भारद्वाज राजनीति शास्त्र की छात्रा हैं और उनका ये पत्र टेलीग्राफ़ अख़बार में छपा है। दरअसल सीएनएन-आईबीएन चैनल ने ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल में सत्ता में आने के एक साल पूरा होने के मौके पर कोलकाता में एक कार्यक्रम आयोजित किया था जिसमें आम लोग मुख्यमंत्री से सीधे सवाल पूछ सकते थे।

कार्यक्रम में लोगों ने कार्टून मामले पर जादवपुर विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्र की गिरफ्तारी और राज्य में एक बलात्कार पीड़िता पर मंत्रियों की टिप्पणी से जुड़े सवाल पूछे, जिससे मुख्यमंत्री काफी नाराज़ हो गईं।

जब तानिया ने सवाल किया तो ममता भड़क गईं और उस छात्रा को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की छात्र शाखा स्टूडेंट्स फ़ेडेरेशन ऑफ़ इंडिया का सदस्य और माओवादी बता दिया। इस पर तानिया ने खुला पत्र लिखा जिसका शीर्षक उन्होंने दिया है- 'माफ़ करिएगा मैम मगर मैं माओवादी नहीं हूँ.'

'एक सवाल'

इसमें तानिया ने लिखा है, "आपने, बंगाल के सबसे महत्त्वपूर्ण व्यक्ति ने सीएनएन-आईबीएन के सवाल-जवाब कार्यक्रम में टाउन हॉल में मुझे माओवादी करार दे दिया। मैंने आखिर ऐसा क्या किया था कि मुझे ये तमगा मिला? मैंने आपसे सिर्फ एक सवाल पूछा था." तानिया ने इस पत्र में लिखा है कि कैसे एक साल पहले भी उन्होंने उसी चैनल के एक कार्यक्रम में हिस्सा लिया था और फिर कुछ दिनों बाद 'परिवर्तन के लिए मतदान' किया।

उन्होंने 28 अप्रैल 2011 को भी टेलीग्राफ अख़बार में एक पत्र लिखा था और इस पत्र में भी तानिया ने उस पत्र का जिक्र किया है। वह लिखती हैं, "मैंने उस समय लिखा था- हम परिवर्तन चाहते हैं मगर डरे हुए हैं कि हम एक तवे की बजाए चूल्हे पर जा बैठेंगे। मुझे आशंकित कह सकते हैं मगर मैं किसी भी राजनीतिक दल को बंगाल के लिए एक सकारात्मक विकल्प के तौर पर नहीं देखती."

तानिया कहती हैं कि 'ये दुखद है मगर एक साल बाद राष्ट्रीय टेलीविजन पर ये साबित हो गया कि वह कितना सही थीं'। उस कार्यक्रम का संचालन कर रहीं सागरिका घोष ने ममता के शो छोड़कर चले जाने के बाद बीबीसी से बातचीत में बताया था कि जब सवालों से नाराज ममता कार्यक्रम छोड़कर गईं, तो वहाँ कोलकाता पुलिस के स्पेशल ब्रांच के अधिकारी पहुँचे और उन लोगों के बारे में जानकारी मांगी, जो सवाल पूछ रहे थे।

विवादास्पद बयान

प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय की छात्रा भारद्वाज ने लिखा है, "मैंने आपसे सिर्फ यही पूछा था कि आपकी पार्टी के मदन मित्रा जैसे प्रभावशाली मंत्री और अरबुल इस्लाम जैसे सांसदों को क्या ज्यादा जिम्मेदारी से बर्ताव नहीं करना चाहिए। कई अन्य लोगों की तरह मैं भी उस बात से असहज हुई थी जब मदन मित्रा ने पुलिस की जाँच पूरी होने से पहले ही एक बलात्कार पीड़िता के मामले पर अपना फैसला सुना दिया था."मदन मित्रा ने कथित तौर पर उस पीड़िता के बारे में ये कह दिया था कि 'दो बच्चों की एक माँ को नाइट क्लब में जाने की जरूरत ही क्यों पड़ी.'

तानिया ने पत्र में लिखा है, "मैंने आपसे वही पूछा जो मेरे इर्द-गिर्द बैठे ज्यादातर लोग पूछना चाहते थे, वे लोग जिन्होंने परिवर्तन के लिए मतदान किया था। क्या हम अपने नेताओं से यही अपेक्षा रखते हैं। वे लोग जो उदाहरण पेश करते हैं और बाकी लोग उनके पीछे चलते हैं। मैं आपसे सिर्फ यही जानना चाहती थी."

तानिया ने लिखा है कि मुख्यमंत्री ने लोकतंत्र की चर्चा की और कार्यक्रम में वो जितनी देर रहीं उन्होंने जवाब देते समय 'आम लोग', 'लोकतंत्र' और 'बंगाल' जैसे शब्दों का जिक्र किया। इसके बाद वह सवाल उठाती हैं, "मगर एक सच्चे लोकतंत्र का एक सबसे अहम पहलू, जैसा मैंने राजनीति शास्त्र के छात्र के तौर पर समझा है, क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं होता है। इस स्वतंत्रता का मतलब ये है कि व्यक्ति अपनी राय व्यक्त कर सके, सवाल पूछ सके, उसे अधिकारियों के डर में अपनी बात दबे-छिपे रूप में न कहनी पड़े और अहम लोगों के कार्टून पर वह कुछ चुटकी ले सके."

लोकतंत्र

तानिया लिखती हैं, "ये दुखद है कि राज्य में लोकतांत्रिक मशीनरी में काफी विफलता दिखती है। और जैसा कि महज आपके कह भर देने से मैं माओवादी नहीं बन जाउँगी वैसे ही राज्य में भी लोकतंत्र तब तक परिलक्षित नहीं होगा जब तक वह हर क्षेत्र में वास्तविक रूप से लोकतांत्रिक नहीं हो जाता." तानिया के इस पत्र की सोशल मीडिया वेबसाइटों पर काफ़ी चर्चा हो रही है और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के रवैये पर भी लोग सवाल उठा रहे हैं।

तानिया ने लिखा है, "आपने कई बार बुद्धिजीवियों के बंगाल छोड़कर जाने का जिक्र किया है। मेरे पास यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और स्कूल ऑफ ओरियंटल ऐंड अफ्रीकन स्टडीज में विकास और प्रशासन की आगे की पढ़ाई से जुड़े प्रस्ताव आए हैं। शायद अब मैं भी चली जाउँगी और अब आपको वजह पता होगी कि ऐसा क्यों हुआ."

तानिया ने पत्र के अंत में लिखा है- एक साधारण लड़की (तानिया भारद्वाज- प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय, राजनीति शास्त्र)।

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