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PRAYAGRAJ: मेक इन इंडिया का लक्ष्य पूरा करना है तो लोगों में कौशल विकास को बढ़ावा देना होगा. यह काम तभी होगा, जब लोगों को ईमानदारी से प्रशिक्षित किया जाए. तभी वे उम्मीद के मुताबिक अपने रोजगार को डेवलप कर पाएंगे. इस दिशा में काम करने के लिए प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना बड़ा माध्यम है. लेकिन कौशल विकास के नाम पर सरकारी अफसर केवल खानापूरी कर रहे हैं. यह बात युवाओं ने कही दैनिक जागरण-आई नेक्स्ट के मिलेनियल्स स्पीक प्रोग्राम में. शुक्रवार को यह आयोजन इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के जीएन झा हास्टल में किया गया था.

नियुक्ति पत्र बांटकर ठोंक ली पीठ
इसमें शामिल युवाओं ने कहा कि कोई भी सरकार सभी को सरकारी नौकरी नहीं दे सकती. ऐसे में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना कार्यक्रम महत्वपूर्ण हो जाता है. यूं तो सरकार की यह योजना लोकलुभावन है और आम लोगों के बड़े काम की है. लेकिन सरकारी अफसर इस योजना के नाम पर केवल पैसे की बंदरबांट में लगे हुए हैं. युवाओं ने कहा कि इस योजना के तहत बेरोजगारों को प्रशिक्षित किया जाता है. कई बार बड़े-बड़े प्रोग्राम में सैकड़ों और हजारों लोगों को नियुक्ति पत्र भी दिया जाता है और बताया जाता है कि सरकार ने इतने लोगों को रोजगार दिया है.

कमीशन के खेल पर नहीं लग सकी नकेल
लेकिन हकीकत के धरातल पर देखा जाए तो ज्यादातर इस योजना के तहत जो सेंटर बनाए जाते हैं, उसमें गुणवत्ता का ख्याल नहीं रखा जाता. यहां मौजूद ट्रेनर केवल कोरम पूरा करने का काम कर रहे हैं. इसके अलावा सेंटर्स पर लेटेस्ट टेक्नोलॉजी पर बेस्ड संसाधनों का भी घोर अभाव होता है. हालांकि, उन्होंने कहा कि कई ऐसे सेंटर भी हैं, जहां बेहतर काम करने की कोशिश की गई है. लोग प्रशिक्षण के बाद रोजगार के योग्य भी हुए हैं. युवाओं ने कहा कि जब तक सरकारी योजना के नाम पर कमीशन का खेल बंद नहीं होगा, तब तक स्थिति को सुधारा नहीं जा सकता.

कड़क मुद्दा
मौजूदा हालातों में छात्रों को ज्यादातर रटंत विद्या का सहारा लेकर स्किल इंडिया का सपना दिखाया जा रहा है. युवाओं ने कहा दिल्ली में बीते कुछ समय में प्राइमरी एजुकेशन की बेहतरी के लिए जो मॉडल अपनाया गया. इससे देश के अलग-अलग हिस्सों की सरकारें भी सीख सकती हैं. युवाओं ने कहा कि अच्छी चीजों की नकल करने में कोई बुराई नहीं है. बताया कि दिल्ली में प्राइमरी एजुकेशन की बेहतरी के लिए फीडबैक सिस्टम समेत अन्य चीजों को सख्ती से लागू किया गया है.

बातचीत में शामिल युवाओं ने सोशल मीडिया के माध्यमों के उपयोग और दुरुपयोग पर भी अपनी बात रखी. एक पक्ष का कहना था कि सोशल मीडिया ने लोकतंत्र को मजबूत किया है तो दूसरे पक्ष ने कटाक्ष करते हुए कहा कि सोशल मीडिया भीड़तंत्र में तब्दील हो चुका है. इसकी कोई विश्वसनीयता नहीं है. युवाओं ने कहा कि इसके बेहतर इस्तेमाल के लिए जरुरी है कि हम उन टूल्स के बारे में भी जाने, जिनके जरिए किसी इंफार्मेशन, फोटो या वीडियो के फेक होने का पता लग जाता है. कहा कि यदि सतर्कता के साथ सोशल मीडिया का यूज किया जाए तो यह एक सशक्त माध्यम है.

 

 

मेरी बात
नौकरी को लेकर हमें अपना नजरिया बदलने की जरूरत है. मुझे यह कहने में संकोच नहीं कि ज्यादातर लोग आराम के लिए सरकारी नौकरी पाना चाहते हैं. जाहिर है कि जब हम इस सोच के साथ किसी नौकरी में जाएंगे तो इससे समाज और राष्ट्र को कुछ भी हासिल नहीं हो पाएगा. ऐसे में रोजगार के दूसरे विकल्पों पर काम करना जरुरी हो जाता है.
- कुलदीप पांडेय

सिर्फ प्राइमरी एजुकेशन ही नहीं हायर एजुकेशन के साथ भी बड़ा मजाक किया जा रहा है. मेरा सवाल है कि जब विभिन्न आयोगों से असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति लिखित परीक्षा के जरिए होती है तो यूनिवर्सिटीज में केवल इंटरव्यू के जरिए भ्रष्ट नियुक्तियां कैसे लगातार की जा रही हैं ?
- डॉ. ब्रजेश शुक्ला

जब तक यूनिवर्सिटीज में रिटायर्ड टीचर्स के अप्वॉइंटमेंट पर पूरी तरह से रोक नहीं लगेगी. शिक्षित बेरोजगारों के लिए रास्ता नहीं खुलेगा. सरकार को इसके बारे में सख्ती से सोचना चाहिए था. लेकिन पूरा कार्यकाल बीत गया और उच्च शिक्षा में पुराना ढर्रा ही लागू रहा. डायरेक्ट इंटरव्यू के जरिए नियुक्ति सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा है.
- चन्द्रजीत यादव

उच्च शिक्षा में एकेडमिक परफार्मेस इंडेक्स टीचर्स की नियुक्ति का माध्यम है. यह एक ऐसा चोर दरवाजा है, जिसके रास्ते फर्जीवाड़ा करके एपीआई स्कोर गेन करने वाले नौकरी पा रहे हैं और योग्य अभ्यर्थी बाहर हो जा रहे हैं. एपीआई की पड़ताल करवा ली जाए तो अधिकांश की नौकरी चली जाएगी.
- सनी सिंह

मैं चुनाव से पहले कश्मीर के मुद्दे को लेकर चिंतित हूं. वहां आतंक और सेना के बीच आवाम पिसी जा रही है. कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और रहेगा. ऐसे ही वहां की आवाम को भी अभिन्न अंग बनाने के लिए सतह पर उतरकर काम करने की जरुरत है. लोग कहीं के भी हों, उन्हें शांति चाहिए.
- विनोद यादव

मेरा ध्यान भ्रष्टाचार की ओर है. किसी ने कहा है कि जो ज्यादा जिम्मेदार है. उसे ज्यादा जिम्मेदारी से पेश आना चाहिए. लेकिन यह अफसोस की बात है कि जो जितना पढ़ा लिखा है. उसमें ज्यादातर लोग कम पढ़े-लिखे या अशिक्षित लोगों का इस्तेमाल अपने हित में कर रहे हैं. इससे ज्यादा नुकसान हो रहा है.
- अश्वनी मौर्या

मेरी नजर में कोई भी सरकारी योजना अच्छी या खराब नहीं होती. इसका आकलन उसके इस्तेमाल के बाद मिले परिणामों से होता है. इस मामले में मैं सरकार को ज्यादा अंक नहीं दूंगा. फिर भी मेरा वर्तमान सरकार को समर्थन है. क्योंकि उसने पिछली सरकारों से बेहतर कोशिशें की.
- देवकीनंदन शुक्ला

बेहतर है कि सरकार प्रोपोगेंडा न करके इस समय मुद्दे की बात करे. लोगों के बीच जाए और उनके सवालों का सामना करे. केवल बड़ी बड़ी बातों से काम नहीं चलेगा. सरकार यह भी बताए कि भारी भरकम बजट खपाने के बाद भी मां गंगा क्यों नहीं साफ हुई ?
- शशिकांत यादव

सरकार स्कूल हो, कॉलेज हो या यूनिवर्सिटी. वहां के शिक्षकों को तो भारी भरकम वेतन मिलता है. लेकिन वहां के संसाधन अच्छे नहीं है. यह एक प्रकार से असंतुलन की स्थिति है. सरकार को चाहिए कि शिक्षकों का वेतन कम करे और छात्रों को मिलनी वाली सुविधाओं में इजाफा करे.
- ब्रजेश पाल

इस सरकार में कोई भी वैकेंसी बिना विवाद के क्लीयर ही नहीं हुई. यह भी देखा गया कि जिन परीक्षाओं पर फर्जीवाड़े के आरोप लगे, वहां प्रमाण होने के बाद भी सुनवाई तक नहीं हुई. ऐसे में सरकार ने लोकतांत्रिक आवाज को दबाने और कुचलने का काम किया. इससे युवाओं में नाराजगी है.
- अतुल सिंह