पं राजीव शर्मा (ज्योतिषाचार्य)। महाशिवरात्रि पर्व का महत्व सभी पुराणों में मिलता है। गरुड़ पुराण, पदम पुराण,स्कन्द पुराण, शिव पुराण तथा अग्नि पुराण सभी में महाशिवरात्रि पर्व की महिमा का वर्णन मिलता है। कलियुग में यह व्रत थोड़े से ही परिश्रम साध्य होने पर भी महान पुण्य प्रदायक एवं सब पापों का नाश करने वाला होता है।फाल्गुन मास की शिवरात्रि को भगवान शिव सर्वप्रथम शिवलिंग के रूप में अवतरित हुए थे, इसलिये भी इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है।

शिवरात्रि को क्यों कहते हैं महा रात्रि
इस बार शुभ श्रेष्ठ शिव योग,श्रीवत्स एवं अमृत योग में जिस कामना को मन में लेकर मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान संपन्न करेगा,वह मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होगी।इस लोक में जो चल अथवा अचल शिवलिंग हैं,उन सब में इस रात्रि को भगवान शिव की शक्ति का संचार होता है, इसलिए इस शिवरात्रि को महा रात्रि कहा गया है।इस एक दिन उपवास रहते हुए शिवार्चन करने से साल भर के पापों से शुध्दि हो जाती है।

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शिवरात्रि रहस्य
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दर्शी तिथि में चंद्रमा सूर्य के समीप होता है।अतः वही समय जीवन रूपी चंद्रमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग- मिलान होता है।इसलिए इन चतुर्दशी को शिवपूजा करने से जीव को अभिष्टतम पदार्थ की प्राप्ति होती है।यही शिवरात्रि रहस्य है।

व्रत- कथा
शिवमहापुराण के अनुसार बहुत पहले अबुर्द देश में सूंदरसेन नामक निषाद राजा रहता था।वह एक बार जंगल मे अपने कुत्तों के साथ शिकार के लिए गया।पूरे दिन परिश्रम के बाद उसे कोई भी जानवर नहीं मिला।भूख प्यास से पीड़ित होकर वह रात्रि में जलाशय के तट पर एक वृक्ष के पास जा पहुंचा।जहां उसे शिवलिंग के दर्शन हुए। अपने शरीर की रक्षा के लिए निषादराज ने वृक्ष की ओट ली लेकिन उनकी जानकारी के बिना कुछ पत्ते वृक्ष से टूरकर शिवलिंग पर गिर पड़े उसने उन पत्तों को हटाकर शिवलिंग के ऊपर स्थित धूलि को दूर करने के लिए जल से उस शिवलिंग को साफ किया।उसी समय शिवलिंग के पास ही उसके हाथ से एक बाण छूटकर पृथ्वी पर गिर गया।अतः घुटनों को भूमि पर टेककर एक हाथ से शिवलिंग को स्पर्श करते हुए उसने उस बाण को उठा लिया।

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निषाद को पाश से कराया मुक्त
इस तरह राजा द्वारा रात्रि-जागरण,शिवलिंग का स्नान,स्पर्श और पूजन भी हो गया।प्रातः काल होने पर निषाद राजा अपने घर चला गया और पत्नी के द्वारा दिये गए भोजन को खाकर अपनी भूख मिटाई।यथोचित समय पर उसकी मृत्यु हुई तो यमराज के दूत उसको पाश में बांधकर यमलोक ले जाने लगे,तब शिवजी के गणों ने यमदूत से युद्ध कर निषाद को पाश से मुक्त करा दिया।इस तरह वह निषाद अपने कुत्तो के साथ भगवान शिव के प्रिय गणों में शामिल हुआ।