DEHRADUN: कसमें, वादे सब अक्सर झूठे निकलते हैं। ऐसे में कैंडिडेट्स से लोगों का भरोसा उठता जा रहा है। ये लोग अपने वादों से न मुकरें, इसके लिए जरूरी है कि मेनिफेस्टो जारी करने के साथ ही इनसे शपथ-पत्र भरवा लिया जाए। ताकि जो भी कैंडिडेट अपने वादों से मुकरे उनके खिलाफ कार्रवाई हो सके। मंडे को राजेंद्रनगर के सिरमौर मार्ग पर उत्तराखंड आरटीआई क्लब के कार्यालय में आयोजित राजनी-टी में मिलेनियल्स ने ये बात रखी। इस दौरान एजुकेटेड प्रत्याशी को वोट देने की बात पर जोर दिया गया।

आतंकवाद के मुद्दे से हुई शुरुआत
राजनी-टी की शुरुआत आतंकवाद के मुद्दे से हुई। इस दौरान मिलेनियल्स ने आतंकवाद के खात्मे की बात कही। साथ ही देश की सुरक्षा की बात उठाई। मिलेनियल्स का कहना था कि एक ओर खिलाडि़यों की सुरक्षा पर सरकार करोड़ों रुपये खर्च कर रही है जबकि सेना की सुरक्षा ही नहीं। इस ओर किसी का कोई ध्यान नहीं। इसीका खामियाजा आज सैनिक झेल रहे है। इसके बाद मिलेनियल्स ने लोकल मुद्दों पर फोकस करते हुए एंप्लॉयमेंट पर जोर दिया। उनका कहना था कि पहाड़ों पर बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। ऐसे में यूथ बड़े शहरों की ओर रुझान कर रहे हैं। नौकरी की तलाश में निकलने वाले लोग अपना परिवार भी साथ ले जा रहे हैं। ऐसे में पहाड़ सूने हो गए हैं, जहां खेती-किसानी तक बंद हो गई है और खेत बंजर पड़ गए हैं। सिर्फ नौकरी ही नहीं पानी और सड़क जैसी बेसिक सुविधाएं भी पहाड़ में नहीं है। यही नहीं हेल्थ सिस्टम भी स्टेट में बेहद खराब है। पहाड़ों में न डॉक्टर है, न दवाएं। ऐसे में जब लोग दून अस्पताल पहुंचते हैं तो यहां भी कई-कई दिनों में उनका नंबर आता है। उस पर भी सरकारी अस्पताल में पूरा इलाज नहीं मिलने पर प्राइवेट अस्पतालों का रुख करना पड़ता है। होटलों, धर्मशालाओं में रुकने का खर्च अलग देना होता है। ऐसे में भला कौन पहाड़ों पर रहेगा जब हमारे कैंडिडेट ही कभी पहाड़ नहीं चढ़ते। वहां के लोगों की समस्याओं को नहीं सुनते तो भला लोग भी वहां क्यों रहना चाहेंगे। जब भी इलेक्शन का टाइम होता है बड़े-बड़े वादे होते हैं, यहां तक कि मेनिफेस्टो में लिखे जाने वाला वादा तक कभी पूरा नहीं होता है। इस व्यवस्था को बदला जाना चाहिए ताकि कैंडिडेट जैसा वादा करें, उसे पूरा भी करें। इसके लिए कैंडिडेट से मेनिफेस्टो के हर वादे को पूरा कराने के लिए शपथ पत्र भरवा लेना चाहिए। ऐसी व्यवस्था अवश्य की जाए। साथ ही जो कैंडिडेट अपने क्षेत्र से रूबरू हो, समस्याओं को ही नहीं बल्कि लोगों को भी जानता हो। ऐसे कैंडिडेट को तवज्जों दी जानी चाहिए। यूथ अपनी ओर से ऐसे ही कैंडिडेट को चुनेंगे जो समस्याओं को नजदीक से जानते हों।

कड़क मुद्दा
कसमें, वादे, प्यार, वफा पर भरोसा करने का जमाना गया, क्योंकि कैंडिडेट जो बोलते हैं, वो कभी पूरा नहीं करते, तो जो बोला ही नहीं, उसको क्या करेंगे। कई कैंडिडेट्स तो ऐसे हैं जिन्हें परिवारवाद के चक्कर में वोट पड़ जाता है, जबकि ऐसे परिवार के नेता कुछ काम नहीं करवाते, न ही उन्हें लोगों की समस्याओं से कोई मतलब होता है।

तनु, अजय नारायण मिश्रा

मेरी बात
वोट जाति या धर्म के आधार पर नहीं पड़ना चाहिए, बल्कि काम करने वाले कैंडिडेट को वोट दिया जाए। किसी परिवार या पार्टी के चक्कर में न पड़ें, बल्कि अपनी अक्ल लगाएं। ऐसे कैसे भला हम किसी को भी वोट देकर जिता सकते हैं जो कि क्षेत्र का विकास करना तो दूर, कभी क्षेत्र में दिखाई तक नहीं देते हैं।

 

 

स्वाति, एमए, डीबीएस

एजुकेटेड कैंडिडेट्स को ही वोट दिया जाना चाहिए। पॉलिटिक्स में अक्सर एजुकेशन को दरकिनार कर दिया जाता है। लोग वोट देने से पहले ये नहीं देखते कि इस कैंडिडेट की एजुकेशन क्या है, ये पढ़ा-लिखा भी है कि नहीं, जबकि एजुकेटेड कैंडिडेट की सोच भी काम करने की होती है।

पूजा चौहान, एलएलबी, डीएवी

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पॉलिटिक्स में यूथ को तवज्जों दी जानी चाहिए। खासकर उत्तराखंड में यूथ कैंडिडेट हों, ताकि वह पहाड़ चढ़ सकें, न कि इतना बुजुर्ग, जिसको पहाड़ चढ़ने के नाम से ही परेशानी हो। बुजुर्ग नेता न तो चढ़ाई चढ़ पाते हैं, दम अलग फूलने लगता है। ऐसे में वह क्या तो पहाड़ जाएंगे और क्या वहां की समस्याएं सुनकर विकास कार्य करा पाएंगे।

गंगोत्री यादव, बीएससी, एमकेपी

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यूथ बेरोजगार हैं, लेकिन इसके लिए कोई काम नहीं किया जा रहा है। जब भी चुनाव होते हैं तो यूथ से रोजगार के नाम पर वोट ले लिए जाते हैं, लेकिन रोजगार नहीं मिलता, जबकि यूथ एनर्जी के साथ नए तरीके से काम करते हैं। इसका उदाहरण चुनाव ड्यूटी में भी देखा जा सकता है, जबकि अधिकतर बुजुर्ग लोग बीमारी की बात कहकर पहाड़ में ड्यूटी न लगाने की बात करते हैं।

तनु, बीए, एमकेपी

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चुनाव हो या सरकारी कार्यालय, हर जगह यूथ बेहतर काम कर रहे हैं। वे राजनीति में भी सक्रिय हैं, लेकिन टिकट में भी पक्षपात होता है। ऐसे में भला काम करने वाले भला कैसे आगे आ सकेंगे। इस ओर भला कौन ध्यान देगा। यूथ को चाहिए कि यदि उन्हें काम करना हो तो निर्दलीय रूप से चुनाव लड़ें लेकिन लोग भी उनका साथ अवश्य दें, उनको वोट दें।

प्रयांश गौतम, डिफेंस प्रीपे्रशन

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हर जगह भ्रष्टाचार व्याप्त है, चाहे राजनीति हो या सरकारी कार्यालय, जिसको आए दिन बढ़ावा मिल रहा है। इस करप्ट व्यवस्था के लिए हम सभी कहीं न कहीं जिम्मेदार हैं, लेकिन सबसे ज्यादा पॉलिटिशियन हैं, क्योंकि टिकट लेने से लेकर चुनाव लड़ने तक ये लोग खूब पैसा खर्च करते हैं। वोट बैंक की राजनीति के लिए कुछ भी कर गुजरते हैं जो कि गलत है।

सतीश नौटियाल, सिविल इंजीनियर

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अश्विनी पांडे, एमए

राज्य का गठन हुए 18 वर्ष हो गए, लेकिन राज्यवासियों को क्या मिला। आखिर न तो पहाड़ का विकास हो पाया और न ही यूथ को रोजगार मिल पाया। किसी भी दिशा में कोई काम नहीं हो पाया। यहां तक कि पहाड़ चढ़ने के लिए सड़क भी सही हालत में नहीं है। कई जगहों पर पुल क्षतिग्रस्त हैं, झेलने वाले झेल रहे हैं लेकिन इससे पॉलिटिशियंस को कोई फर्क नहीं पड़ता।

रणवीर सिंह रावत, बिजनेसमैन

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हर जगह अव्यवस्थाएं हावी हैं। इनके सुधार के लिए काम करने वाला कोई नहीं है। क्यों ये कैंडिडेट चुनाव जीतने के बाद दिल्ली जाकर बैठ जाते हैं। यदि इन्हें दिल्ली ही जाना था तो ये पहाड़ों के विकास के नाम पर आखिर क्यों चुनाव लड़ते हैं। हम ऐसे कैंडिडेट को वोट देंगे जो राज्य के नाम पर चुनाव लड़े और राज्य में ही रहे, यहां रहकर यहां का विकास करें। विशाल, इंश्योरेंस कंपनी

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यूथ कैंडिडेट को ही वोट दिया जाएगा, जो कि यूथ की समस्याओं को समझें, यूथ के लिए काम करें। हर आयु वर्ग के लिए कुछ न कुछ योजनाएं निकलती हैं, लेकिन यूथ के लिए अलग से कोई काम नहीं किया जाता है। यूथ को तवज्जो देते हुए उनके लिए भी काम होना चाहिए, ताकि यूथ को भी बढ़ावा मिले। पॉलिटिक्स में भी यूथ को तवज्जो दिया जाना चाहिए।

सूरज, बीकॉम, सेकेंड ईयर