- लोकरंग महोत्सव में दिन भर सजी रहती है फोक संगीत की महफिल

- इन कलाओं को जिन्दा रखने की कोशिशों को लग रहे नए पंख

ALLAHABAD: लोक कलाएं हमारे जीवन का अहम हिस्सा हैं। ये हमें अपनी परम्पराओं से जोड़ने का काम करती हैं। इसीलिए इन्हीं बचाए रखना आज के समय में सबसे अधिक जरूरी है। ये बातें एनसीजेडसीसी में चल रहे भारत लोक रंग महोत्सव के दौरान वरिष्ठ साहित्यकार व रंगकर्मी नंदल हितैषी ने कहीं। उन्होंने कहा देश के हर स्टेट व एरिया की अपनी पारम्परिक संस्कृति है, जो हमें सामाजिक मूल्यों के साथ जीने की कला सिखाती है। इनमें शामिल गीत संगीत व नृत्य में अपनी माटी की सुगंध मिलती है। यही कारण है कि गवर्नमेंट जॉब छोड़कर लोक संगीत की सेवा कर रहा हूं। इलाहाबाद व आसपास की लोक संस्कृति को आगे ले जाने के लिए प्रयास कर रहा हूं। जिससे आने वाली पीढ़ी को पता चल सके कि हमारी संस्कृति दुनियां में सबसे अधिक समृद्धिशाली है।

चौपाल में सजती थी महफिल

इलाहाबाद व उसके आसपास के एरिया में सबसे अधिक प्रचलन चौपाल में लोक संगीत का प्रदर्शन का था। ये संगीत खास तौर पर खेतों में फसल तैयार होने के समय खुशी में आयोजित किए जाते थे। इसकी खासियत ये थी कि इसमें पुरुष ही महिलाओं का किरदार निभाते थे। क्योंकि उस समय गांव घर की महिलाएं पर्दा प्रथा के कारण लोगों के सामने नहीं आती थीं। ये परम्परा आज भी कई मायने में जिन्दा है। इसी कारण आज भी इसमें वही मिठास कायम है, जो पहले के समय में देखने को मिलती थी। चौपाल की परम्परा ख्भ्0 साल पुरानी है। इन क्षेत्रों में होने वाली नौटकी भी लगभग इतनी ही पुरानी है। जो आज भी देखने को मिलती है।

कलाकारों की हो रही कमी

लोक संगीत कार्यक्रम को लोग देखना तो चाहते हैं, लेकिन उसे कॅरियर के रूप में कम ही लोग अपनाते हैं। जो कलाकार किसी एनजीओ या संस्था से जुड़े हैं, वो ऐसी कलाओं के लिए मेहनत करते हैं। लेकिन आजीविका चलाने के लिए दूसरे कार्यो में भी लगे रहते हैं। नंदल हितैषी बताते हैं वे खुद भी अपनी आजीविका चलाने के लिए पेंशन पर निर्भर हैं.इंटेलिजेंस ब्यूरो से रिटायरमेंट लेने के बाद से ही वे लोक संगीत कलाओं को आगे ले जाने के लिए प्रयास कर रहे हैं। ऐसे आयोजनों में वे लगातार बड़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं। वे कहते हैं कि अब उनके जीवन का मकसद ही है कि ऐसी कलाओं को इंटरनेशनल लेवल पर फेम दिलाया जा सके और बड़ी संख्या में यंगस्टर्स को इससे जोड़ा जा सके।