वाराणसी (ब्यूरो)। देवाधिदेव भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए फागुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि मनाने की परंपरा है। इस बार महाशिवरात्रि 21 फरवरी को पड़ रही है जो अपने आप में बेहद खास होगी। चतुर्दशी की रात श्रवण नक्षत्र का संयोग बेहद खास होगा। फागुन त्रयोदशी तिथि 20 फरवरी की शाम 4.46 बजे लग रही है जो 21 को शाम 5.12 बजे तक रहेगी। शाम 5.13 बजे से चतुर्दशी तिथि लग जाएगी जो अगले दिन शाम तक रहेगी। त्रयोदशी के बाद चतुर्दशी 21 को रात्रि में मिलने के कारण महाशिवरात्रि इसी दिन मनाई जाएगी। बीएचयू संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के पूर्व डीन व प्रख्यात ज्योतिषाचार्य प्रो। रामचंद्र पांडेय के मुताबिक तिथि विशेष पर प्रदोष व्यापनी होने के चलते इस दिन व्रत व पूजन करने पर श्रद्धालुओं को पुण्य का लाभ होगा।

फागुन कृष्ण चतुर्दशी की मान्यता

शास्त्र के मुताबिक शिवरात्रि चतुर्दशी को प्रदोष व्यापिनी होना चाहिए। यदि त्रयोदशी के बाद रात्रि में चतुर्दशी हो उस दिन महाशिवरात्रि का व्रत-पूजन आदि करना फलदायी होगा। चतुर्दशी के स्वामी भगवान शिव हैं। रात में उनका व्रत किया जाना चाहिए। शिवरात्रि व फागुन कृष्ण चतुर्दशी को मान्यता के अनुसार भगवान शंकर का विवाह माता पार्वती के साथ हुआ था। इसीलिए यह महाशिवरात्रि कहलाई।

पाप-ताप से मुक्ति का अनुष्ठान

शास्त्रों में महाशिवरात्रि का व्रत सर्वोपरि बताया गया है। इस व्रत को करने से सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती है। शिवरात्रि का व्रत सभी पापों का नाश करने वाला, चांडालों तक को मुक्ति देने वाला है। इस व्रत-उपवास के प्रभाव से जिनका शास्त्रों में अधिकार नहीं है, उन्हें भी मोक्ष प्राप्त होता है। अन्य लोगों को तो हर तरह के पाप-ताप के नाश होने के साथ ही धर्म-अर्थ, काम-मोक्ष खुद ही प्राप्त हो जाता है।

अभिषेक से होते हैं प्रसन्न

इस दिन शिव पूजन में मदार, बिल्व पत्र, धतूरा पुष्प चढ़ाने से और भांग-धतूरा आदि का अन्य नैवेद्यों के साथ भोग लगाना चाहिए। दिन भर उपवास कर रात में श्रीसांब शिवजी की पूजा करनी चाहिए। रात के चार पहर में चार बार देवाधिदेव का पूजन वंदन करना चाहिए।