड है तो उससे पैदा हुए बच्चा को भी एड्स इनफेक्शन होगा। अगर वह बच्चे को दूध न पिलाये और प्रॉपर दवा और प्रीवेंटिव मेजर्स को फॉलो करे तो बच्चा में इसकी संभावना नहीं होगी।

डॉ दिवाकर तेजस्वी, एड्स के क्षेत्र में विशेष कार्य

Posted By: Inextlive