रोक लगाने का कदम

भारतीय जनता पार्टी की सांसद मीनाक्षी लेखी ने लोकसभा में असहिष्णुता पर अपना बयान दिया। इस दौरान उनका कहना था कि देश में अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगाने का दौर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के शासन काल में था। उन्होंने अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगाने का कदम उठाया था। आज देश में अभिव्यक्ति की पूरी आजादी है। जिसे जो बोलना है वह आसानी से बोल रहा है। तो ऐसे में कहां हैं देश में असहिष्णुता। किसे नहीं बोलने दिया जा रहा है। इसके साथ ही उनका कहना था ये बात सच है कि आज देश में कुछ विरोधी पार्टियों के लोग हैं जो नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ असहिष्णुता का रवैया अपनाए हुए वे उनकी सरकार को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। जिसमें वे बड़े बड़े लोगों को शामिल करके अपनी आवाज बुलंद कर रहें हैं। जिससे कि बड़ी संख्या में लोगों का ध्यान इस ओर खीचा जा सके।

मौजूदा हालात की चिंता

वे बेवजह ऐसे मुद्दो को उठाकर देश की स्थिति को गंभीर करना चाहते हैं। इतना ही नहीं उनका कहना था कि यह सच है कि कुछ खास फिल्मकारों और तथाकथित बुद्धिजीवियों ने असहिष्णुता का हवाला दिया है। जिसमें कुछ बड़े साहित्यकार भी शामिल है। जिसके चलते उन्होंने अपने अपने अवार्ड भी वापस किए और कुछ लोगों ने करने का ऐलान किया है। जबकि यह सच्चाई कुछ और ही है। इन लोगों ने असहिष्णुता की वजह से नहीं बल्कि अपने राजनीतिक हितों के चलते ये अवार्ड वापसी का कदम उठाया है। वरना यह साफ है कि देश में ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें मौजूदा हालात और देश की चिंता है, लेकिन फिर भी उन्होंने अवॉर्ड नहीं लौटाए हैं। वे इन बयानों व ऐसे कदमों की बजाय देश की स्थितियों को सुधारने की चिंता कर रहे हैं।

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