भारत में कैंसर के करीब दो तिहाई मामलों का बहुत देर से पता चलता है और कई बार तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। लोगों को कैंसर होने के संभावित कारणों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से हर साल 4 फरवरी को 'विश्व कैंसर दिवस' मनाया जाता है। वास्तव में यह महज एक दिवस भर नहीं है बल्कि कैंसर से लड़ रहे उन तमाम लोगों में नई चेतना का संचार करने और नई उम्मीद पैदा करने वाला दिवस है।


योगेश कुमार गोयल (फ्रीलांसर) इस अवसर पर ऐसे लोगों का उदाहरण प्रस्तुत करने का प्रयास किया जाता है, जिन्होंने अपने जज्बे और आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की बदौलत कभी लाइलाज मानी जाने वाली इस बीमारी पर विजय प्राप्त की और सालों से स्वस्थ जीवन जी रहे हैं। दरअसल आज भी लगभग सभी लोगों के लिए कैंसर एक ऐसा शब्द है, जिसे अपने किसी परिजन के लिए डॉक्टर के मुंह से सुनते ही परिवार के तमाम सदस्यों की सांसें गले में अटक जाती हैं और पैरों तले की जमीन खिसक जाती है। ऐसे में परिजनों को परिवार के उस अभिन्न अंग को सदा के लिए खो देने का डर सताने लगता है। बढ़ते प्रदूषण तथा पोषक खानपान के अभाव में यह बीमारी एक महामारी के रूप में तेजी से फैल रही है। वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन का मानना है कि हमारे देश में पिछले बीस सालों के दौरान कैंसर पेशेंट्स की संख्या दोगुनी हो गई है। हर साल कैंसर से पीडि़त लाखों मरीज मौत के मुंह में समा जाते हैं।सही समय पर पता लग जाए तो कैंसर का उपचार अब संभव


हालांकि कुछ साल पहले तक कैंसर को लाइलाज रोग माना जाता था, लेकिन कुछ सालों में ही कैंसर के उपचार की दिशा में क्रांतिकारी रिसर्च हुई हैं और अब अगर समय रहते कैंसर की पहचान कर ली जाए तो उसका उपचार किया जाना काफी हद तक पॉसिबल हो जाता है। कैंसर के संबंध में यह समझ लेना बेहद जरूरी है कि यह बीमारी किसी भी उम्र में किसी को भी हो सकती है, पर अगर इसका सही समय पर पता लग जाए तो लाइलाज मानी जाने वाली इस बीमारी का उपचार अब संभव है। यही वजह है कि देश में कैंसर के मामलों को कम करने के लिए कैंसर तथा उसके कारणों के प्रति लोगों को जागरूक किए जाने की आवश्यकता महसूस की जा रही है। ताकि वे इस बीमारी, इसके लक्षणों और इसके भयावह खतरे के प्रति जागरूक रहें।सुविधाओं के बावजूद कैंसर नियंत्रण पर नहीं हो पा रहे सफल

कैंसर से लड़ने का सबसे बेहतर और मजबूत तरीका यही है कि लोगों में इसके प्रति जागरूकता हो, जिसके चलते जल्द से जल्द इस बीमारी की पहचान हो सके और शुरुआती चरण में ही इसका इलाज संभव हो। यदि कैंसर का पता जल्द लगा लिया जाए तो उसके उपचार पर होने वाला खर्च काफी कम हो जाता है। यही वजह है कि जागरूकता के जरिये इस बीमारी को शुरुआती दौर में ही पहचान लेना बेहद जरूरी माना गया है, क्योंकि ऐसे मरीजों के इलाज के बाद उनके स्वस्थ एवं सामान्य जीवन जीने की संभावनाएं काफी ज्यादा होती हैं। हालांकि देश में कैंसर के इलाज की तमाम सुविधाओं के बावजूद अगर हम इस बीमारी पर लगाम लगाने में सफल नहीं हो पा रहे हैं, तो इसके पीछे इस बीमारी का इलाज महंगा होना सबसे बड़ी समस्या है। वैसे देश में जांच सुविधाओं का अभाव भी कैंसर के इलाज में एक बड़ी रुकावट है, जो बहुत से मामलों में इस बीमारी के देर से पता चलने का एक अहम कारण होता है।मोटापा, निष्क्रियता नशीले पदार्थों का सेवन के प्रमुख कारण

अगर शरीर में कैंसर होने के कारणों की बात की जाए, तो हालांकि इसके कई तरह के कारण हो सकते हैं, लेकिन अक्सर जो प्रमुख कारण माने जाते रहे हैं, उनमें मोटापा, शारीरिक सक्रियता का अभाव, ज्यादा मात्रा में अल्कोहल, नशीले पदार्थों का सेवन, पौष्टिक आहार की कमी इत्यादि इन कारणों में शामिल हो सकते हैं। कभी-कभार ऐसा भी होता है कि कैंसर के कोई भी लक्षण नजर नहीं आते, किन्तु किसी अन्य बीमारी के इलाज के दौरान कोई जांच कराते वक्त अचानक पता चलता है कि मरीज को कैंसर है लेकिन फिर भी कई ऐसे लक्षण हैं, जिनके जरिये अधिकांश व्यक्ति कैंसर की शुरुआती स्टेज में ही पहचान कर सकते हैं।थकान, खांसी में खून, निगलने में दिक्कत, शरीर में गांठ हैं लक्षणकैंसर के लक्षणों में कुछ प्रमुख हैं। जैसे वजन का घटते जाना, निरंतर बुखार का बने रहना, शारीरिक थकान व कमजोरी होना, चक्कर का आना, दौरे पड़ना, आवाज में बदलाव, सांस लेने में दिक्कत, खांसी के दौरान खून आना, कुछ भी निगलने में दिक्कत, शरीर के किसी भी हिस्से में गांठ या सूजन इत्यादि का होना। कीमोथैरेपी, रेडिएशन थैरेपी, बायोलॉजिकल थैरेपी, स्टेम सेल ट्रांसप्लांट इत्यादि के जरिए कैंसर का इलाज होता है, किन्तु यह अक्सर इतना महंगा होता है कि एक गरीब व्यक्ति इतना खर्च उठाने में सक्षम नहीं होता। इसलिए जरूरत इस बात की महसूस की जाती रही है कि कैंसर के सभी मरीजों का इलाज सरकारी अस्पतालों में हो या निजी अस्पतालों में, सरकार ऐसे मरीजों के इलाज में यथासंभव सहयोग करे क्योंकि जिस तेजी से देश में कैंसर मरीजों की संख्या बढ़ रही है, उसे देखते हुए केवल सरकारी अस्पतालों के भरोसे कैंसर मरीजों के इलाज की कल्पना बेमानी ही होगी। ऐसे में इसके लिए सरकार को आगे आकर हर संभव प्रयास करने की जरूरत है।

Posted By: Satyendra Kumar Singh