'पगला' कहीं का!

हां, वो पगला ही तो है, क्योंकि वो हर पल टकटकी लगाए उन बच्चों की राह तकता है, जिसे उसने अपने बुढ़ापे की लाठी समझकर पाला-पोसा। वो पगला है क्योंकि हर कदमों की आहट उसमें ये एहसास भरती है कि उसके बच्चे उसे लेने आए हैं जो कि अगले ही पल दम तोड़ देती है। जब उन्हें मेंटल प्रॉब्लम थी, उसे झेलना तो फिर भी आसान था मगर ठीक होने के बाद भी जब अपने बेरुखी पर उतर आए, उन्हें अपना कहने में इंसल्ट समझने लगे तो उसकी जिंदगी एक बोझ सी बनकर रह गई। तिल-तिल कर जीना या फिर यूं कहें कि मरना किसे कहते हैं, ये जानना हो तो डिस्ट्रिक्ट मेंटल हॉस्पिटल में एडमिट ओल्ड एज लोगों के दिलों को जरा कुरेद कर देखिए, दिल में दफन गुबार अश्कों की शकल में ढलक कर चेहरे की झुर्रियों को नम कर देंगे। तो आइए आज जरा उनके गम में हों शरीक, अंदर के पेज पर।

जलता हुआ दिया हूं मगर रोशनी नहीं

या

इनके 'करण-अर्जुन' कभी नहीं आएंगे

--District mental hospital के बीस परसेंट पेशेंट्स डिस्चार्ज के लिए रेडी, लेकिन लेने नहीं आ रहे हैं उनकी फैमिली

-पेशेंट्स के ठीक होने की खुशी से फैमिली मेम्बर्स को हो रही टेंशन, सोशल स्टेटस पर धब्बा लगने का सता रहा डर

VARANASI: मां-बाप का साथ बहुत अनमोल होता है। जिनके साए में रहकर हम तरक्की की सीढि़यां चढ़ते जाते हैं, जब उस मुकाम पर पहुंच जाते हैं तो उन्हीं मां-बाप को भूल जाते है। डिस्ट्रिक्ट मेंटल हॉस्पिटल के के ठीक हो चुके मेंटल पेंशेंट्स इस इंतजार में हैं कि उनके बेटे या दूसरे फैमिली वाले उन्हें लेने के लिए आएंगे लेकिन उनका इंतजार बस इंतजार ही रह जाता है, वो टकटकी लगाए बैठे रहते हैं

ऐसा आपने भले ही न किया हो लेकिन आज हम आपके सामने जो स्टोरी पेश करने जा रहे हैं, वो आज की सोसाइटी का एक डार्क फेस को बेनकाब कर देगा। 'सोसायटी क्या कहेगी' ये डर अपने मां-बाप पर भी हावी हो जा रहा है। यहां तक कि अपने पिता को घर में रखने में भी इंसल्ट होती है। अगर रख भी लिया तो एक कमरे में कैद करके रखा जा रहा है।

डैड हुए बीमार तो बन गए बोझ

एक समय वो भी था, ताजनगरी आगरा में वो एक फेमस डॉक्टर थे। उनकी लड़की भी डॉक्टर, एक लड़की अच्छे कॉलेज में टीचर, एक लड़का बीएचसीएल में चीफ इंजीनियर तो दूसरा विदेश में रहता है। उनकी वाइफ टीचर वाली बेटी के साथ रहती है। इतना बड़ा साम्राज्य लेकिन पिता को ठहराने के लिए उनके पास एक अदद छत नहीं थी। जिस पिता के कंधे पर दोनों बेटे व बेटियों ने मार्केट की सैर की, जिस पिता ने उन्हें आसमान छूने के काबिल बनाया, वहीं बच्चे अपने पिता को साथ रखने में बहानेबाजी करने लगे।

लेटर मिलने के बाद नहीं देते जवाब

इस बेरुखी की एकमात्र वजह ये थी कि उनके फादर मेंटल पेशेंट हैं। इसलिए उनको सोसाइटी में इंसल्ट होने का डर रहता है। फादर बिल्कुल ठीक हो गए फिर भी उन्हें कोई ले जाने के लिए तैयार नहीं हुआ। कई बार फैमिली को लेटर भी भेजा गया लेकिन फादर को ले जाने के लिए कोई भी नहीं पहुंचा। लिहाजा हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन की ओर से उन्हें को डिस्चार्ज कर उनके घर पहुंचाया गया। लेकिन डिस्चार्ज पेपर पर साइन करने में फैमिली मेम्बर्स ने बहुत ड्रामा भी किया था।

यह तो महज एक एग्जाम्पल था ऐसे कई केसेज है जो मानसिक अस्पताल के बड़े-बड़े दीवारों के बीच अपनी जिंदगी काट रहे हैं। बस इसलिए कि मां-बाप की मेंटल इलनेस सोसाइटी में बच्चों की इंसल्ट करा रही है।

फैमिली नहीं कर रही एक्सेप्ट

मानसिक हॉस्पिटल में ऐसे बीस परसेंट केसेज हैं, जिसमें पेशेंट्स अब बिल्कुल ठीक हो चुके है। जिन्हें डिस्चार्ज कर दिया जा सकता है। फिर भी उनकी फैमिली उन्हें एक्सेप्ट नहीं कर रही है। इसके लिए हॉस्पिटल एडमिनिस्ट्रेशन की ओर से कई बार लेटर भी भेजा जा चुका है फिर भी पेशेंट्स को लेने कोई नहीं पहुंचता। एक नहीं बल्कि दो दशक तक पार होने को आ गए लेकिन पेशेंट्स के अपनों ने उनकी कोई खोज खबर तक नहीं ली। आज अपनों की राह में पेशेंट्स की आंखे पथरा गई है।

मां-बेटी, बहन-बुआ एडमिट

ऐसे केसेज में लेडीज की कंडीशन और भी बुरी है। कई महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें फैमिली मेम्बर्स ने एक बार हॉस्पिटल में एडमिट करा दिया फिर उसके बाद दोबारा आज तक उनके मिलने तक नहीं पहुंचे। इनमें किसी की मां हैं, तो किसी की बीवी तो किसी की बहन-बुआ। क्योंकि उन्हें लगता है कि मानसिक हॉस्पिटल से सेफ एंड बेस्ट प्लेस कोई दूसरा नहीं हो सकता। जहां उन्हें वो ड्रॉप कर अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेते हैं।

द अदर साइड

हाई प्रोफाइल लोग, बातें भूत-प्रेत की

रूरल एरिया के लोग भूत प्रेत की बात करें तो समझ में आता है लेकिन सिटी में रहने वाले हाई प्रोफाइल सोसाइटी से बिलांग करने वाले लोग इस तरह की बात करें तो फिर उनके जैसा स्टुपिड कोई और नहीं हो सकता। मानसिक हॉस्पिटल में इस तरह के भी केसेज है। पहले तो भूत प्रेत मानकर ओझा तांत्रिक से झाड़ फूंक कराते है। जब पेशेंट की हालत काबू से बाहर हो जाती है तो फिर डॉक्टर्स से चेकअप कराने पहुंचते हैं। ऐसे में पेशेंट की बीमारी लास्ट स्टेज में पहुंच जाती है जिसे ठीक कर पाना इम्पॉसिबल होता है। लेकिन फिर भी अच्छे दवाओं की कोर्स करके पेशेंट्स सही भी हो जाता है।

मानसिक पेशेंट्स हो जाते हैं ठीक

ऐसा न समझे कि मानसिक बीमारी कभी ठीक नहीं हो सकती है। जिस तरह हार्ट के पेशेंट्स ठीक हो जाते हैं, कैंसर के पेशेंट्स दवाओं के डोज से सही हो जाते हैं। इसी तरह मानसिक रोगी भी ठीक हो जाते हैं, बिलकुल नॉर्मल हो जाते हैं। आप उनसे हर बात शेयर कर सकते है। ऐसा कतई न सोचें कि मानसिक पेशेंट्स कभी ठीक नहीं हो सकते हैं। यह एक बीमारी होती है जो प्रॉपर ट्रीटमेंट के बाद सही हो जाती है।

बीस परसेंट ऐसे पेशेंट्स है जो बिल्कुल ठीक हो चुके हैं। जिन्हें डिस्चार्ज करने के लिए उनकी फैमिली को लेटर भी भिजवाया गया लेकिन कोई लेने के लिए तैयार ही नहीं हो रहा। यहां तक कि घर पहुंचने पर ताला बंद कर फरार हो जाते हैं।

सुनील श्रीवास्तव

निदेशक, डिस्ट्रिक्ट मानसिक हॉस्पिटल