- पृथ्वी में मौजूद लिनियामेंट्स के सक्रिय होने के कारण महसूस हुआ भूकंप

- राजधानी में भूकंप के आने के पीछे के कारणों को समझा रहे एक्सप‌र्ट्स

LUCKNOW: नेपाल में भूकंप आया और राजधानी में भी झटके महसूस हुए। इसके पीछे यहां की भौगोलिक स्थिति का बहुत बड़ा हाथ है। आइए जानते हैं कि भूकंप में राजधानी किस तरह प्रभावित होती है।

सक्रिय हो गए थे लिनियामेंट्स

एलयू के भूगर्भ विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर अजय आर्या बताते हैं कि लखनऊ तीन भूकंपीय जोन पर स्थित है। पहला जोन ठीक गोमती नदी के साथ-साथ चल रहा है। वहीं, अन्य दो फॉल्ट (पृथ्वी के भीतर बनी प्लेट्स जहां जुड़ती हैं) इसे बीच से बांटती हैं। यह तीनों फॉल्ट लिनियामेंट्स बेस पर स्थित हैं। प्रो। आर्या बताते हैं कि जब कोई प्लेट मूवमेंट करती है तब इन सभी लिनियामेंट्स में काफी हलचल पैदा होती है। उसी हलचल के दौरान यह अपने को एडजस्ट करती हैं। इस कारण हमें झटके लगते हैं। नेपाल में आए भूकंप के झटकों ने इन्हीं लिनियामेंट्स को सक्रिय कर दिया था। इसीलिए यहां कंपन्न हुआ।

हिमालय की बढ़ रही ऊंचाई

प्रो। अजय आर्या बताते हैं कि गोमती फॉल्ट की दिशा नॉर्थ वेस्ट और साउथ ईस्ट की दिशा में है। इस पर दो तरफ से दबाव लगता है, जिसे कम्प्रेशन बेसिन कहते हैं। वह बताते है गोमती फॉल्ट में दो तरफ से कम्प्रेशन बेसिन हिमालय से गंगा के मैदान और गंगा के मैदान से हिमालयन बेसिन की तरफ जाता है। यह कांजुग्रेट पैटर्न पर है। यदि इसमें से एक भी बेसिन सक्रिय होगा तो दूसरे पर असर देखा जाता है। प्रो। आर्या बताते हैं कि नेपाल में जिस तीव्रता का भूकंप आया था। वह यह बताने के लिए काफी है कि कहीं न कहीं हिमालय अचानक से अपनी ऊचाई बढ़ा रहा है। कमोबेश इस तरह के फॉल्ट सैकड़ों की संख्या में गंगा मैदान में मौजूद है। जो कहीं न कहीं से गंगा के मैदान को कमजोर करने का काम करते हैं। नदियों की धाराएं जो अपनी दिशाएं बदलती है उसका एक मूल कारण हो सकता है। गोमती नदी इससे अछूती नहीं है

दो तरह का बहाव

प्रो। आर्या बताते हैं कि नेपाल में आए भूकंप का केंद्र धरती में क्ख् किलोमीटर की गहराई में था। इस दौरान हॉरिजेंटल और वर्टिकल दो तरह का बहाव बना था। इसे आम भाषा में लव तंरगे कहते हैं। इस बहाव के कारण ही नेपाल की सड़कों पर बड़े-बड़े गढ्ढे बने। प्रो। आर्या बताते हैं कि कम्प्रेशन बेसिन में जब इस तरह का दबाव बनता है तो सड़कें फटने लगती है। क्योंकि, हम लिनियामेंट्स बेसिन पर इतना निर्माण कर चुके हैं कि धरती की एनर्जी को कहीं से निकले का मौका नहीं मिलता है। उन्होंने बताया कि अगर गंगा बेसिन के लिनियामेंट्स ने उन तरंगों को कम नहीं किया होता तो लखनऊ में भी नेपाल के जैसे हालात होते।

लिविक फैक्श्ान से तबाह हुआ नेपाल

प्रो। अजय आर्या बताते हैं कि गंगा प्लेन पर मौजूदा समय पर बहुत तेजी से निर्माण कार्य चल रहा है। भूकंप में तबाही का यह भी एक बड़ा कारण है। वह बताते हैं कि जिस जमीन में नमी ज्यादा होती है, उसमें गंगा प्लेन के बालू के मिक्स होने की संभावना अधिक होती है। ऐसे में गंगा का मैदान जो कुशन का काम करती है वह काम करना बंद कर देती है। उसमें भूकंप के तरंगों को अवशोषित करने की क्षमता कम हो जाती है। इस प्रकार बालू को मिट्टी की नमी के साथ मिश्रित होने की प्रक्रिया को लिविक फैक्शन कहते हैं। अगर बड़े रिक्टर स्केल पर इस तरह का भूकंप आता है तो गंगा के मैदान बिल्डिंग के गिरने की संभावना अधिक है। नेपाल में भी कुछ ऐसे ही हालात थे। नेपाल एक सूखे हुए झील पर स्थित है। जहां पर लिविक फैक्शन बन गया था।

पांच बड़े भूकंपों में एक

शनिवार को आया भूकंप देश में आए अब तक के सबसे पांच बडे़ भूकंपों में से एक था। इसकी तीव्रता 7़9 रिकॉर्ड की गई जबकि देश में इससे बड़े भी चार भूकंप रिकॉर्ड किए जा चुके हैं। इनमें सबसे बड़ा भूकंप साल ख्00ब् में हिंद महासागर में 9.ख् रिकॉर्ड किया गया था। असम में साल क्897 में में 9़क् तीव्रता, साल क्9फ्ब् में बिहार में आए भूकंप की तीव्रता 8़ 7 और साल क्9भ्0 में असम में आए भूकंप की तीव्रता 8़ म् रिकार्ड की गई थी।

इंडियन प्लेट के खिसकने तक जारी रहेगा भूकंप

एलयू के भूगर्भ विज्ञान विभाग के प्रो़ ध्रुवसेन सिंह का कहना है कि जब तक इंडियन प्लेट उत्तर की तरफ खिसकती रहेंगी, तब तक भूकंप आते रहेंगे। उन्होंने बताया कि आज से लगभग म्भ् करोड़ साल पहले इंडियन प्लेट यूरेशियन प्लेट से टकराई थीं। इसका परिणाम हिमालय पर्वत है। इंडियन प्लेट के हर साल खिसकने के कारण ऊर्जा एकत्रित होती है और उससे ही एक तरह का तनाव पैदा होता है। इस कारण भूकंप आता है। आज भी वही इंडियन प्लेट उत्तर की दिशा में हर साल लगभग म़्भ् सेंटीमीटर के हिसाब से अंदर की ओर से खिसक रही है। ऐसे में जब तक प्रकिया चलती रहेगी। भूकंप आते रहेंगे।