- 27 करोड़ हर माह एफबी का करते हैं यूज

- 18 से 65 के बीच इनकी उम्र

- वर्ष 2014 के चुनाव के बाद दोगुनी हुई एफबी यूजर्स की संख्या

- 63 फीसद से ज्यादा सोशल मीडिया पर एक्टिव

-लोकसभा चुनाव 2019 में सोशल मीडिया का होगा अहम रोल

-चुनाव आयोग ने की सघन निगरानी की व्यवस्था

-प्रचार और शांतिभंग करने वाले मैसेज सर्कुलेट करना पड़ेगा भारी

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LUCKNOW: लोकसभा चुनावों में बिना चुनाव आयोग की अनुमति के सोशल मीडिया पर एकाउंट बनाकर चुनाव प्रचार करना भारी पड़ सकता है. इसका खर्च प्रत्याशी के चुनाव के खाते में जोड़ा जाएगा. साथ ही जानकारी न देने पर उसका नामांकन भी रद हो सकता है. निर्वाचन आयोग ने सोशल मीडिया पर गहन निगरानी के लिए टीमें गठित की हैं, जिनके माध्यम से हर जिले में सोशल मीडिया पर सघन निगरानी रखी जाएगी.

एकाउंट की देनी होगी जानकारी
लोकसभा चुनाव लड़ने वाले सभी प्रत्याशियों को सोशल मीडिया पर एकाउंट बनाने और कंटेंट की जानकारी निर्वाचन आयोग को उपलब्ध करानी होगी. एडीएम प्रशासन श्रीप्रकाश गुप्ता ने बताया कि सोशल मीडिया के द्वारा किए जा रहे प्रचार का खर्च प्रत्याशी के खाते में जोड़ा जाएगा. वह जो भी एकाउंट ओपेन करेंगे उस पर नजर रखी जाएगी. किसी भी कंडीडेट के जितने एकाउंट होंगे उस आधार पर उनका खर्च जोड़ा जाएगा. इसमें एकाउंट हैंडल करने वाले की सैलरी, इंटरनेट चार्जेज सहित अन्य चार्ज जोड़े जाएंगे.

पब्लिक भी नहीं कर सकेगी प्रचार
आम लोग भी किसी भी कंडीडेट के फेवर में बड़े स्तर पर सोशल मीडिया पर प्रचार प्रसार नहीं कर सकेंगे. कोई भी ऐसा मैसेज प्रसारित नहीं करेंगे जिससे अशांति की आशंका हो. उन्होंने बताया कि शिकायत मिलने पर ऐसे लोगों के खिलाफ नियमों के तहत कार्रवाई की जाएगी. डीएम कौशल राज शर्मा ने बताया कि सोशल मीडिया पर प्रसारित होने वाले मैसेज पर साइबर सेल नजर रखेगी. कोई शिकायत मिलने पर संबंधित के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी इसलिए चुनाव के समय कोई ऐसा मैसेज प्रसारित न करें जिससे शांतिभंग की आशंका हो, या जाति, धर्म दुर्भावना हो.

सोशल मीडिया पर संघर्ष
लोकसभा के चुनावी समर में इस बार जमीनी लड़ाई के अलावा सोशल मीडिया पर भी खूब संघर्ष देखने को मिलेगा. अभी से राजनीतिक दलों के समर्थन व विरोध में सोशल मीडिया पर जबरदस्त माहौल बनाया जा रहा है. प्रत्याशियों के समर्थक व विरोधी भी अपनी बात लोगों और पार्टी तक पहुंचाने के लिए डिजिटल और सोशल माध्यमों का खूब प्रचार कर रहे हैं.

सोशल मीडिया पर लड़ा जा रहा चुनाव
इस बार के चुनाव का एक बड़ा हिस्सा सोशल मीडिया पर लड़ा जाएगा. एक्सप‌र्ट्स के अनुसार भारत में 18 से 65 आयु वर्ग के 27 करोड़ लोग हर महीने फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के मुकाबले देश में फेसबुक का इस्तेमाल करने वालों की संख्या अब बढ़ कर दोगुनी से भी अधिक हो गई है. फेसबुक व अन्य माध्यमों पर सक्रिय 30 की उम्र से कम लोगों की संख्या 63 फीसद से ज्यादा है. यानी सोशल मीडिया युवा वोटर्स को प्रभावित करने में अहम रोल निभाएगा.

फर्जी एकाउंट बनेंगे चुनौती
लगभग सभी दलों ने सोशल मीडिया प्रचार की रणनीति तय की है. चुनावी वार रूम में सोशल मीडिया रणनीति को खास अहमियत दी जा रही है. चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया पर होड़ को देखते हुए अंकुश के मापदंड जरूर तय किए हैं. लेकिन यह आसान भी नहीं होगा. असली और नकली एकाउंट की पहचान भी चुनौती होगी. क्योंकि इन सोशल मीडिया माध्यमों का सर्वर विदेश में होता है. ऐसे में समय से जानकारी मिल पाना भी चुनौती होगी.

विदेश में सर्वर होने का फायदा उठा रहे
साइबर विशेषज्ञों का कहना है कि सोशल मीडिया पर सक्रिय खातों की संख्या लाखों में है. इनके एकाउंट बाहर के देशों से बनाए जाते हैं और उनसे यहां पर सामग्री प्रसारित की जाती है. अब तक कई मामले सामने आए हैं जिनमें असली व्यक्ति की जगह किसी और का नाम और तस्वीर लगे हुए खातों से मैसेज प्रसारित किए गए होते हैं.