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PRAYAGRAJ :
इस देश में पिछले सात साल में सोशल मीडिया इस कदर घरों में घुस गया है कि यह एक ही परिवार के लोगों को बांटने लगा है. आज हर फैमिली मेंबर के पास एंड्रॉयड फोन है. इसके जरिए गली-मोहल्लों में होने वाली छोटी सी भी घटनाओं को फौरन फेसबुक या इंस्टाग्राम पर अपलोड कर सेकंडों में देश-विदेश में फैला दिया जाता है. इस वजह से कोई भी राजनैतिक दल अपने आईटी सेल के जरिए अपने लाभ और विरोधियों को नुकसान पहुंचाने वाली बातों को घर में पहुंचा रहा है. इससे घरों में लोग दिग्भ्रमित हो रहे हैं. यह बातें सोमवार को तेलियरगंज स्थित विवेकानंद पार्क में दैनिक जागरण आई नेक्स्ट की मिलेनियल्स स्पीक के दौरान युवाओं ने बेबाकी से रखी.

जहर का काम कर रहे मैसेज
डिस्कशन में बात चुनाव के दौरान सोशल मीडिया के प्रभाव को लेकर उठी. इस पर युवाओं ने दो टूक कहा कि इस मीडिया के जितने भी माध्यम है उस पर धर्म और राष्ट्रीयता को लेकर गलत मैसेज को खूब वायरल किया जाता है. ऐसे मैसेज पर घरों में बहस छिड़ जाती है लेकिन निष्कर्ष कुछ भी नहीं निकलता है. बल्कि घर के अलग-अलग सदस्य ग्रुप बनाकर वॉट्सअप और फेसबुक पर अभियान शुरू कर दिया जाता है. युवाओं ने बताया कि राष्ट्रीयता पब्लिक के दिल में होती है और किसी को भी दूसरे धर्म के खिलाफ नफरत फैलाने वाला मैसेज नहीं फैलाना चाहिए. ऐसा मैसेज करने वालों को सीधे जेल भेजने का कानून बनाया जाना चाहिए.

कड़क मुद्दा
भ्रष्टाचार दो तरीके से किया जाता है. एक जो दिख जाता है दूसरा कभी दिखता नहीं है. इसमें से जो नहीं दिखता है उसकी जड़ में ऐसी राजनैतिक पार्टियां होती हैं जिनकी सरकार होती है. अधिकारी उन्हीं के हिसाब से काम करते हैं. जो नहीं करते उनको साइडलाइन कर दिया जाता है. सचिन जायसवाल ने बताया कि भ्रष्टाचार के दूसरे पहलू के जरिए सरकारों की जितनी योजनाओं का बजट आता है उसमें बंदरबाट की जाती है. इसके लिए सीधे तौर पर राजनैतिक दल जिम्मेदार होते हैं.

मेरी बात
जमुना पांडेय ने बताया कि जब भी बेरोजगारी की बात होती है तो शर्म की समस्या सामने आ जाती है. फलां काम करने पर घर-परिवार और दोस्त क्या कहेंगे? अगर इस चीज को छोड़ दिया जाए तो रोजगार का अवसर खुल जाएगा. इस अनुपात में हर साल युवा डिग्री लेकर टहल रहे है उसका एक फीसदी भी रोजगार सरकारी सेक्टर में नहीं सृजित हो पाता है.

सतमोला बॉक्स
जब चार सौ रुपए में फ्री कॉलिंग से लेकर नेट की सुविधा का जमाना आ गया है तो सांसदों व विधायकों को किसलिए हजारों रुपए कॉलिंग के लिए दिया जाता है. इसी तरह उन्हें आजीवन पेंशन दी जाती है लेकिन सरकारी या प्राइवेट सेक्टर में इसकी सुविधा क्यों नहीं दी जाती है? क्या सारी सुविधाओं का अधिकार माननीयों के लिए ही है. आम पब्लिक को सिर्फ वोट के लालच में छलने का काम किया जाएगा.

 

 

कॉलिंग
सेना की स्ट्राइक पर जो भी राजनैतिक दल राजनीति कर रहा है उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. देश में इतने सारे मुद्दे ऐसे हैं जिससे सीधे-सीधे जनता जुड़ी हुई है. इस पर बात नहीं की जाती है. अखबारों में अक्सर अलग-अलग क्षेत्रों के हॉस्पिटलों में सुविधाओं के अभाव में इंसान के दम तोड़ने की खबरें दिख जाती है. इसको समाप्त करने के लिए ईमानदारी के साथ जनमानस की सेवा पार्टियों को करनी चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है.- जयवर्धन त्रिपाठी

चैनलों पर जब-जब धर्म और राजनीति को लेकर डिबेट कराई जाती है तो कट्टर लोगों को ही बुलाया जाता है. इनका काम देश के ज्वलंत मुद्दों पर एक राय बनाने का नहीं होता है बल्कि वे जहर उगलने वाली बातें करते हैं. इसका असर सोशल मीडिया में दिखाई देता है. डिबेट की ही बातों को पब्लिक और अधिक मसाला लगाकर वायरल करती है. इसकी वजह से घरों में लोग भ्रमित हो जाते है.
- राम नारायण मिश्रा

आतंकवाद के खिलाफ जो कारनामा इंडियन आर्मी ने कर दिखाया है उसको लेकर लगातार देश में निम्नस्तर की राजनीति चल रही है. कोई भी राजनैतिक दल इससे अछूता नहीं है. इसका फायदा दुश्मन देश उठा रहा है. इस तरह से आतंकवाद को कभी भी नहीं समाप्त किया जा सकता है. जब तक कि देश की सभी पार्टियां एकजुट होकर आतंकवाद पर प्रहार नहीं करेंगी. लेकिन वर्तमान दौर को देखते हुए ऐसा होना मुमकिन नहीं दिख रहा है.
- आकाश चौरसिया

सोशल मीडिया का इतना असर हो गया है कि अब पब्लिक अपना कामकाज छोड़कर उसी में मस्त रहती है. फलां ग्रुप से मैसेज आया तो दूसरे पर चिपका दिया. एक मिनट के लिए कोई उसको क्रॉस चेक नहीं करता है कि मैसेज कितना सही है या गलत है. धर्म, जाति और समाज को एकजुट करने के बजाए लोग एक-दूसरे को बांटने के लिए चुनिंदा मैसेज को वायरल करने लगते हैं.
- उदित शर्मा

देश में बेरोजगारी की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है. जिस हिसाब से देश में शैक्षिक संस्थानों की बाढ़ आ गई है उससे एक फीसदी भी रोजगार नहीं मिल रहा है. सरकार इस पर कभी ध्यान नहीं देती है. क्योंकि सरकारों में बैठे लोग ही ऐसी संस्थानों के जनक होते हैं और उनका मकसद सिर्फ मुनाफा कमाना ही होता है. इसकी मॉनीटरिंग की जाती तो आज देश में बेरोजगारी की स्थिति नहीं बढ़ती.
- मनीष यादव

रोजगार का साधन हमें खुद तलाशना होगा. सरकार के भरोसे रहेंगे तो खाने के लाले पड़ जाएंगे. एक तो लगातार भर्तियां नहीं होती हैं. भर्ती परीक्षा होती है उसमें भ्रष्टाचार इस कदर किया जाता है कि उसे पूरा कराने में ही कई साल निकल जाता है. तब तक युवा परेशान हो जाता है या उसका मनोबल टूट जाता है. इसके लिए सिर्फ सरकारी सिस्टम ही जिम्मेदार है, जिसकी कमान सरकारों के हाथों में होती है.
- महेन्द्र तिवारी

हम चीन के सामानों से अपनी खुशियां खरीदते हैं. लेकिन जब बैंकों में उसी तरह के रोजगार के लिए लोन लेने जाते हैं तो महीनों टहलाया जाता है. युवाओं को तरह-तरह की प्रक्रिया में घुमाया जाता है अंत में हारकर युवा निराश हो जाता है. सरकारी योजनाओं का लाभ बैंक उन्हें ही देते हैं जिनसे उन्हें लाभ मिलता है. सरकार भी अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेती है.
- राजाराम कनौजिया

जो भ्रष्टाचार देश में नहीं दिखता है उसका काकस इतना मजबूत है कि आम आदमी चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सकता है. क्योंकि अब वो दौर आ गया है कि राजनैतिक दल सिर्फ वोट बैंक के लालच से काम करवाते हैं. जनता उन्हें चुनती है लेकिन उनका काम अपना खजाना भरना होता है. सरकार से ज्यादा इसके लिए हम दोषी है.
- श्याम जी

भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी वजह राजनैतिक दल है. जब टिकट की बिक्री होगी तो जो धन देकर टिकट पाएगा वह निश्चित तौर पर जीतने के बाद उससे ज्यादा कमाना चाहेगा. पार्टियां भी ऐसे लोगों को ही टिकट देती है जिनके पास अकूत संपदा होती है. इससे हमारे देश का भला कभी नहीं हो सकता है. आम आदमी तो सिर्फ वोट ही देता रहता है.
- श्याम बाबू केसरवानी

सोशल मीडिया आज के दौर में ऐसा साधन बन गया है कि सेकेंडों में कोई भी बात या घटना करोड़ों लोगों तक आसानी से पहुंच जाती है. लोग सही और गलत का आंकलन नहीं करना चाहते हैं. बस मैसेज आया तो दूसरे को भेज देते है. इससे कई बार अहम मुद्दे भी मजाक बनकर रह जाते हैं.
- विजय श्रीवास्तव