- मां-बाप से बिछड़ने के बाद भूले-भटके शिविर पहुंचे मासूम

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- मां-बाप से बिछड़ने के बाद भूले-भटके शिविर पहुंचे मासूम

ALLAHABAD: allahabad@inext.co.in

ALLAHABAD: आंशी के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। भूले-भटके शिविर के वालेंटियर्स और पुलिस के जवान की उसे चुप कराने की कोशिश भी बेकार साबित हो रही थी। उसकी जुबान पर केवल माता-पिता से मिलने की जिद थी। अपनी तुतलाती जुबान से वह बस यह बता पाई कि बस्ती जिले से आई है। ऐसे कई बच्चे थे जो मौनी अमावस्या पर अपने परिवार के साथ संगम स्नान को आए थे लेकिन लाखों की भीड़ में भटक गए। मासूमों को उनके घरवालों से मिलाना वालेंटियर्स के लिए मुश्किल साबित हो रहा था।

हर ओर आंसुओं का सैलाब

मेला एरिया में त्रिवेणी रोड ढाल पर भूले-भटके शिविर बनाया गया है। मौनी अमावस्या पर भारी संख्या में महिलाएं, पुरुष और बच्चे यहां मौजूद थे। सभी अपनों से बिछड़ गए थे। यही कारण था कि मेले में आने की खुशी गम में बदल गई थी और चारों केवल आंसू और रोने की आवाजें आ रही थीं। बच्चों और बुजुर्गो की हालत ज्यादा खराब थी।

कृपया, बच्चों को मेले में ना लाएं

मेले में क्भ्0 वालंटियर्स को भूले-भटकों को शिविर तक लाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। शिविर संचालक उमेश चंद्र तिवारी बताते हैं कि सबसे ज्यादा परेशानी बच्चों को घर पहुंचाने में आती है। वह अपना नाम, पता तक नहीं बता पाते। कायदे से तो माता-पिता को बच्चों को लेकर मेले में आना ही नहीं चाहिए। शिविर में उनको संभालना भी मुश्किल होता है। बच्चों के साथ अनहोनी घटने के चांसेज भी बने रहते हैं।

दो दिन में ख्0 हजार को अपनों से मिलाया

शिविर की ओर से क्9 जनवरी को कुल क्क्ख्ख्भ् लोगों को अपनों से मिलाया गया। इनमें फ्ब् बच्चे शामिल थे। इसी तरह ख्0 जनवरी को मौनी अमावस्या के दौरान 9भ्क्भ् भूले-भटके श्रद्धालुओं को मिलवाया गया। जिनमें क्भ् बच्चे भी शामिल रहे। कुल मिलाकर दो दिनों में ख्07ब्0 महिला-पुरुष भीड़ में अपनों से अलग हुए। उन्हें अपनों से मिलाने का काम किया जाता रहा।