इविवि में जल्द ही असिस्टेंट प्रोफेसर एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के रिक्रुटमेंट के लिए इंटरव्यू की शुरुआत होगी। जबकि पूर्व में कहा गया था कि पारदर्शी चयन प्रक्रिया के लिए असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्ती में रिटेन एग्जाम भी होंगे।

ALLAHABAD: इसपर 14 दिसंबर 2016 को हुई एकेडमिक काउंसिल की मीटिंग में रणनीति भी तय की गई थी। लेकिन वक्त बीतने के साथ सारी बातें हवा-हवाई हो गई। अब इस बार भी चयन डायरेक्ट इंटरव्यू के माध्यम से किए जाने की तैयारी है। इस अहम मसले पर दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट ने युवाओं से उनकी राय ली तो कई बातें निकलकर सामने आई।

 

किसे नहीं पता एपीआई का खेल?

परिचर्चा में शामिल अखिलेश ने कहा कि इंटरव्यू के लिए शॉर्ट लिस्टिंग एपीआई स्कोर से की जाएगी। यह एपीआई स्कोर रिसर्च पेपर, सेमिनार में पेपर प्रेजेंटेशन, बुक्स, एकेडमिक एक्सपीरियंस के आधार पर तैयार होता है। जबकि हकीकत यह है कि आज के समय में इन सब चीजों को फर्जी तरीके से जनरेट कर लेना कोई बड़ी बात नहीं है। अखिलेश के मुताबिक हायर एजुकेशन इंस्टीट्यूशंस में एक ट्रेंड है। आईआईटी वाले यूनिवर्सिटी के क्वालीफाइड कैंडिडेट्स और सेंट्रल यूनिवर्सिटी वाले स्टेट के कैंडिडेट्स को सेलेक्ट करने से बचते हैं। डायरेक्ट इंटरव्यू की स्थिति में विशेषज्ञों के दिमाग में एक पूर्वाग्रह काम करता है कि कौन अच्छा और कौन खराब कैंडिडेट है? ऐसे में रिटेन एग्जाम न होने की स्थिति में चयन की पारदर्शिता प्रभावित होती है।

 

सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है

प्रदीप सिंह कहते हैं कि ऐसे समय जब भारत की सुप्रीम कोर्ट भी यह कह चुकी है कि किसी भी चयन का आधार मात्र इंटरव्यू नहीं हो सकता। ऐसे में डायरेक्ट इंटरव्यू के जरिए सेंट्रल यूनिवर्सिटी में शिक्षकों की भर्ती संदेह पैदा करती है। प्रदीप का कहना है कि यूनिवर्सिटी में मानमाने तरीके से चयन से वंचित कर देने का ज्वलंत प्रमाण एनएफएस (नॉट फाउंड सुटेबल) की वह व्यवस्था है, जिसमें एक्सपर्ट पैनल पर निर्भर होता है कि वह जिसे चाहे चयनित करे और जिसे चाहे एनएफएस करके बाहर का रास्ता दिखा दे। एनएफएस के तौर तरीकों का विरोध समय समय पर होता रहा है।

 

रिटायरमेंट की उम्र में भी आवेदन

वहीं कमल प्रताप हैरानी जताते हुए कहते हैं कि देश में नेट, जेआरएफ और पीएचडी धारक युवाओं की कोई कमी नहीं है। लेकिन इविवि शिक्षक भर्ती में 65 वर्ष तक के अभ्यर्थियों के लिये भी आवेदन का प्राविधान किया गया। जबकि यूनिवर्सिटी में शिक्षकों के रिटायरमेंट की आयु भी 65 वर्ष है। मनीष गोस्वामी कहते हैं कि यूनिवर्सिटीज में पीएचडी में एडमिशन से लेकर शिक्षक बनने तक के सफर में फेस वैल्यू और जैक की इम्पार्टेस आज किसी से छिपी बात नहीं रह गई है।

इन बातों पर करें गौर

-ग्रुप सी एंड डी की भर्ती में इंटरव्यू को खत्म कर दिया गया है।

-टेक्निकल यूनिवर्सिटी की शिक्षक भर्ती में रिटेन एग्जाम के बाद कैंडिडेट को शार्ट लिस्ट किया जाता है।

-उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग से अशासकीय महाविद्यालयों में नियुक्ति रिटेन और इंटरव्यू के आधार पर होती थी।

-यूजीसी और सीएसआईआर असिस्टेंट प्रोफेसर की योग्यता के लिये नेट का एग्जाम करवाते हैं।

-लोक सेवा आयोग राजकीय महाविद्यालयों की शिक्षक भर्ती के लिये स्क्रीनिंग एग्जाम करवाता है।

-आईएएस और पीसीएस जैसे एग्जाम भी तीन फेज में प्री, मेंस और इंटरव्यू के आधार पर होते हैं।

यह सोचने वाली बात है कि राज्य के अशासकीय महाविद्यालयों और राजकीय महाविद्यालयों में भर्ती रिटेन एग्जाम के बेस पर होती है। लेकिन यूनिवर्सिटी में क्यों सीधे साक्षात्कार के माध्यम से चयन होता है ?

पद्म भूषण प्रताप सिंह

केन्द्र और राज्य की सरकार ने ही कई मौकों पर यह कहा है कि भर्तियों में भ्रष्टाचार का कारण लिखित परीक्षा न होना है। यूजीसी ने भी कई बार लिखित परीक्षा करवाने पर जोर दिया है। इससे स्क्रीनिंग की मनमानी पर भी रोक लगती है।

प्रदीप सिंह

शिक्षक भर्ती के एक्सपर्ट पैनल में हेड, डीन और बाहरी एक्सपर्ट शामिल होते हैं। इंटरव्यू से पहले इनसे सेटिंग का खेल शुरू हो जाता है। पेपर लेस रिक्रुटमेंट ड्राइव के जरिये निष्पक्षता का दावा खोखला नजर आ रहा है।

शिव शंकर गुप्ता

रिटेन एग्जाम हो तो जुगाड़ वाले लोग पहले ही बाहर हो जाते हैं। मेरा सवाल है कि आखिर क्या कारण है कि माइनारटी या आटोनॉमस इंस्टीट्यूशंस में पढ़ाने वाले एक खास कम्यूनिटी के लोग ही भरे होते हैं।

कमल प्रताप सिंह

आज यूनिवर्सिटी में टीचर बन पाना सबसे मुश्किल काम है। शिक्षक भर्ती में इतने फर्जीवाड़े की संभावना होती है कि कई बार आवेदन लेना पड़ता है। भर्ती को निरस्त करना पड़ता है। पूर्व कुलपति प्रो। एके सिंह भी इन सब चीजों से जूझते रहे और मात्र 50 से ज्यादा ही शिक्षक चयनित कर सके।

विकास कनौजिया

चयन में पारदर्शिता के आभाव में अधिकांश यूनिवर्सिटीज और कॉलेजेस में शिक्षकों के पद खाली हैं। इनकी भरपाई के लिये मजबूरन रिसर्च स्कालर्स को क्लास लेनी पड़ रही है।

मनीष गोस्वामी

Posted By: Inextlive