द्दह्रक्त्रन्य॥क्कक्त्र : दान। इससे बड़ा पुण्य कोई नहीं होता। संस्कृत के मघ शब्द से माघ निकला है। मघ का शाब्दिक अर्थ होता है धन, सोना, चांदी, वस्त्र, आभूषण आदि। इसलिए इन वस्तुओं के दान आदि के लिए माघ माह को उपयुक्त माना गया है। मकर संक्रांति को माघी संक्रांति भी कहा जाता है। मकर संक्रांति पर दान करने की पुरानी परंपरा है। सदियों से चली आ रही इस परंपरा के तहत करोड़ों लोग इस दिन स्नान-दान करने के बाद ही कुछ अन्न ग्रहण करते हैं। संक्रांति में दान के बाद वे समझते हैं कि उन्होंने पुण्य कमा लिया, मगर क्या इस एक दिन के दान से पुण्य उनकी पूरी लाइफ के लिए पूरा है? अगर नहीं तो इस एक दिन के दान का क्या फायदा, मगर हमारे शहर में ऐसे भी कई लोग हैं, जिनके लिए हर दिन मकर संक्रांति होता है मतलब दान करना उनके रूटीन में शामिल है। इसके लिए भले उन्हें अपने फैमिली मेंबर्स का ही विरोध झेलना पड़ा हो या फिर समाज की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा हो, मगर उन्होंने हार नहीं मानी। मकर संक्रांति के दिन हम शहर के ऐसे ही चार लोगों की कहानी बताने जा रहे हैं, जिन्होंने सभी कठिनाइयों का सामना करने के बावजूद दान कर न सिर्फ अपना फर्ज पूरा किया, बल्कि ऐसे लोगों की मदद की जिन्हें वाकई जरूरत थी।

अन्नदान के बाद मिलती है तसल्ली

शहर में रहने वाले एसडी पाठक और प्रवीन श्रीवास्तव अन्नदान को अपनी रूटीन लाइफ का हिस्सा मानते हैं। आर्ट ऑफ लिविंग के मेंबर प्रवीन ने बताया कि वे हर माह कुष्ठ आश्रम में जाकर अन्न का दान करते हैं। साथ ही मकर संक्रांति पर हर साल भक्तों के लिए खिचड़ी का दान करते हैं। इस साल भी संस्था की ओर से 15 जनवरी को करीब पांच कुंतल चावल की खिचड़ी बांटी जाएगी। इसमें कई कुंतल सब्जी भी होगी। साथ ही मगहर स्थित अनाथालय और ब्लाइंड स्कूल में भी अन्न के साथ कपड़ों का दान किया जाता है। अन्नदान का यह सिलसिला पिछले 9 साल से लगातार चल रहा है। तब कुछ ही लोग थे, मगर धीरे-धीरे लोग जुड़ते गए और कारवां बन गया जिसका रिजल्ट अब नजर आ रहा है। अधिक से अधिक जरूरतमंदों तक अन्न पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। हर साल करीब डेढ़ लाख रुपए का अन्नदान जरूरतमंदों को किया जाता है।

आखिरी सांस तक करती रहूंगी 'महादान'

यूं तो जीवन बचाने का काम डॉक्टर्स करते हैं, लेकिन अर्लिन मिली सेंट फैलबुश डॉक्टर न होते हुए भी 200 से ज्यादा लोगों को जीवनदान दे चुकी हैं। उम्र के 60वें पायदान पर खड़ी अर्लिन अब तक 52 बार ब्लड डोनेट कर चुकी हैं, जिसे वे 100 तक पहुंचाना चाहती हैं। डॉक्टर ने उन्हें 65 साल तक ब्लड डोनेशन की परमिशन दी है, इसलिए वे हर तीन माह में ब्लड डोनेट करती हैं। वे कहती हैं कि जब उनके रक्तदान से किसी की जान बच जाती है तो बड़ा सुकून मिलता है। वे लोगों को ब्लड डोनेशन के प्रति अवेयर भी करती हैं। अपनी 18 साल की पोती जूडी मैरी को भी उन्होंने अपने अभियान में शामिल किया है।

गंदगी साफ करने उठाया बीड़ा

गंदगी फैलाना तो सब जानते हैं, लेकिन गंदगी साफ करने का बीड़ा कुछ ही लोग उठाते हैं। ऐसी ही जिम्मेदारी वार्ड नं 52 मोहद्दीपुर के पार्षद राम जनम यादव ने उठाई है। डेली सुबह 6 बजे से 10 बजे तक वार्ड में सफाई का निरीक्षण करके अपने वार्ड चमकाने की कोशिश कर रहे हैं। जगह-जगह छोटे-छोटे होर्डिग लगाने के साथ-साथ अपने वार्ड में पक्के कूड़ादान बनवा रहे हैं। एरिया में लोगों को जागरूक करते हैं और उन्हें रोड पर कूड़ा न फेंकने की नसीहत दे रहे हैं। उन्हीं के प्रयासों से मोहद्दीपुर की गली आज चमक रही है। अब उन्होंने अपना दायरा बढ़ा लिया है। दुकानदारों से बात कर उनके यहां से निकलने वाले कूड़े को डिस्पोज करने की तैयारी हा रही है।

दूसरों को पढ़ता देख दिल में होती है खुशी

किसी को अपनी ख्वाहिश पूरी कर खुशी मिलती है तो किसी को दूसरे का सपना सच करने में मदद कर। सिटी की फेमस गाइनकोलॉजिस्ट डॉ। सुरहीता करीम भी इन्हीं में से एक हैं। करीब सात साल पहले स्टार चैरिटेबल ट्रस्ट बना कर डॉ। करीम ने ऐसे ही लोगों के सपने को सच करना शुरू किया। डॉ। करीम का मकसद जरूरतमंदों की मदद करना था। उन्होंने सबसे अधिक मदद उन लड़कियों को दी जिन्हें हायर एजुकेशन लेनी थी, मगर पैसे की कमी उनका रास्ता रोके खड़ी थी। डॉ। करीम ने अपने ट्रस्ट की ओर से ऐसी लड़कियों की आर्थिक मदद कर उनके सपने सच कराए। वे गंभीर बीमारी जैसे कैंसर से जूझ रहे लोगों की मदद भी कर रही है। फिर बात चाहे दवा की हो, इलाज की हो या आर्थिक मदद। इसके अलावा ठंड में गरीबों को कंबल वितरण और गर्मी में प्याऊ की भी व्यवस्था करती हैं। उनका कहना है कि वैसे तो यह प्रयास भी जरूरत के हिसाब से काफी कम है, मगर कोशिश करती हूं कि अधिक से अधिक लोगों की मदद करूं। ऐसा कर मन को खुशी मिलती है।