एकला चलो की राह पर मायावती व मुलायम
यूपी विधानसभा का चुनाव लगभग मार्च 2017 में होना है। नवंबर-दिसंबर से इसकी प्रक्रिया भी शुरू हो सकती है।  तीन-चार महीने में तस्वीर कुछ साफ होने के बाद ही बिहार की सियासी गतिविधियों की यूपी में सक्रिय इंट्री होगी। फिलहाल यूपी के दो बड़े दलों बसपा और सपा ने साफ कर दिया है कि वे गठबंधन की राजनीति नहीं करेंगे. 
मायावती और मुलायम सिंह यादव दोनों ही एकला चलो की राह पर हैं। भाजपा और कांग्र्रेस का रुख अभी साफ नहीं है। लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखकर जेडीयू यह मान कर चल रहा है कि सपा और बसपा अपने दम पर भाजपा से मुकाबला करने में सक्षम नहीं हैं। यह भी सच है कि आरजेडी और जेडीयू दोनों के पास यूपी में कुछ नहीं है। ऐसे में कांग्र्रेस का ही सहारा है, जिस दम पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने आधार वोट को मजबूत कर सकते हैं.

इंतजार ही विकल्प
पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को यूपी में घेरने की तैयारी कर रहे महागठबंधन के दलों को मुलायम के पैंतरे का भी इंतजार है। मुलायम ने कारसेवकों पर गोली चलाने के फैसले पर अफसोस जताकर भाजपा विरोधी दलों को हैरत में डाल दिया है। ऐसे में नीतीश-लालू समेत तमाम दिग्गजों के पास इंतजार ही एकमात्र विकल्प है। सबसे बड़ा इंतजार मुलायम की अगली चाल का है.

नीतीश कुमार के अभिनंदन की तैयारी शुरू 
नीतीश कुमार की प्रस्तावित बनारस यात्रा पर 31 जनवरी को पर्दा उठ सकता है। लखनऊ में इसी हफ्ते जेडीयू की उत्तर प्रदेश कमेटी की बैठक है, जिसमें जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव और राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी को शामिल होना है। बनारस में पटेल नवनिर्माण सेना नीतीश कुमार के अभिनंदन समारोह की तैयारी कर रहा है। हालांकि नीतीश कुमार ने  अभी तक इसकी स्वीकृति नहीं दी है। यूपी के कुछ बड़े नेता चाहते हैं कि नीतीश उस कार्यक्रम में शिरकत करें.


लालू प्रसाद को भी निमंत्रण
इस बीच, राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने के लिए जेडीयू ने आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद को भी आमंत्रण दिया है। केसी त्यागी ने लालू से अभियान का हिस्सा बनने की अपील की है। कहा है कि बिहार का संदेश पूरे देश में जाए, इसके लिए बीजेपी के खिलाफ राजनीतिक विकल्प बनाना होगा। इसके लिए लालू का साथ आना जरूरी है। सपा और बसपा से गठबंधन की संभावनाएं खत्म हो गई हैं। ऐसे में बीजेपी को शिकस्त देने के लिए नीतीश और लालू से बेहतर दूसरा विकल्प नहीं हो सकता.

एकला चलो की राह पर मायावती व मुलायम

यूपी विधानसभा का चुनाव लगभग मार्च 2017 में होना है। नवंबर-दिसंबर से इसकी प्रक्रिया भी शुरू हो सकती है।  तीन-चार महीने में तस्वीर कुछ साफ होने के बाद ही बिहार की सियासी गतिविधियों की यूपी में सक्रिय इंट्री होगी। फिलहाल यूपी के दो बड़े दलों बसपा और सपा ने साफ कर दिया है कि वे गठबंधन की राजनीति नहीं करेंगे। मायावती और मुलायम सिंह यादव दोनों ही एकला चलो की राह पर हैं। भाजपा और कांग्र्रेस का रुख अभी साफ नहीं है। लोकसभा चुनाव के नतीजों को देखकर जेडीयू यह मान कर चल रहा है कि सपा और बसपा अपने दम पर भाजपा से मुकाबला करने में सक्षम नहीं हैं। यह भी सच है कि आरजेडी और जेडीयू दोनों के पास यूपी में कुछ नहीं है। ऐसे में कांग्र्रेस का ही सहारा है, जिस दम पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपने आधार वोट को मजबूत कर सकते हैं।

 

इंतजार ही विकल्प

पीएम नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को यूपी में घेरने की तैयारी कर रहे महागठबंधन के दलों को मुलायम के पैंतरे का भी इंतजार है। मुलायम ने कारसेवकों पर गोली चलाने के फैसले पर अफसोस जताकर भाजपा विरोधी दलों को हैरत में डाल दिया है। ऐसे में नीतीश-लालू समेत तमाम दिग्गजों के पास इंतजार ही एकमात्र विकल्प है। सबसे बड़ा इंतजार मुलायम की अगली चाल का है।

 

नीतीश कुमार के अभिनंदन की तैयारी शुरू 

नीतीश कुमार की प्रस्तावित बनारस यात्रा पर 31 जनवरी को पर्दा उठ सकता है। लखनऊ में इसी हफ्ते जेडीयू की उत्तर प्रदेश कमेटी की बैठक है, जिसमें जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव और राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी को शामिल होना है। बनारस में पटेल नवनिर्माण सेना नीतीश कुमार के अभिनंदन समारोह की तैयारी कर रहा है। हालांकि नीतीश कुमार ने  अभी तक इसकी स्वीकृति नहीं दी है। यूपी के कुछ बड़े नेता चाहते हैं कि नीतीश उस कार्यक्रम में शिरकत करें।

 

लालू प्रसाद को भी निमंत्रण

इस बीच, राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने के लिए जेडीयू ने आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद को भी आमंत्रण दिया है। केसी त्यागी ने लालू से अभियान का हिस्सा बनने की अपील की है। कहा है कि बिहार का संदेश पूरे देश में जाए, इसके लिए बीजेपी के खिलाफ राजनीतिक विकल्प बनाना होगा। इसके लिए लालू का साथ आना जरूरी है। सपा और बसपा से गठबंधन की संभावनाएं खत्म हो गई हैं। ऐसे में बीजेपी को शिकस्त देने के लिए नीतीश और लालू से बेहतर दूसरा विकल्प नहीं हो सकता।