- टैलेंट होने के बाद भी आगे नहीं बढ़ पा रही है फुटबॉलर्स की पौध

- खिलाडि़यों को अपनी व्यवस्था कर ले जाते हैं एसोसिएशन के लोग

- स्पॉन्सरर से फंड की आस में बीत जाते हैं एक के बाद एक दिन

GORAKHPUR: फुटबॉल में खिलाडि़यों की नर्सरी लहलहा रही है, मगर यहां मौजूद टैलेंट बिना फंड के उभर नहीं पा रहा है। फंड की कमी के बीच खिलाड़ी आगे बढ़ने की जद्दोजहद करने में लगे हुए हैं, लेकिन कामयाबी की राह पर वही पहुंच पा रहे हैं, जिनको बैक एंड सपोर्ट है या फिर वह फैमिली से स्ट्रॉन्ग हैं। बाकी कोशिश करने वाले प्लेयर्स सुविधाओं के अभाव में अपना रास्ता बदलने को मजबूर हैं। लोकल एसोसिएशन भी अपनी कूवत के हिसाब से कोशिशों में लगे हैं, लेकिन चंदा, कॉन्ट्रीब्यूशन से यह गाड़ी काफी सुस्त रफ्तार से आगे बढ़ रही है।

प्रदेश से नहीं मिलता कोई फंड

यूपी फुटबॉल एसोसिएशन की ओर से शहर के फुटबॉल को संवारने के लिए कोई मदद नहीं की जाती। यहां तक कि खिलाडि़यों को किसी कैंप या टूर्नामेंट के लिए भेजा जाता है, तो इसके लिए लोकल फुटबॉल एसोसिएशन के जिम्मेदार खुद ही फाइनेंस मैनेज करते हैं। एसोसिएशन उन्हें एक रुपए भी नहीं मुहैया कराता। वहीं जब टूर्नामेंट होता है तो जिला फुटबॉल एसोसिएशन को पहले अपने लेवल से सारे खर्च मैनेज करने पड़ते हैं, कॉम्प्टीशन खत्म होने के बाद उनके अमाउंट का रिम्बर्स किया जाता है।

एनुअल सब्सक्रिप्शन से बढ़ रही गाड़ी

गोरखपुर में फुटबॉल की गाड़ी एनुअल सब्सक्रिप्शन से आगे बढ़ रही है। यहां मौजूद 15-20 क्लब एसोसिएशन में बने रहने और यहां के टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए एनुअल फीस भरते हैं। यही एक ऐसा फंड है, जिसके जरिए गोरखपुर के फुटबॉल को आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। सेक्रेटरी की मानें तो हर साल सभी क्लब से इस मद में 500 रुपए लिए जाते हैं, जिससे एसोसिएशन और व्यवस्था से जुड़े सभी काम होते हैं। वहीं टूर्नामेंट के दौरान पर हेड 100 रुपए पेमेंट लिया जाता है, जो एसोसिएशन के पास जाता है। यानि सारा काम एनुअल सब्सक्रिप्शन के जरिए ही करना पड़ता है।

गेम्स के लिए ढूंढते हैं स्पॉन्सर

फुटबॉल एसोसिएशन अगर किसी टूर्नामेंट की प्लानिंग करता है, तो उन्हें इसके लिए सबसे पहले स्पॉन्सरर की तलाश करनी पड़ती है। अगर कोई फाइनेंसर मिल गया, तो टूर्नामेंट हो जाता है। लेकिन अगर फाइनेंसर नहीं मिलता तो खिलाडि़यों को टूर्नामेंट का इंतजार करना पड़ता है। सिर्फ इतना ही नहीं, खेल के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले टेंट, कुर्सियों की व्यवस्था भी लोकल लेवल पर मैनेज की जाती है, जिसकी वजह से खिलाडि़यों को प्रॉपर इंतजाम नहीं मिल पाते, जिससे उनका परफॉर्मेस लेवल ऊपर जा सके।

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फुटबॉल क्लब ने बचा रखी है लाज

गोरखपुर में फुटबॉल की जो नर्सरी खिल रही है, वह गोरखपुर में चलने वाले फुटबॉल क्लब की वजह से है। जगह-जगह फुटबॉल लवर्स ने एकेडमी खोल रखी है, जहां वह खिलाडि़यों के लिए प्रॉपर इंतजाम करते हैं। उनकी जरूरतों को पूरा करते हैं। वहां खिलाडि़यों को सिर्फ और सिर्फ अपने खेल पर फोकस करना पड़ता है, जिससे उनका टैलेंट निखरता है। अगर वह भी एसोसिएशन के भरोसे रहें, तो उनका गेम भी बेहतर नहीं हो पाएगा और जो गेम अभी शहर में होता नजर आ रहा है, उस पर पूरी तरह से फुलस्टॉप लग जाएगा।

वर्जन

यूपी फुटबॉल एसोसिएशन की ओर से कोई भी फंड नहीं मिलता, जिससे रेग्युलर गेम्स और कैंप कराए जा सकें। लीग में भी सारी व्यवस्था खुद करनी पड़ती है। कुछ शहर के रिनाउंड लोग और फुटबॉल लवर्स फाइनेंस कर देते हैं, जिससे फुटबॉल अभी भी जिंदा है।

- मो। हमजा खान, सेक्रेटरी, डिस्ट्रिक्ट फुटबॉल एसोसिएशन