-बीआरडी में एमबीबीएस छात्र-छात्राओं को प्रैक्टिकल के लिए नहीं मिल रही बॉडी - तीन साल पूर्व एनॉटोमेज टेबल के लिए शासन को करीब सवा करोड़ का भेजा गया था प्रपोजल

- एमबीबीएस प्रथम वर्ष में ही मानव के शरीर संरचना पर करते हैं रिसर्च

GORAKHPUR: बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस की 100 सीटें हैं। जिसमें पढ़ाई के लिए प्रथम वर्ष के सिलेबस में ही मानव संरचना के बारे में जानना होता है। इसके लिए उन्हें डेडबॉडी की जरूरत होती है। लेकिन मेडिकल कॉलेज में डेडबॉडी नहीं अवेलबल है। इसकी वजह से बिना रिसर्च के ही स्टूडेंट्स की पढ़ाई आगे बढ़ रही है। हालांकि इससे निपटने के लिए तीन साल पूर्व एनॉटमी विभाग के एचओडी ने करीब सवा करोड़ की लागत वाली एनॉटोमेज टेबल का प्रपोजल शासन को भेजा था। लेकिन इस पर सरकार की ओर से विचार नहीं किया जा सका। इसी का नतीजा है कि किताबी ज्ञान से ही एमबीबीएस डॉक्टर तैयार किए जा रहे हैं और उन्हें डिग्री भी दे दी जा रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि बिना प्रैक्टिकल के क्या वे अच्छे डॉक्टर बन पाएंगे और क्या सही इलाज कर पाएंगे।

एनॉटोमेज टेबल की डिमांड

बीआरडी मेडिकल कॉलेज के एनॉटमी एचओडी डॉ। रामजी के मुताबिक तीन साल से एक ही डेडबॉडी पर स्टूडेंट रिसर्च कर रहे हैं। जबकि दस स्टूडेंट्स पर एक बॉडी की जरूरत होती है। मॉडल के रूप में एमबीबीएस छात्र-छात्राओं को बॉडी दिखाई जाती है और रिसर्च कराया जाता है। डिपार्टमेंट में छात्र-छात्राओं को मानव शरीर की प्रैक्टिकल जानकारी देने के लिए दस टेबल हैं। एक-एक टेबल पर दस-दस छात्र-छात्राओं के लिए प्रैक्टिकल की व्यवस्था है। ऐसे में सौ सीटों के लिए हर वर्ष कम से कम 10 बॉडी की आवश्यकता होती है। लेकिन हालत ये है कि पिछले दस वर्षो में केवल 13 ही डेडबॉडी मिल सकी हैं। बॉडी की कमी को देखते हुए करीब सवा करोड़ की लागत से एनॉटोमेज टेबल के लिए शासन को प्रपोजल भी भेजा गया जिसपर विचार नहीं किया जा सका। सूत्रों की मानें तो लखनऊ केजीएमयू और एम्स ऋषिकेश में एनॉटोमेज टेबल की व्यवस्था है। इसकी तर्ज पर गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कॉलेज के लिए एनॉटोमेज टेबल की डिमांड की गई थी जो पूरी नहीं हो सकी। जिसकी वजह से एमबीबीएस छात्र-छात्राओंके पढ़ाई पर संकट गहरा गया है।

पुलिस भी नहीं करती मदद

डॉ। रामजी के मुताबिक कानूनी पेंच की वजह से लावारिस डेडबॉडी मुहैया कराने में पुलिस भी कतराती है। जहां पहले नियम कानून इतना कठोर नहीं था। तब पुलिस अफसरों से बात कर डेडबॉडी आसानी से मिल जाती थी लेकिन जबसे पोस्टमार्टम अनिवार्य हुआ तबसे बॉडी भी मिलनी बंद हो गई। इस संबंध में पुलिस के आला अफसरों को पत्र लिखा गया लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। अफसरों के अक्सर बदलने की वजह से नए सिरे से बात रखने में काफी परेशानी होती है। जिसके चलते मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है।

पोस्टमार्टम के बाद रिसर्च लायक नहीं रहती बॉडी

बॉडी का पोस्टमार्टम होने के बाद वह रिसर्च योग्य नहीं रह जाती है। पोस्टमार्टम के बाद बॉडी इस स्थिति में नहीं होती कि उस पर दवा चढ़ाकर सुरक्षित रखा जा सके। इसलिए प्रयास किया जाता है कि ऐसी लावारिस बॉडी उपलब्ध कराई जाए, जिसका पीएम न किया गया हो। लेकिन पुलिस बिना पीएम के बॉडी देने से कतराती है। जिसकी वजह से पीएम वाली बॉडी पूरी तरह से बेकार हो जाती है। साथ ही उसके ब्लड की नसें कट जाती है। जिसकी वजह से बॉडी में दवाएं नहीं चढ़ाई जा सकती।

जागरूकता के सेमिनार भी बेअसर

लोगों में जागरूकता के लिए कई संस्थाएं कार्य करती है जिसे देहदान के लिए प्रेरित किया जाता है। वह आवेदन कर देहदान की प्रक्रिया पूरी करते हैं लेकिन समय आने पर कोई भी इस नियम को फॉलो नहीं करता है। जिसकी वजह से बॉडी नहीं मिल पा रही है। सेमिनार के माध्यम से करीब 26 लोगों ने देहदान के लिए आवेदन किए लेकिन आज तक किसी ने बॉडी दान में नहीं दी।

बीआरडी को मिलीं बॉडी

वर्ष बॉडी

2007 2

2008 2

2010 4

2011 2

2015 1

2017 1

2018 1

वर्जन

बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस रिसर्च के लिए डेडबॉडी नहीं मिल पा रही है। बॉडी की कमी को दूर करने के लिए तीन साल पहले एनॉटोमेज टेबल के लिए प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा गया था। साथ ही लोगों को जागरूक करने के लिए कई बार सेमिनार भी किए गए। लेकिन यहां आज भी जागरूकता का अभाव है जिसकी वजह से कोई देहदान नहीं करता है।

- डॉ। रामजी, एचओडी एनॉटमी, बीआरडी मेडिकल कॉलेज