मंदिरों में ड्रेस कोड नहीं चाहता यूथ
-तामिलनाडु के मंदिरों में जींस पहनकर जाने पर पाबंदी लगाने संबंधी मद्रास हाईकोर्ट के फैसले पर मिलीजुली प्रतिक्रिया
-मेरठ के युवाओं को बिल्कुल भी पसंद नहीं आ रही पहनावे पर पाबंदी, जबकि पंडित और ज्योतिष हैं इसके फेवर में Meerut : तमिलनाडु के मंदिरों में अब मद्रास हाईकोर्ट ने एक नया नियम लागू कर दिया है। इस नियम के तहत अब मंदिरों में ड्रेस कोड लागू भी होने लगा है, जिसमें सिर्फ देशभर से नहीं बल्कि विदेशों से भी आए भक्तों को लुंगी, बरमुडा, जींस व कसी हुई लैगिंग्स आदि पहनकर आने पर बैन लगा दिया है। एक ओर यूथ इस फैसले से खफा नजर आ रहा हैं। वहीं ज्योतिष और पंडित इस फैसले को काफी हद तक ठीक मान रहे हैं। यूथ को नहीं भाया यह आदेशहाईकोर्ट के इस फैसले को भले ही साउथ के विभिन्न मंदिरों में लागू कर दिया गया है, लेकिन सिटी के यूथ इस फैसले से बेहद खफा नजर आ रहे हैं। उनके अनुसार श्रद्धा कोई दिखावे की चीज नहीं है। यूथ का मनाना है कि श्रद्धा तो मन से होती हैं, जिसके लिए किसी भी तरह के ड्रेस कोड की आवश्यकता है।
यहां भी मंदिरों में है ड्रेस कोडजहां तमिलनाडु में मंदिरों में ड्रेस कोड में महिलाओं व पुरुषों के लिए अलग ड्रेस कोड जारी किए गए हैं। इसके साथ ही लुंगी, बरमुडा, जींस, कसी हुई लैगिंग्स आदि पर बैन लगाया गया है। पुरुष श्रद्धालुओं को धोती, शर्ट, पायजामा या पैंट-शर्ट पहनने की सलाह दी गई है, जबकि महिला श्रद्धालुओं से साड़ी या चूड़ीदार पहनने का आग्रह किया गया है। वहीं अगर देखा जाए तो मेरठ में भी कुछ मंदिर ऐसे हैं, जहां पर चमड़े की बेल्ट, पर्स और सॉक्स आदि पहनकर अंदर जाने पर बैन है। इनमें औघड़नाथ मंदिर, दुर्गा बाड़ी, काली बाड़ी, हनुमान मंदिर, गोल मंदिर, मां मंशा देवी का मंदिर, काली बाड़ी मंदिर, दुर्गा प्राचीन मंदिर आदि विभिन्न मंदिरों में चमड़े की चीजें ले जाने पर बैन है।
पंडित हैं फेवर में जहां यूथ ने इस फैसले को गलत बताते हुए इसका विरोध किया है। वहीं शहर के पंडितों व ज्योतिष ने इस फैसले को अपनी दृष्टि से सही बताया है। उनके अनुसार मंदिर के लिए सात्विक प्रवेश होना बेहद आवश्यक है। ऐसा करने से जन सामान्य को ही लाभ मिलता है। ज्योतिष का तो यह भी मानना है कि अगर सात्विक तरीके से मंदिर में प्रवेश किया जाए तो श्रद्धा भी बढ़ती है।ज्यादातर दिखते हैं जींस में
गौर किया जाए तो मेरठ में तमाम मंदिरों में हजारों श्रद्धालु हर रोज मंदिर में पूजा के लिए आते हैं। इनमें से 70 परसेंट लोग ऐसे ही आते हैं जो या तो जींस, टॉप व वेस्टर्न कल्चर की ड्रेसेज में आते हैं।
नियम मानो तो आओ मां के दर आगरा में एक मंदिर ऐसा भी है जहां के नियम-कानून बेहद सख्त हैं। वहां इंद्रपुरी में स्थित मां सिद्धिदात्री मंदिर में जींस-पैंट पर तो अंकुश नहीं है किंतु तामसी भोजन खाकर मंदिर में प्रवेश वर्जित है। पट्टिका पर साफ लिखा है कि प्याज-लहसुन और मांस-मदिरा का प्रयोग करना पूर्णत: वर्जित है। क्या कहता है यूथ? अगर मंदिर जाने के लिए भी हमें ड्रेस कोड चाहिए तो फिर इससे तो साफ है कि अब मंदिर में भी श्रद्धा को ड्रेस से तौला जाएगा। नितिन, दिल्ली रोड मंदिर में ड्रेस कोड होना तो बहुत ही गलत है। श्रद्धा तो मन से होती है ड्रेस कोड से थोड़ी होती है। सौरभ गुप्ता, रुड़की रोडअगर ड्रेस कोड से भगवान ज्यादा प्रसन्न होते हैं तो फिर तो हर कोई ड्रेस कोड पहनकर भगवान से कुछ भी मांग लेता। क्योंकि उसके ड्रेस कोड से खुश होकर भगवान उसे दे ही देते।
प्रियंका अरोड़ा, सदर मंदिर जाने के लिए केवल सच्चे मन की और श्रद्धा की आवश्यकता होती है। बाकी सब तो सोच पर डिपैंड करता है। कविश, कंकरखेड़ा मंदिर में जींस पहनकर नहीं जाना यह तो कोई सही कानून नहीं है। पूजा तो श्रद्धा से होती है ड्रेस से पूजा थोड़ी होती है। गिन्नी, लालकुर्ती पंडितों ने किया समर्थन यदि मंदिर में सात्विक परिवेश में जाए तो उसका लाभ जन सामान्य को ही मिलेगा। इसके साथ ही इससे भगवान के प्रति श्रद्धा भी बढ़ेगी। चिंतामणि जोशी, प्राचार्य, विल्वेश्वर नाथ मंदिर मंदिर में आस्था के साथ ही सात्विक परिवेश का होना भी बहुत ही आवश्यक है। क्योंकि आप जैसा वातावरण अपने साथ बनाते है वैसे ही भाव आपके मन में आते हैं। अरुण शास्त्री, पंडित, अन्नपूर्णा मंदिर