- फेफड़े के कैंसर में स्मोकिंग है सबसे बड़ा कारण

- इंडिया में 90 फीसदी से अधिक लोग आते हैं अंतिम स्टेज में

<- फेफड़े के कैंसर में स्मोकिंग है सबसे बड़ा कारण

- इंडिया में 90 फीसदी से अधिक लोग आते हैं अंतिम स्टेज में

ALLAHABAD: allahabad@inext.co.in

ALLAHABAD: शायद आपको नहीं पता लेकिन फेफड़े का कैंसर व‌र्ल्ड के बिग किलर डिजीज में से एक है। जिसका सबसे बड़ा कारण है स्मोकिंग। केवल ओल्ड एज पर्सन ही नहीं बल्कि यंग एज के मरीज भी स्मोकिंग की लत के चलते जानलेवा बीमारी का शिकार हो रहे हैं। सिटी के आनंद हॉस्पिटल में आयोजित कांफ्रेंस के दौरान यूके से आए डॉ। मो। मुनव्वर ये बाते कहीं। उन्होंने कहा कि यंगस्टर्स में बढ़ती स्मोकिंग की लत उन्हें इस खतरे की ओर ले जा रही है।

तो बचाना होता है मुश्किल

अदर कंट्रीज में जहां लंग कैंसर के मरीज अर्ली स्टेज पर डिटेक्ट हो जाते हैं वहीं इंडिया में यह सिनेरियो एकदम उल्टा है। देश में 90 फीसदी से अधिक मरीज थर्ड स्टेज पर डॉक्टर के पास आते हैं। ऐसे में उनका इलाज और सर्वाइवल दोनों कठिन हो जाता है। शुरुआती दौर में मरीज खांसी और सांस फूलने से जैसे लक्षणों को अवायड करते हैं, लेकिन कॉम्प्लीकेशन बढ़ जाने पर डॉक्टर से संपर्क करते हैं। तब तक काफी देर हो चुकी होती है।

लगातार घट रहा है एज फैक्टर

कुछ साल पहले तक पचास साल से अधिक एज वाले मरीजों में यह बीमारी ज्यादा देखने में आती थी। प्रजेंट सिनेरियो में एज फैक्टर घट गया है। कारण साफ है। अर्ली एज में यंगस्टर्स स्मोकिंग की लत का शिकार हो जाते हैं। हॉस्पिटल्स में आने वाले लंग कैंसर के मरीजों में लगभग 90 फीसदी में स्मोकिंग सबसे बड़ा कारण उभरकर सामने आता है। डॉ। मुनव्वर ने बताया कि यंग जनरेशन को इस नशे से दूरी बनाना जरूरी है। लगातार खांसी, सांस फूलना, बलगम के साथ खून आना बीमारी के मुख्य लक्षणों में से एक है।

डॉक्टरों ने इबस तकनीक को जाना

जानलेवा बीमारी की अर्ली स्टेज पर जांच के लिए दुनियाभर में इबस (इंडोब्रांकियल अल्ट्रासाउंड)<शायद आपको नहीं पता लेकिन फेफड़े का कैंसर व‌र्ल्ड के बिग किलर डिजीज में से एक है। जिसका सबसे बड़ा कारण है स्मोकिंग। केवल ओल्ड एज पर्सन ही नहीं बल्कि यंग एज के मरीज भी स्मोकिंग की लत के चलते जानलेवा बीमारी का शिकार हो रहे हैं। सिटी के आनंद हॉस्पिटल में आयोजित कांफ्रेंस के दौरान यूके से आए डॉ। मो। मुनव्वर ये बाते कहीं। उन्होंने कहा कि यंगस्टर्स में बढ़ती स्मोकिंग की लत उन्हें इस खतरे की ओर ले जा रही है।

तो बचाना होता है मुश्किल

अदर कंट्रीज में जहां लंग कैंसर के मरीज अर्ली स्टेज पर डिटेक्ट हो जाते हैं वहीं इंडिया में यह सिनेरियो एकदम उल्टा है। देश में 90 फीसदी से अधिक मरीज थर्ड स्टेज पर डॉक्टर के पास आते हैं। ऐसे में उनका इलाज और सर्वाइवल दोनों कठिन हो जाता है। शुरुआती दौर में मरीज खांसी और सांस फूलने से जैसे लक्षणों को अवायड करते हैं, लेकिन कॉम्प्लीकेशन बढ़ जाने पर डॉक्टर से संपर्क करते हैं। तब तक काफी देर हो चुकी होती है।

लगातार घट रहा है एज फैक्टर

कुछ साल पहले तक पचास साल से अधिक एज वाले मरीजों में यह बीमारी ज्यादा देखने में आती थी। प्रजेंट सिनेरियो में एज फैक्टर घट गया है। कारण साफ है। अर्ली एज में यंगस्टर्स स्मोकिंग की लत का शिकार हो जाते हैं। हॉस्पिटल्स में आने वाले लंग कैंसर के मरीजों में लगभग 90 फीसदी में स्मोकिंग सबसे बड़ा कारण उभरकर सामने आता है। डॉ। मुनव्वर ने बताया कि यंग जनरेशन को इस नशे से दूरी बनाना जरूरी है। लगातार खांसी, सांस फूलना, बलगम के साथ खून आना बीमारी के मुख्य लक्षणों में से एक है।

डॉक्टरों ने इबस तकनीक को जाना

जानलेवा बीमारी की अर्ली स्टेज पर जांच के लिए दुनियाभर में इबस (इंडोब्रांकियल अल्ट्रासाउंड) तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। देशभर में यह सुविधा महज तीस से चालीस सेंटर पर अवेलेबल है। शहर में आनंद हॉस्पिटल में इसकी जांच डॉ। आशीष टंडन द्वारा की जाती है। कांफ्रेंस के दौरान डॉ। मुनव्वर ने प्रदेशभर से आए डॉक्टर्स को इस तकनीक के इस्तेमाल की जानकारी दी। उन्होंने इसका लाइव डिमास्ट्रेशन भी किया। इस तकनीक में मरीज को लोकल एनेस्थीसिया देकर महज दस से पंद्रह मिनट में फेफड़े की गांठ को डायग्नोस कर लिया जाता है। कांफ्रेंस में एसजीपीजीआई से आए डॉ। अजमल खान, चेस्ट स्पेशलिस्ट डॉ। आशुतोष गुप्ता आदि मौजूद रहे।