यूं तो प्रेसिडेंट के लिए यूपीए के कैंडीडेट का नाम डिसाइड करने की कवायद काफी दिनों से चल रही है। लेकिन वेडनेस डे को जब सोनिया ने ममता बनर्जी से मीटिंग की तो लगा कि अब सब फाइनल हो ही जाएगा। सोनिया ने दो नाम सामने रखे थे प्रणब मुखर्जी और वाइस प्रेसिडेंट हामिद अंसारी।

थर्सडे को दीदी ने सपा चीफ मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की और अपने ओरिजनल तेवर दिखा दिए कांग्रेस के दोनों नाम उन्होंने रिजेक्ट कर दिए। कोलकाता नाइट राइडर्स की फैन ममता ने तीन नए नामों की गुगली कांग्रेस की ओर उछाल दी और सारी इक्वेशन बिगाड़ दी।

 

यहां तक तो सब वैसा ही था जैसा अभी तक हम देखते आए है। कहानी में टिवस्ट तब आया जब हर बार कांप्रोमाइज करने को तैयार दिखती कांग्रेस इस बार आमने सामने की फाइट के लिए एकदम रेडी दिखी। उसने ना सिर्फ प्रणव मुखर्जी के नाम को सामने रखा बल्कि फाइनली डिक्लेयर भी कर दिया। इससे भी बड़ा टिवस्ट यह है कि ममता दीदी इस पर एकदम खामोश हैं।

सैटरडे को उन्होंने मीडिया से मुलाकात भी की कुछ नए फैसले लिए जिसमें खास था वेस्ट बंगाल में फॉरेन इंवेस्टमेंट के दरवाजे खोलना और ब्राजील की फुटबाल टीम के इंडिया आने की बात करना, लेकिन दीदी ने प्रेसिडेंट इलेक्शन और यूपीए के कैंडिडेट के सलेक्शन पर कोई कमेंट नहीं किया।

अब तक यूपीए की सेकेंड इनिंग्स की जर्नी को देखा जाए तो साफ दिखाई देता है कि ममता बनर्जी ने मनमाने तरीके जब चाहा कांग्रेस को अपने कंट्रोल में रखा है। बात चाहे उनके रेल मिनिस्टर रहते हुए मिनिस्ट्री  पर अपना दबदबा बनाने की हो या वेस्ट बंगाल की चीफ मिनिस्टर बनने के बाद उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के ही रेल मिनिस्टर के जरिए उस पर अपना होल्ड बनाए रखने की हो।

यह उनका ही रुतबा था कि रेल फेयर के इंक्रीज को वापस लेने के लिए उन्होंने दिनेश त्रिवेदी से एज रेल मिनिस्टर ऑन गोंइग बजट सेशन में रेजिगनेशन दिलवा कर मुकुल रॉय को नया रेल मिनिस्टर बनवा दिया और कांग्रेस कुछ नहीं कर पायी। इसके बाद भी वो लोकपाल बिल मामले में एंटी कांग्रेस टीम में नजर आयी। यही नहीं पहले तीस्ता रिवर वाटर मामले में वह प्राइम मिनिस्टर के साथ बांग्लादेश यात्रा पर नहीं गयीं और कांग्रेस की किरकिरी करवा दी। ऐसे केसेज की लंबी सीरिज है जब ममता बनर्जी के प्रेशर में कांग्रेस ने घुटने टेके हैं।

प्रेसिडेंट इलेक्शन के मामले पर भी उनके तेवर कड़े दिखे, उन्हों ने यहां तक कहा कि यूपीए चाहे तो उनकी पार्टी यानी उन्हें एलायंस से निकाल दे लेकिन वह किसी धमकी या प्रेशर से नहीं डरती। ऐसे में सबके जहन में यही सवाल है कि इस बार ऐसा क्या हो गया जो ममता खामोश हैं, या फिर यह तूफान के पहले की खामोशी है। या फिर ममता जानती हैं कि इस टाइम उनके साथ देने या ना देने से कांग्रेस को कोई फर्क नहीं पड़ेगा और प्रणव दादा की दादागीरी चल कर ही रहेगी। दादा का प्रेसिडेंट बनना तय है इसलिए दीदी किसी नए मामले पर कांग्रेस को घेरने के लिए अपनी एनर्जी बचा कर रख रही हैं।

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