कहा जाता है कि अमरीकी राष्ट्रपति थियोडोर रूज़वेल्ट एक दिन में कई किताबें पढ़ा करते थे। अपनी आत्मकथा में उन्होंने कहा है कि वह दिन में तीन किताबें पढ़ा करते थे।

मगर हर कोई ऐसा नहीं कर सकता। कई बार किताबें इतनी लंबी होती हैं कि एक बार में उन्हें पढ़ना मुमकिन नहीं होता। कई बार समय नहीं मिल पाता तो कई बार एकाग्रता नहीं बन पाती। कई बार दोनों कारण हावी रहते हैं।

मगर जहां इंसान की क्षमता खत्म़ होती है, वहां तकनीक मदद के लिए आगे आ जाती है। अब बहुत सारे ऐसे एप मौजूद हैं जिनकी मदद से आप भारी-भरकम किताबों को भी 15 मिनट में पढ़ सकते हैं।

 

पलकें झपकते ही पूरी किताब ख़त्म

एक ऐसे ही ऐप ब्लिंकिस्ट के सह-संस्थापक निकोलस जैन्सन बीबीसी को बताते हैं, "जब कॉलेज खत्म करने के बाद हमने काम करना शुरू किया तो पढ़ने और सीखने के लिए वक़्त मिलना कम हो गया। इसी वक्त एहसास हुआ कि हम और बाकी लोग ज़्यादा वक्त स्मार्टफ़ोन इस्तेमाल करने में लगा रहे हैं। इसी से विचार आया कि क्यों न किताबों को सेलफ़ोन में समेट दिया जाए।"

यहीं से ब्लिंकिस्ट की शुरुआत हुई। एंड्रॉयड और आईओएस के लिए उपलब्ध यह एप 18 विभिन्न श्रेणियों में बांटी गई 2000 से ज़्यादा किताबों को संक्षिप्त रूप में पेश करता है, जिन्हें 15 मिनट में पढ़ा जा सकता है।

इस एप को साल 2012 में जर्मनी के बर्लिन में बनाया गया था। अब दुनिया भर में 10 लाख से ज़्यादा लोग इसे इस्तेमाल कर रहे हैं।

इसमें किताबों को ब्लिंक्स (पलक झपकने के अंतराल में लगने वाले समय) में बांटा गया है। यानी एक पलक झपकने तक एक पेज पढ़ा जा सकता है। अगर आप कार या बस में हों, तब इन्हें सुन भी सकते हैं।

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आलोचना भी होती है

जिनके पास वक्त कम होता है, उनके लिए तो यह काम का विचार लगता है। मगर इसकी कुछ कमियां भी हैं।

पहली बात तो यह है कि सार पढ़ने की पूरी किताब पढ़ने से तुलना नहीं की जा सकती।

बहुत से लोगों को यह चिंता भी है कि इससे कम समझदार और आलसी समाज का निर्माण होगा, साथ ही टेक्नोलॉजी पर निर्भरता और बढ़ जाएगी।

 

अंग्रेज़ी अख़बार द गार्डियन की पत्रकार डिएन शिपली एक स्तंभ में लिखती हैं, "इस तरह के ऐप ठीक हो सकते हैं मगर उपन्यासों को लेकर ये फ़िट नहीं बैठते।"

द अटलांटिक के अमरीकी पत्रकार ओल्गा ख़जान लिखते हैं कि ब्लिंकिस्ट हर सेक्शन को लेकर जो संक्षिप्त जानकारी देता है, वह बहुत कम कम और अस्पष्ट होती है।

हालांकि ब्लिंकिस्ट के सह-संस्थापक होल्गर सीम इन बातों को समस्या नहीं मानते।

वह कहते हैं, "हम पूरी किताब पढ़ने के चलन को खत्म नहीं कर रहे। हम तो लोगों को उन बातों और मुद्दों की जानकारी दे रहे हैं जिनका सामान्य तौर पर उन्हें पता नहीं चल पाता।"

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Posted By: Chandramohan Mishra