क्या हम डर की वजह से मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा या गिरजाघर जाते हैं। अगर डर है तो इसे हमारे मन में भरा किसने? हमें डराकर कौन अपनी दुकान चला रहा है। बीच सड़क धार्मिक कार्य होने और इससे होने वाली प्रॉब्लम के बाद भी हमारी जुबान क्यों नहीं खुलती। क्या ईश्वर, अल्लाह, वाहेगुरु ऐसा करने की आजादी देते हैं। धर्म को तर्क और विवेक की कसौटी पर कसने की हमारी प्राचीन परंपरा रही है। हाल ही में आई फिल्म पीके ने उसी तर्क को नए रूप में हमारे सामने पेश किया है। हमने अपने शहर को पीके की नजर से देखा। आई नेक्स्ट रिपोर्टर पीके बन शहर के डिफरेंट एरिया में गया और देखा कि किस तरह धर्म और आस्था के नाम पर लोग चुप हैं और किस तरह आस्था के नाम पर कुछ लोगों की दुकान चल रही है। हमने जो देखा वह बिल्कुल रांग नंबर निकला

यहां मंदिर नहीं होता, तो होती सहूलियत

स्थान - साकची ऑटो स्टैंड

समय - दोपहर ख् बजकर क्भ् मिनट

स्टैंड में दोनों तरफ से ऑटो लगी थीं इसलिए लोगों को उस बीच से निकलना मुश्किल हो रहा था। फिर पीके ने देखा कि स्टैंड में ही एक मंदिर बना है। इस वजह से लोगों को वहां से निकलने में प्रॉब्लम हो रही है। मन में चाहे जो भी हो पर वहां से गुजरते लोग मंदिर के सामने सिर झुकाना नहीं भूल रहे थे।

पीके का सवाल - क्या यह जरूरी है कि ऑटो स्टैंड जैसे भीड़-भाड़ वाली जगह में भी मंदिर हो। मंदिर की वजह से लगने वाली भीड़ से प्रॉब्लम होने के बाद भी लोगों में उस मंदिर और भगवान के प्रति उतनी ही श्रद्धा रहती होगी?

मंदिर को ही बना डाला कमाई का जरिया

स्थान-राम मंदिर बिष्टुपुर

समय - दोपहर फ् बजकर क्0 मिनट

पीके मंदिर के कैंपस में इंटर करता है। माहौल तो आस्था और विश्वास का नजर आ रहा था, लेकिन यह क्या। मंदिर में दुकान। पीके यह देखकर हैरान रह गया कि मंदिर कैंपस में ही न सिर्फ बड़ी सी फर्नीचर की दुकान थी, बल्कि मंदिर के अंदर ही फल और दूसरे चढ़ावे की दुकान भी थी। यानी मंदिर को कमाई का जरिया बना लिया गया।

पीके का सवाल - मंदिर तो आस्था और विश्वास की जगह होती है। यहां तो भक्त पूजा-पाठ के लिए आते हैं। ऐसे पवित्र जगह पर बिजनेस क्यों? भगवान के नाम पर व्यवसाय कर रहे लोग भी उनके भक्त ही कहलाएंगे?

पान मसाला बेचने के लिए ध्वजा का यूज

स्थान - बिष्टुपुर

समय - तीन बजकर भ्0 मिनट

पीके यह देख दंग रहा गया कि पान मसाला बेचने के लिए हनुमान जी को चढ़ाए ध्वजा को यूज किया जा रहा था। ध्वजा में रस्सी बांध पान मसाला बेचा जा रहा था। सैकड़ों लोग वहां डेली अपना सिर झुकाते होंगे, लेकिन किसी ने ऐसा करने से मना नहीं किया होगा। करे भी तो कैसे, मन में डर जो है। यही सोचकर चुप रह जाते हैं कि जो कर रहा है वह उसका पाप। इसमें हमारा क्या।

पीके का सवाल - लोग अपनी सहूलियत के हिसाब से भगवान को क्यों याद करते हैं? जब उनके प्रति विश्वास है कि वे सबकुछ देख रहे तो क्या वे यह नहीं देख रहे होंगे कि कोई ध्वजा का यूज पान मसाला बेचने के लिए कर रहा है।

अरे जनाब, सामने देखकर ड्राइव नहीं करेंगे तो

स्थान - साकची जेल चौक, काली मंदिर

समय - शाम चार बजे

पीके वहां रुका तो उसने देखा कि मंदिर के सामने से गुजरने वाले लोग एक बार शीश झुकाने के बाद ही आगे बढ़ रहे थे। उसी समय कुछ ऐसे लोग भी गुजरे जो बाइक और कार से थे। पीके ने देखा कि बाइक सवार ने मंदिर की तरफ देख सिर झुकाया, कार चला रहे सज्जन ने भी ऐसा ही किया। जरा बताइए, ड्राइव करते हुए सामने से ध्यान हटाने पर अगर सामने कोई आ जाता तो।

पीके का सवाल - अक्सर कहा जाता है कि ऊपर वाले को मन से याद करना चाहिए। तो मन से याद करने का मतलब यह तो नहीं कि ड्राइव करते समय सामने से नजरें ही हटा ली जाएं। नजर हटते ही सामने से कोई दूसरी गाड़ी या कोई व्यक्ति आ जाए तो क्या होगा और उसके लिए जिम्मेवार कौन होगा?

मंदिर में चढ़ावा और बाहर गंदगी

स्थान - शीतला मंदिर, साकची

समय - चार बजकर ख्0 मिनट

पीके मंदिर के बाहर कुछ देर खड़ा रहा, ताकि यह देख सके कि मंदिर से पैर बाहर आते ही लोगों की सोच कितनी बदलती है। पीके यह देख हैरान हो गया कि मंदिर की बाउंड्री से सटे नाले को लोगों ने कचरा घर बना रखा था। जो भी हाथ में होता उसे उसी नाले में डाल रहे थे। यहां तक कि मंदिर के पुजारी और आस-पास के दुकानदार भी ऐसा ही कर रहे थे। मंदिर में तो लाखों का चढ़ावा लेकिन बाहर सिर्फ गंदगी।

पीके का सवाल - ईश्वर सिर्फ मंदिरों में तो बसते नहीं। वे तो हर इंसान में और हर जगह मौजूद हैं, तो उनकी प्रतिमा से ओझल होते ही हम यह क्यों भूल जाते हैं कि हम जहां भी जो कुछ कर रहे हैं उसपर ईश्वर की नजर है।

रोड पर मंदिर है, जरा देख कर

स्थान - कालीमाटी रोड

समय - दोपहर तीन बजे

रोड पर गुजरने वाले लोग बहुत संभलकर बाइक चला रहे थे। पीके ने देखा कि दो से ज्यादा बाइक सामने आ जाए तो उन्हें रुकना पड़ रहा था, लेकिन सभी चुप थे। बोलते भी कैसे, बीच रोड पर मंदिर जो बना था। मंदिर तो इंसान को मन का सुकून देता है, लेकिन यहां तो सुकून जाता दिख रहा था।

पीके का सवाल - बीच सड़क पर भगवान रहें तभी वे नजर आएंगे क्या? उनका स्थान तो मन में होता है फिर रोड पर उनके मंदिर बनाकर आम लोगों के लिए प्रॉब्लम क्यों क्रिएट किया जाता है?

Posted By: Inextlive