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LUCKNOW : पुलिस का नाम सुनते ही हमारे मन में अक्सर कड़क और बदनाम छवि ही आमतौर पर जेहन में उभरती है, लेकिन ये अधूरा सच है। पुलिस विभाग में कई ऐसे छोटे और बड़े अफसर लाइमलाइट से दूर रहकर ऐसे कार्यों को अंजाम दे रहे हैं जो समाज के लिए किसी मिसाल से कम नहीं है।आज हम आपको कुछ ऐसे पुलिस वालों से मिलवाने जा रहे हैं जो सैल्यूट के असल हकदार हैं।

खून देकर बचाई युवक की जान

सहारागंज मॉल के बेसमेंट में 9 अक्टूबर को वॉशिंग सेंटर में कार में रखी पिस्टल से खेल-खेल में गोली चल गई थी। जिससे वहां काम करने वाला उदयगंज निवासी रोहित गंभीर रूप से घायल हो गया। गरीब परिवार के रोहित को ट्रॉमा में भर्ती कराया गया। घरवालों के पास पैसा नहीं था कि वह उसका इलाज और उसके लिए ब्लड की व्यवस्था कर सकें। जब परिवार परेशान था तो उनकी मदद को आगे आए सहारागंज चौकी इंचार्ज राहुल सोनकर आगे आए। उन्होंने रोहित को न केवल अपना ब्लड दिया बल्कि उसके इलाज का खर्च भी उठाया। आज रोहित पूरी तरह स्वस्थ होकर अपने परिवार की आजीविका चला रहा है।

कड़क पुलिसवालों की नरम छवि,किसी ने अनाथ को बेटी बनाया तो किसी ने खून देकर बचाया

राह पर मिली बच्ची को बनाया बेटी

चौक थाने में तैनात सब इंस्पेक्टर अखिलेश मिश्र आठ साल पहले गुडंबा थाने में तैनात थे। उस दौरान उन्हें एक 10 वर्षीय बच्ची भटकती मिली। काफी कोशिशों के बाद भी उसके परिजनों को तलाश नहीं जा सका। अखिलेश मिश्रा उस बच्ची को अपने घर ले आए और उसकी परवरिश अपने दो बेटों और दो बेटियों के साथ ही की। उन्होंने इस बच्ची का नाम तनु मिश्रा रखा। उन्होंने तनु को अच्छी शिक्षा भी दिलाई और गत 20 अप्रैल को अपने गांव में उसकी धूमधाम से पूरे विधि विधान के साथ उसका विवाह कराया।

खून देकर दे दिया नया जीवन

ब्रेन हेमरेज के कारण उन्नाव निवासी अल्ताफ को विवेकानंद अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उसे खून की जरूरत थी लेकिन पैसों की कमी और रिश्तेदारों के खून देने से इंकार करने पर उसकी व्यवस्था नहीं हो पा रही थी। अल्ताफ की हालत बिगड़ती जा रही थी। अल्ताफ के भाई ने 100 नंबर पर कॉल कर मदद मांगी। सूचना पर कांस्टेबल इरशाद अहमद और शहादत अली हॉस्पिटल पहुंचे और दोनों ने अल्ताफ की जान अपना खून देकर बचाई।

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अनाथों की जिंदगी कर रहे रोशन

एसपी वेस्ट विकास चंद्र त्रिपाठी अपराधियों के लिए जितने सख्त है अनाथ और गरीबों के लिए उतने ही विनम्र। जब हम लोग घरों में परिजनों के साथ दीवाली माना रहे होते हैं उस समय ये दयानंद बाल सदन में अनाथ बच्चों के साथ इस पर्व को मनाते हैं। ये वहां बच्चों को मिठाई, कपड़े और पटाखे देकर उनकी खुशियों में शामिल होते हैं। ये अपनी सेलरी से पांच हजार रुपए उनकी मदद में खर्च करते हैं। यही नहीं उम्मीद संस्था में पढऩे वाले बच्चों की पढ़ाई का खर्च भी ये खुद उठाते हैं।

कड़क पुलिसवालों की नरम छवि,किसी ने अनाथ को बेटी बनाया तो किसी ने खून देकर बचाया

गरीब की बेटी की संवारी शिक्षा

अमरनाथ सआदतगंज थाने के पास सड़क पर चाय बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण करता है। उनके दो बच्चे करननाथ और बेटी माही हैं। माही को उन्होंने किसी तरह आठवीं तक पढ़ाया लेकिन फिर आगे न पढ़ा सके तो उदास रहने लगे। इंस्पेक्टर सआदतगंज महेश पाल सिंह ने जब उनसे उदासी का कारण पूछा तो अमरनाथ ने पूरी बात उन्हें बताई। इंस्पेक्टर ने इस पर माही का एडमिशन हिंदुस्तान बाल विद्या मंदिर इंटर कॉलेज में कराया और थाने बुलाकर उसे कापी, किताबें, स्कूल बैग, ड्रेस भी दी। साथ ही वादा किया कि तुम जितना पढऩा चाहो पढ़ो, मैं मदद के लिए हमेशा तुम्हारे साथ हूं।

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250 बच्चों को को लिया गोद

एक सामाजिक संस्था बाल मजदूरी में लिप्त बच्चों को समाज की मुख्यधारा से जोडऩे के लिए शिक्षा देने का काम कर रही है। संस्था में कुल 300 बच्चे हैं जिनमें से 250 बच्चों को पुलिस के अधिकारियों ने गोद ले रखा है। इन बच्चों का सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में एडमिशन भी कराया गया है। ये अधिकारी ही उनकी शिक्षा का पूरा खर्च वहन कर रहे हैं। इसमें प्रमुख रूप से डीजीपी ओपी सिंह, एडीजी जेल चंद्र प्रकाश, एडीजी जोन राजीव कृष्णा, एडिशनल एसपी तकनीकी सेवा राहुल श्रीवास्तव, पूर्व एसपी टीजी हरेन्द्र कुमार, सीओ चौक दुर्गा तिवारी, सीओ कैसरबाग अमित कुमार राय समेत कई अधिकारी शामिल है।

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