पूरे रमजान माह में सिलाई मशीनों पर डटे रहने वाले टेलर्स बदहाल

prayagraj@inext.o.in

इनके बिजनेस को इंडस्ट्री का दर्जा नहीं है। इनका बिजनेस प्रोडक्शन से जुड़ा नहीं है। लेकिन, किसी भी कपड़े को कोई भी स्टाइल देने के चलते अपनी मजबूत पैठ बनाये रखने वाले टेलर्स को लॉक डाउन ने कहीं का नहीं छोड़ा है। उनके हाथ में काम नहीं है। ईद का पूरा बिजनेस मारा गया और अब लगन का सीजन भी खाली जाने वाला है। इन स्थिति ने कारोबार से जुड़े लोगों के माथे पर चिंता की लकीरें खींच दी हैं। प्राब्लम यह है कि इनकी समस्या सुनने वाला भी कोई नहीं है।

22 मार्च से बंद है काम

टेलरिंग बिजनेस से जुड़े आफताब आलम बताते हैं कि उनका काम जनता कफ्र्यू के दिन 22 मार्च से बंद है। इसके बाद लॉकडाउन शुरू हुआ और यह बढ़ता चला गया तो रुटीन के आर्डर मिलने भी बंद हो गये। उम्मींद थी कि रमजान माह के पहले सब कुछ नार्मल हो जायेगा लेकिन कुछ नहीं बदला। लोगों से उधार लेकर किसी तरह जिंदगी की गाड़ी खींचने वाले आफताब कहते हैं कि ईद आ गई है। समझ में नहीं आ रहा कि अब किससे उधार लें। उन्होंने कहा कि इस बिजनेस से जुड़े ज्यादातर लोग मुसीबत में हैं क्योंकि हमारी तरफ न तो सरकार का ध्यान है और न कॉमन मैन का।

लग जाता था नो ऑर्डर प्लीज का बोर्ड

आफताब के साथ इस बिजनेस से जुड़े मो। तारीक, मो। नदीम और सरफराज आलम बताते हैं कि पिछले साल तक स्थिति यह हो जाती थी कि 14 या 15 रमजान तक शाप पर नो ऑर्डर प्लीज का बोर्ड लगाना पड़ जाता था। क्योंकि कुर्ता पैजामा, पठानी सूट समेत कई वैरायटी के डिजाइनर कुर्ता आदि सिलने का ऑर्डर बहुत अधिक हो जाता था। तब ईद पर सभी तरह के खर्च निकालने के बाद भी 30 से 40 हजार तक की बचत हो जाती थी।

लॉकडाउन के कारण इस बार शाप और घर का किराया देना भी इस समय मुश्किल हो गया है। अभी तक 15 हजार रुपए तक कर्ज ले चुके हैं। ऐसे में ईद कैसे मनाएंगे। खुदा ही जाने।

आफताब आलम

टेलर व्यवसाय से जुड़े लोगों को इस समय सबसे अधिक मुसीबत उठानी पड़ रही है। लेकिन इस ओर किसी का ध्यान नहीं जा रहा है। आखिर हमारा भी त्यौहार है। क्या करें, कुछ समझ नहीं आ रहा है।

मोहम्मद तारीक

पिछले सालों तक ईद पर इतना काम का ऑडर आ जाता था, कि लगता था किसी प्रकार टाइम से पूरा हो जाए, लेकिन इस बार मार्च से चल रहे लॉक डाउन ने हालत खस्ता कर दी है।

नदीम अहमद

एक तरफ कोरोना और दूसरी तरफ लॉकडाउन के कारण इस समय ऐसी लाचारी हो गई है कि ईद जैसे पर्व को भी मनाने के लिए कहां से व्यवस्था की जाए। ये समझ नहीं आ रहा है।

मोहम्मद सरफराज