मेरठ। चुनाव का मौसम है। लिहाजा शहरभर में सियासी चर्चाएं भी खूब हो रही हैं। हालांकि उम्मीदवारों का नामांकन तक हो चुका है। 11 फरवरी को जनता अपना भाग्य विधाता चुनने के लिए मतदान करेगी। ऐसे में चुनाव पर चर्चा न हो ऐसा हो नहीं सकता है। आई नेक्स्ट ने शुक्रवार को ऑफिस में चाय पर चर्चा की। इस मौके पर शहर के कई गणमान्य नागरिकों ने भाग लिया। चुनावी सरगर्मियों पर जब चर्चाएं शुरू हुई तो हर किसी ने अपने अपने जवाब दिए। चर्चा में बस एक सवाल ने ही सियासी जायके को और रोचक बना दिया। सवाल यही पूछा गया कि इस बार किसे विजयश्री दिलाई जाएगी। बस इसी बात से चर्चा शुरू हुई तो सियासी बाते सामने आती चली गई।

- राजनीतिक टिप्पणी करते हुए अधिवक्ता उर्वशी सिंह ने कहा कि शहर में समस्या का अंबार है। कोई भी नेता समस्याओं की ओर ध्यान नहीं देता है। मेरठ में किसी भी नेता ने ऐसा कोई ऐसा काम नहीं किया जोकि याद करने लायक हो। शहर में सफाई व्यवस्था, कानून सब बेकार है। मेरठ से ज्यादा तो दूसरे शहरों में विकास देखने को मिलता है।

- बात विकास की चल रही थी तो विवेक कुमार बोल उठे कि शहर का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि परतापुर में मेरठ शहर में एंट्री करने के लिए कोई साइन बोर्ड तक नहीं लगा है। शहर की सड़कों को बुरा हाल है। कोई भी ऐसी चीज शहर में नहीं है जो सही हो। मेरठ ने कई सांसद विधायक और मंत्री दिए है। लेकिन किसी ने भी मेरठ के विकास के लिए कुछ नहीं किया है।

- वहीं पास बैठे पंकज बोले कि नेता दो प्रकार के होते हैं। पहले जिनकी पकड़ पार्टी में होती है दूसरे जिनकी पकड़ जनता में होती है। मेरठ के लिए यह बहुत शर्मनाक बात है कि एक भी ऐसा नेता नहीं है जिसकी जनता में पकड़ हो। आज के युवाओं को यह तक नहीं पता है कि मेरठ का सांसद कौन है और विधायक कौन है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है मेरठ के जनप्रतिनिधि जनता के बीच कितना रहते हैं।

- सबकी बातें ध्यान से सुन रहे सुनील तनेजा से भी रुका नहीं गया। वे बोले कि मेरठ में कई प्रोजेक्ट आए। लेकिन आज तक कोई भी प्रोजेक्ट पूरा नहीं हुआ है। चाहे फिर वह मेट्रो की बात हो या फिर स्मार्ट सिटी की बात। मेरठ में हवाई अड्डा बनने की बात कितनी बार उठ चुकी है। लेकिन इतने साल बीत गए। उसका अब जिक्र होना भी बंद हो गया है। महज चुनाव के समय वादे करते हैं नेता और चुनाव बाद दिखाई भी नहीं देते हैं।

- इतना सुनते ही यतेंद्र साहनी बोले कि प्रदेश में कानून व्यवस्था का बुरा हाल है। अपराधी बेरोकटोक अपराध करके निकल जाते हैं। कोई भी नेता कानून व्यवस्था को ठीक करने की बात नहीं कहता है। हर कोई चुनावी वादे करता है और भूल जाता है। पांच साल में इन्होंने क्या कि या इनसे भी पूछने वाला होना चाहिए। उन्हें तो इसी आधार पर टिकट दिया जाना चाहिए।

- इतना कहना था कि सचिन राजवंशी भी बोल उठे कि वोट पार्टी और जाति के आधार पर नहीं देनी चाहिए। यदि कोई नेता डिजर्व करता है चाहे वह किसी भी पार्टी का हो उसको वोट देना चाहिए। जाति, धर्म और पार्टी के आधार पर वोट करने से कई बार ऐसा होता है अच्छा नेता हार जाता है। जिससे पूरे पांच साल के लिए शहर के विकास पर रोक लग जाती है।

टी प्वाइंट

- चाय पी रहे दीपक बोले कि नेताओं के चुनाव लड़ने की सीमा तय होनी चाहिए। एक निश्चित उम्र के बाद इनके चुनाव लड़ने पर रोक लगा देनी चाहिए। जिससे युवा आगे सके। कम से कम वह शहर का विकास तो करा सकेंगे। किसी भी नेता के कहीं से भी चुनाव लड़ने पर भी रोक लगनी चाहिए। चुनाव लड़ने के लिए कोई कानून बनाने की बात नहीं कहता है।

Posted By: Inextlive