पं. राजीव शर्मा (ज्योतिषाचार्य)। Makar Sankranti 2022 : मकर संक्रांति के दिन स्नान, दान का अति विशेष महत्व है। पदमपुराण के अनुसार इस संक्रांति में दान से करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान सूर्य को लाल वस्त्र, गेंहू, गुड़, मसूर दाल, तांबा, स्वर्ण, सुपारी, लालफल, लालफूल, नारियल, दक्षिणा आदि सूर्य दान का शास्त्रों में विधान है। इस संक्रांति के पुण्य काल में किये गये दान-पुण्य सामान्य दिन के दान-पुण्य से करोड़ गुना फल देने वाले होता है।

मकर संक्रांति का महत्व
शास्त्र के अनुसार ऐसा माना जाता है कि कर्क संक्रांति के समय सूर्य का रथ दक्षिण की ओर मुड़ जाता है। इससे सूर्य का मुख दक्षिण की ओर तथा पीठ हमारी ओर होती है। इसके विपरीत मकर संक्रांति के दिन से सूर्य का रथ उत्तर की ओर मुड़ जाता है अर्थात् सूर्य का मुख हमारी ओर (पृथ्वी की तरफ) हो जाता है। फलत: सूर्य का रथ उत्तराभिमुख होकर हमारी ओर आने लगता है। सूर्यदेव हमारे अति निकट आने लगते है। मकर संक्रांति सूर्य उपासना का अत्यन्त महत्वपूर्ण, विशिष्ट एवं एकमात्र महापर्व है। यह एक ऐेसा पर्व है जो सीधे सूर्य से संबंधित है। मकर से मिथुन तक की 6 राशियों में 6 महीने तक सूर्य उत्तरायण रहते हैं तथा कर्क से धनु तक की 6 राशियों में 6 महीने तक सूर्य दक्षिणायन रहते हें। कर्क से मकर की ओर सूर्य का जाना दक्षिणायन तथा मकर से कर्क की ओर जाना उत्तरायण कहलाता है। सनातन धर्म के अनुसार उत्तरायण के 6 महीनों को देवताओं का एक दिन और दक्षिणायन के 6 महीनों को देवताओं की एक रात्रि माना गया है।

मकर संक्रांति पर क्या करें
मकर संक्रांति के दिन प्रात: काल तिल का तेल तथा उबटन लगाकर स्नान करना चाहिये। तिल के तेल मिश्रित पानी से स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल से होम करना, तिल डालकर जल पीना, तिल से बने पदार्थ खाना तथा तिल का दान देना-ये छ: कर्म तिल से ही करने का विधान है। प्रात: स्नान करने के पश्चात् सूर्य के सामने जल लेकर संकल्प करें, फिर बेदी पर लाल कपड़ा बिछाकर चंदन या अक्षतों का अष्ट दल कमल बनाकर उसमें सूर्य नारायण की मूर्ति स्थापित कर उनका स्नान, गंध, पुष्प, धूप, तथा नैवेद्य से पूजन करें तथा "ॐ सूर्याय नम: मंत्र का जाप करें, साथ ही आदित्य ह्नदय स्त्रोत का पाठ कर घी, शक्कर तथा मेवा मिले हुये तिलों का हवन करें इनका दान भी करें। इस दिन धृत, कम्बल के दान का भी विशेष महत्व हैं। इस दिन किया गया दान, जप, तप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान आदि का दो-गुना महत्व है। इस दिन इस व्रत को खिचड़ी कहते है। इसलिये इस दिन खिचड़ी खाने तथा खिचड़ा तिल दान देने का विशेष महत्व मानते है।