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PRAYAGRAJ: जब चुनाव का दौर आता है, महिला आरक्षण और महिलाओं को उनका अधिकार दिए जाने का मुद्दा उठता है। महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा की बातें होती हैं। लेकिन चुनाव बाद सारी बातें बस बातें ही रह जाती हैं। जिस यूथ को चुनाव में डेमोक्रेसी का पावर बताया जाता है। बेहतर भविष्य और रोजगार का सपना दिखाया जाता है। वह रोजगार के लिए बस भटकता रह जाता है। आखिर ऐसा क्यों है? इस सिस्टम में बदलाव आना चाहिए। युवाओं को केवल सपने न दिखाएं, उनके लिए ठोस प्लान न बनाएं। यूथ केवल वोटर नहीं, बल्कि देश का भविष्य है। हमारे देश की सरकारों और पॉलिटिशियंस को ये समझना चाहिए। दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के राजनी'टी' चर्चा में रविवार को अशोक नगर स्थित आर्ट एंड मोशन डांस क्लासेज में मिलेनियल्स ने कुछ इसी तरह से अपनी बातें रखी।

अनएंप्लॉयमेंट आखिर कब तक?
चर्चा की शुरुआत करते हुए शुभ्रा चतुर्वेदी ने कहा कि आज का यूथ अनएंप्लॉयमेंट का शिकार है। एजुकेशन कम्प्लीट करने के बाद उसे कहां जाना है, इसको लेकर वह आज भी कंफ्यूज है। एंप्लॉयमेंट का तरीका बहुत बेहतर नहीं है। गवर्नमेंट ने वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट को प्रमोट करने का प्लान बनाया है। गवर्नमेंट का ये प्लान बहुत अच्छा है, लेकिन एक्चुअल नीडी यूथ इस प्लान से दूर है। एंप्लॉयमेंट के लिए गवर्नमेंट को यूथ की हेल्प करनी चाहिए।

 

 

लोन दें, बस दिखावा न करें
अब ये जरूरी नहीं कि हर किसी को गवर्नमेंट जॉब मिल जाए या फिर वो अच्छी प्राइवेट जॉब कर ले। ऐसे युवाओं को सरकार लोन दे रही है, ताकि ये युवा अपने पैर पर खड़े हो सकें। लेकिन आज जब युवा लोन लेने जाता है, तो उससे पूछा जाता है कि आपके पास पूंजी है? स्टैब्लिश्ड बिजनेस है या नहीं? आपके पास इनकम का माध्यम होगा, तभी लोन मिलेगा। अब सवाल यह है कि अगर इनकम का माध्यम रहेगा तो फिर युवा लोन क्यों लेगा। हमने लोन के लिए अप्लाई किया तो पूछा गया कि आप क्या करते हो, बिजनेस क्या है? हमने कहा बिजनेस बढ़ाने के लिए ही लोन चाहिए तो मना कर दिया गया।

 

आर्थिक आधार पर हो आरक्षण
चर्चा में युवाओं से पूछा गया कि आरक्षण पर उनकी राय क्या है तो युवाओं ने कहा कि जिस पार्टी की सरकार बनती है, वह आरक्षण का मुद्दा उठाती है। आरक्षण पर अब बस केवल राजनीति होती है। कोई एससी-एसटी को आरक्षण की पैरवी करता है तो कोई ओबीसी और जनरल की। जबकि आरक्षण जातिगत आधार पर नहीं, बल्कि आर्थिक आधार पर ही होना चाहिए।

सरकारी स्कूलों की पढाई का लेवल सुधरे
चर्चा में यूथ ने कहा कि आज भारत का एजुकेशन सिस्टम सबसे ज्यादा डिस्टर्ब है। जहां गवर्नमेंट स्कूल में लाखों रुपये खर्च होने के बाद भी बच्चे नहीं दिखाई देते हैं। प्राइवेट स्कूलों में लाइन लगी रहती है। किसी भी सरकार को इस अंतर को खत्म करने का प्रयास करना चाहिए। जिस दिन यह अंतर खत्म हो जाएगा, उस दिन अपना देश अपने आप बदल जाएगा।

कड़क मुद्दा
महिलाओं के लिए आज भी सिक्योरिटी नहीं है। हम सभी बहुत इनसिक्योर हैं। अभी भी रात नौ बजे तक या आठ-साढ़े आठ बजे तक कोई लड़की अपने घर नहीं पहुंचती है तो उसके घर वाले परेशान हो जाते हैं। तुरंत फोन करते हैं और पूछते हैं कि कहां हो। किसी अनहोनी के दौरान सुरक्षा के लिए हेल्पलाइन नंबर अवेलेबल तो है, लेकिन अक्सर फेल ही साबित होता है। जो डर पहले था, वो आज भी है ही नहीं, बल्कि और बढ़ गया है। निर्भया कांड के बाद घटनाओं में कमी नहीं आई है, बल्कि मनमानी और बढ़ गई है।

मेरी बात

स्किल डेवलपमेंट हो या फिर मेक इन इंडिया कैंपेन तभी सक्सेस होगा, जब यूथ तक सही तरीके से इसका लाभ पहुंचेगा। योजनाएं तो बहुत चल रही हैं, लेकिन यूथ को योजनाओं की जानकारी नहीं है। स्थिति ये है कि एलाइनमेंट नहीं है गवर्नमेंट के प्रोग्राम और यूथ के बीच। इसकी वजह से यूथ कहीं भी चला जा रहा है। उसे गाइड करने वाला नहीं है। जो लोग डॉक्टर, इंजीनियर बनने की तैयारी कर रहे हैं, बस केवल उन्हें गाइडेंस की जरूरत है, ऐसा नहीं है। गाइडेंस की जरूरत तो सभी को चाहिए। अभी तक किसी भी गवर्नमेंट ने इस ओर काम नहीं किया है।

अभिनव जॉय जैदी

 

कॉलिंग

स्टूडेंट्स से ये कहना कि आपको लोन तभी मिलेगा जब बैंक बैलेंस होगा, तो इस तरह का रूल पूरी तरह से गलत है। क्योंकि अगर स्टूडेंट के पास पैसा होता तो वह लोन के लिए अप्लाई क्यों करता? जबकि अपने सपने को पूरा करने के लिए ही वह लोन चाहता है। इसलिए गवर्नमेंट को चाहिए कि इसके लिए फुलप्रूफ योजना बनानी चाहिए।

-अभिनव जॉय जैदी

 

सिस्टम कल भी करप्ट था और आज भी करेप्ट है। विभागों में कई चेन बने हुए हैं, जो पूरे सिस्टम पर कब्जा किए हुए हैं। जिनसे पब्लिक परेशान है। गवर्नमेंट को चाहिए कि वह करप्शन पर लगाम लगाने के लिए ठोस कदम उठाए। अगर ऐसा नहीं होगा तो फिर आने वाले वक्त में सर्वाइव करना बहुत ही मुश्किल हो जाएगा।

आकाश

 

अधिकारी, मंत्री पब्लिक की बात सुनने के लिए बैठे हैं। लेकिन मनमानी करने वाले लोग पब्लिक को अधिकारी व मंत्री तक पहुंचने ही नहीं देते हैं। कहा जाता है कि वे अभी नहीं मिलेंगे, तभी नहीं मिलेंगे, आप उनको पहले से जानते हैं क्या? भला पहले से जानकर क्या होगा। जरूरी है कि सिस्टम के अंदर पारदर्शिता लाई जाए। तभी जाकर सिस्टम ढंग से काम कर पाएगा।

सिद्धार्थ

 

आठ-आठ, दस-दस घंटे का समय केवल स्कूल में निकल जाता है। एक-दो घंटे घर पहुंचने में लगता है। फिर एक स्टूडेंट्स के पास समय ही कहां बचता है कि वह खुद को फिट रखते हुए पढ़ाई के साथ एक्स्ट्रा एनर्जी गेन कर सके। पढ़ाई को लेकर बड़े कदम उठाने होंगे। स्कूलों में इंफ्रास्ट्रक्चर और वहां पर एजुकेशन सिस्टम को और स्ट्रांग बनाए जाने की जरूरत है।

श्रेया शुक्ला

 

गवर्नमेंट सब्सिडी के नाम पर योजनाओं के नाम पर खर्च बहुत कर रही है। तमाम सुविधाएं दी जा रही हैं। लेकिन लाभ वे लोग उठा रहे हैं, जो इसके दायरे में फिट नहीं बैठते हैं, जो लोग फिट बैठते हैं, वो योजनाओं से वंचित हैं।

रवि श्रीवास्तव

 

यूपी 100 की गाडि़यों में बस केवल पुरुष जवान ही दिखाई देते हैं। उनकी ड्यूटी लगाई जाती है। महिला पुलिसकर्मी की ड्यूटी न होने से महिलाएं अनसेफ महसूस करती हैं। इसलिए अपनी समस्या कहने से भी कतराती हैं।

राहुल सिंह

 

ये बात बिल्कुल सही है कि आज भी मैं अपनी बेटी की सुरक्षा को लेकर चिंतित रहती हूं। वो जब घर से बाहर निकलती है तो डर लगा रहता है। मोबाइल पर लोकेशन लेती रहती हूं। जब तक वह घर नहीं आ जाती है, तब तक डर बना रहता है।

सपना शुक्ला

 

शाम को साढ़े पांच से साढ़े आठ का बैच चलता है। इसमें कोई भी पैरेंट्स अपनी बेटी का एडमिशन कराना नहीं चाहता है। चाहे जाड़ा हो या फिर गर्मी हो। साढ़े पांच से साढ़े आठ बजे वाले बैच में कोई गार्जियन नहीं चाहता है कि उसकी बेटी पढ़ाई के लिए घर से बाहर निकले। क्योंकि अगर देर हुई, असुरक्षा हुई तो कौन जिम्मेदार होगा।

किंजल

 

सीसीटीवी कैमरे तो लगा दिए गए हैं। लेकिन निगरानी बहुत कमजोर है। कुछ दिनों चलने के बाद कैमरे खराब हो जाते हैं। वर्किंग में नहीं रहते हैं। इससे क्राइम ग्राफ बहुत तेजी से बढ़ रहा है। इस पर लगाम लगाए जाने की जरूरत है, ताकि आम इंसान अपने आपको सेफ और सिक्योर फील कर सके।

डा। शशिकांत दुबे

 

स्वच्छ भारत मिशन का असर पूरे भारत में दिख रहा है। अपना प्रयागराज जीता-जागता उदाहरण है, जहां करोड़ों लोग आए, फिर भी स्वच्छता व्यवस्था बेहतर रही। हमें ये कहने में कोई गुरेज नहीं है कि कल के प्रयागराज और आज के प्रयागराज में बहुत अंतर दिखने लगा है। आज प्रयागराज पूरी तरह से बदल गया है।

पूर्वा त्रिवेदी

 

सबसे ज्यादा बदलाव एजुकेशन सिस्टम में करने की जरूरत है। जहां 50 से 60 हजार रुपए महीना पाने वाला शिक्षक-शिक्षण कार्य को बस केवल अपनी ड्यूटी मानकर करता है। बच्चों के ज्ञान में वृद्धि हो या न हो, वे शिक्षित हों या न हों, इससे उसका कोई लेना-देना नहीं रहता है। यही कारण है कि गवर्नमेंट स्कूल के बच्चे पीछे रह जाते हैं।

स्वाती आर्या

 

यूथ के लिए रोजगार बहुत जरूरी है। बिना इसके कोई भी देश संवर नहीं पाएगा। अगर यूथ को सही डायरेक्शन नहीं मिलेगी तो उस देश का भला नहीं हो सकता। आने वाले चुनाव में यूथ को रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा होगा। इसके अलावा सीमा पर सुरक्षा भी एक बड़ा मसला है।

शुभ्रा चतुर्वेदी