हेडिंग विकल्प: दुनिया को जीता, झारखंड में हारे

-व‌र्ल्ड कप जीत कर भी मुफलिसी में झारखंड के डिजेबल प्लेयर्स

-छह खिलाडि़यों ने देश-दुनिया में बढ़ाया झारखंड काम मान

-हाथ में ट्राफी लेकर दर-दर की ठोकरें खा रहे चैंपियन

-सरकारें नहीं करती किसी प्रकार का सपोर्ट

RANCHI (2 March): एक तरफ क्रिकेट व‌र्ल्ड कप चल रहा है, जिस पर पूरी दुनिया की नजर है। जाहिर है, जो टीम व‌र्ल्ड कप अपने देश के लिए जीतेगी उस पर इनामों के साथ कैश प्राइज की भी बौछार होगी। नेशनल लेबल पर धन तो बरसेगा ही, स्टेट सरकारें भी अपने खिलाडि़यों को कैश प्राइज देंगी। सरकारी नौकरी भी मिलेंगी। वहीं, दूसरी तरफ डिजेबल प्लेयर्स जो व‌र्ल्ड कप जीत कर आएं हैं, इन्हें सम्मान देने वाला कोई आगे नहीं आ रहा है। सवाल उठता है कि क्या शरीर से कमजोर इन खिलाडि़यों ने देश का मान नहीं बढ़ाया है? इन्हें प्रोत्साहित करने की जरूरत नहीं है? जी हां, झारखंड के कई खिलाड़ी जो व‌र्ल्ड कप जीत कर लाएं हैं, वे आज मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं। उन्हें कोई सम्मान नहीं मिल रहा है। नौकरी नहीं मिल रही है। इसके बावजूद व‌र्ल्ड कप जीतने की खुशी इनके चेहरे पर साफ झलक रही है, वहीं सम्मान नहीं मिलने की मायूसी भी हैं।

एशिया कप में चैंपियन टीम के खिलाड़ी इनाम के मोहताज

आगरा में हुए डिजेबल एशिया कप में चैंपियन बनने वाली इंडियन टीम में झारखंड के तीन प्लेयर्स भी शामिल थे। मुकेश कंचन, विपुल और निशांत कुमार का टीम को जीत दिलाने में अहम योगदान रहा है। निशांत को तो मैन ऑफ द सीरिज का खिताब भी मिला था। फरवरी में रांची में भी बांग्लादेश के साथ मैच खेला गया था। लेकिन इस जीत का कोई मतलब नहीं रह गया। चेहरे पर खुशी लेकर झारखंड के ये तीनों प्लेयर रांची पहुंचे तो उन्हें कोई पूछने तक नहीं आया। यही नहीं, व‌र्ल्ड चैंपियनशिप जीतने के बाद भी ये तीनों प्लेयर मुफलिसी में अपनी जिंदगी बिता रहे हैं। आज तक न तो इन्हें कोई स्कॉलरशिप मिला और ना ही कोई कैश प्राइज।

मंत्री बोले, देखते हैं क्या कर सकते हैं

तीनों प्लेयर्स जब से रांची में आएं हैं, हाथ में विनर की बड़ी-सी ट्राफी लेकर पूरे शहर में भटक रहे हैं। कभी डीसी ऑफिस जाते हैं तो कभी खेल विभाग के अधिकारियों से मिलते हैं। लेकिन हर जगह उन्हें आश्वासन के अलावा कुछ नहीं मिलता है। सोमवार को तीनों प्लेयर्स झारखंड के खेल मंत्री अमर कुमार बाउरी से भी मिले, लेकिन यहां भी उन्हें केवल आश्वासन ही मिला। कहा गया कि देखते हैं क्या कर सकते हैं। सरकार के पास इन डिजेबल इंटरनेशनल प्लेयर्स को देने के लिए कैश प्राइज तक नहीं है।

जनवरी में श्रीलंका जाना था खेलने, पैसे के अभाव में नहीं जा पाए

मुकेश कंचन, विपुल और निशांत कुमार ने बताया कि मैच चाहे नेशनल हो या इंटरनेशनल, इन्हें आने जाने का खर्च भी नहीं मिलता है। आगरा में हुए एशिया कप खेलने भी तीनों अपने खर्च पर ही गए थे। ये बताते हैं कि दूसरे देश में होने वाले चैंपियनशिप खेलने जाने के लिए भी खर्च नहीं मिलता है, ये लोग अपने खर्च से ही विदेशों में भी मैच खेलने जाते हैं। मुकेश कंचन ने कहा कि जनवरी में एक सीरिज खेलने मुझे श्रीलंका जाना था। लेकिन पैसा नहीं होने के कारण मैं नहीं जा सका। ऐसा अक्सर होता है कि कोई टूर्नामेंट होता है और हम पैसा नहीं होने के कारण नहीं जा पाते हैं। हमें समझ में नहीं आता कि हम किसके सामने हाथ फैलाएं। हम तो खुद ही बदहाल है और अपना गुजारा किसी तरह से कर पाते हैं.

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व‌र्ल्ड चैंपियन गोलू की कोई पूछ नहीं

व‌र्ल्ड कप जीतने वाले ब्लाइंड इंडियन क्रिकेट टीम के प्लेयर गोलू कुमार की भी झारखंड में कोई पूछ नहीं है। जबकि व‌र्ल्ड कप दिलाने में झारखंड के इस गोलू कुमार का भी अहम योगदान था। साउथ अफ्रीका से ये चैंपियन बन कर लौटे, लेकिन झारखंड में इन्हें कोई पूछने वाला भी नहीं है। सिर्फ एक दिन जुलूस निकाला गया और इसके बाद ये भी गुमनाम हो गये। गर्वमेंट की ओर से काेई सपोर्ट नहीं मिला।

राजेश-नमिता ने अमेरिका में जीता गोल्ड, देश्ा में कोई वैल्यू नहीं

राजेश और नमिता ने ख्0क्क् में अमेरिका में हुए स्पेशल ब्लाइंड इंटरनेशनल टूर्नामेंट में जैवलीन थ्रो में गोल्ड मेडल अपने नाम किया था। तीन साल हो गये लेकिन अभी तक इनको न तो कोई कैश प्राइज मिला है और न ही कोई स्कॉलरशिप।

सरकार से नहीं मिलता कोई सपोर्ट

डिजेबल प्लेयर्स के लिए झारखंड सरकार के पास कोई पॉलिसी ही नहीं है। यहां इन प्लेयर्स के टैलेंट से कोई लेना-देना नहीं है। कोई अमेरिका में जीते या साउथ अफ्रीका में। इन इंटरनेशनल प्लेयर्सं को कोई स्कॉलरशिप तक नहीं दिया जाता है। नाम ये झारखंड का ही रौशन करते हैं, लेकिन झारखंड सरकार के रवैये से इनके हौसले पस्त हो जाते हैं और इनका करियर कहीं गुमनाम हो जाता है।

क्या कहते हैं प्लेयर

टीम इंडिया के प्लेयर व‌र्ल्ड कप जीतकर आते हैं, तो उन्हें करोड़ों के साथ जॉब ऑफर भी होता है। हमें कम से कम कैश प्राइज तो दिया जाए, ताकि हमारा भी मनोबल बढ़े और देश व राज्य का मान-सम्मान और बढ़ाएं। हम देश के लिए जी जान लगाकर खेलते हैं। लेकिन जीत कर आने के बाद केवल मायूसी ही हाथ लगती है। हम जीतकर भी हार जाते हैं।

-मुकेश कंचन, ब्लाइंड इंटरनेशनल क्रिकेट प्लेयर

हम कई सालों से डिजेबल क्रिकेट ख्ेाल रहे हैं। कभी भी गवर्नमेंट का सपोर्ट नहीं मिला। मैंने कई बार स्टाईपेन के लिए फार्म भरकर जमा किया, लेकिन आज तक मुझे वह भी नसीब नहीं हो पाया। समझ में नहीं आता कि हमारे साथ ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों किया जा रहा है।

विपुल सेन गुप्ता, ब्लाइंड इंटरनेशनल क्रिकेट प्लेयर

हम अपनी विनर ट्राफी लेकर भटक रहे हैं और यहां के अधिकारी कुछ सुनने के लिए तैयार नहीं है। अब ऐसे में हम क्या करे। या तो क्रिकेट खेलना छोड़ दे या फिर सड़क पर धरना देने बैठ जाएं।

निशांत कुमार, ब्लाइंड इंटरनेशनल क्रिकेट प्लेयर

Posted By: Inextlive