- दून चाइल्ड लाइन की को-ऑर्डिनेटर हैं दीपिका पंवार

- घर से अक्सर भागने वाले बच्चों की नस-नस से हैं वाकिफ

- पुलिस जब भी किसी बच्चे को बरामद करती है, दीपिका से मिलती है हेल्प

देहरादून।

यूपी-उत्तराखंड में जब भी कोई मिसिंग बच्चा बरामद होता है तो दून चाइल्ड लाइन की को-ऑर्डिनेटर दीपिका उसे चुटकी में पहचान लेती है। घर से अक्सर भागने वाले कई बच्चों की कहानियां दीपिका को जबानी याद हैं, उनकी हरकतें, कहानियां सुनकर ही दीपिका को पता चल जाता है कि बच्चे का घर कहां है और उसे कहां पहुंचाना है। पुलिस इस काम में अक्सर दीपिका की मदद लेती है, 10 वर्ष के कार्यकाल में दीपिका का दावा है कि वह 200 बच्चों को उनके घर पहुंचाने में हेल्प कर चुकी है। कई बच्चों के फोटोग्राफ भी दीपिका के पास सेफ हैं।

रट गई हैं बच्चों की कहानियां

घर से भागे बच्चे पुलिस द्वारा रिकवर किए जाने पर अक्सर बनाई हुई कहानी पुलिस को सुनाते हैं, ऐसी कई कहानियां दीपिका को याद हैं, बार बार घर से भागने वाले बच्चे हर बार एक ही कहानी रिपीट करते हैं ऐसे में दीपिका उन्हें पहचान लेती है। दून के ही नहीं यूपी और बिहार के कई बच्चों की इस तरह की हिस्ट्री दीपिका के पास है और उनकी शक्ल देखे बिना उनके हाव-भाव, कहानियों से दीपिका को पता चल जाता है कि बच्चा कौन है और उसे उसके घर पहुंचा दिया जाता है।

बच्चों का माइंड रीड करने में एक्सपर्ट

पुलिस द्वारा रिकवर किए जाने वाले बच्चे चाइल्ड लाइन पहुंचाए जाते हैं, ताकि परिजनों का पता चलने तक उन्हें सेफ माहौल में रखा जा सके। दून चाइल्ड लाइन में जब भी कोई इस तरह का बच्चा पहुंचता है तो दीपिका उनसे उनकी स्टोरी पूछती है। बच्चों के अंदाज में ही दीपिका उनके साथ बिहेव करती है, ऐसे में बच्चों की चालाकियां उन्हें पता चल जाती हैं और बच्चे से वह उगलवा लेती हैं कि वह घर से भागा है या फिर वाकई मिसिंग है। कुछ बच्चे ऐसे हैं जो एक से अधिक बार घर से भाग गए, वे जब चाइल्ड लाइन पहुंचते हैं तो अक्सर पुरानी कहानी ही रिपीट करते हैं, मसलन माता-पिता नहीं हैं, मामा पिटाई करते हैं इसलिए घर से भाग गए या फिर मामा ने उसे बेच दिया है। इस तरह की कहानियों से वह बच्चे का रिकॉर्ड जान जाती हैं। बालमन की चालाकियों को समझने वाली दीपिका उन्हें हैंडल करने की एक्सपर्ट हैं।

बच्चे सीख गए बाहर कैसे करना है सर्वाइव

चाइल्ड लाइन की मानें तो जब बच्चे एक बार घर से भाग निकलते हैं तो धीरे-धीरे वह सीख जाते हैं कि बाहर कैसे सर्वाइव करना है। कहां काम मिल सकता है और कहां खाना। ऐसे में उनके लिए घर से भागना खेल जैसा हो गया है।

ऐसे-ऐसे केस

केस वन

दून का एक 9 वर्षीय बच्चा घर से 5 बार भाग चुका है। बच्चे के हाथ में एक साइन है। जब भी बच्चा उत्तराखंड या यूपी में मिला तो दीपिका ने सबसे पहले उसके हाथ पर बना साइन पूछा और उसे पहचान गईं। उसे रेस्क्यू कर दून लाने को कहा और परिजनों को सौंप दिया।

केस टू

यूपी का एक 14 वर्षीय बच्चा 9 बार घर से भाग चुका है। वो भागकर हर बार दून ही आता है। बच्चा हर बार यही स्टोरी सुनाता है कि उसके माता-पिता मर चुके हैं। उसके चाचा उसे मारते हैं इसलिए वह भाग गया। बच्चे की बनाई स्टोरी से दीपिका उसे पहचान जाती है, ऐसे में उसे हर बार घर पहुंचा दिया जाता है।

केस थ्री

बिहार का 10 वर्षीय बच्चा अक्सर ट्रेन में मिलता है। बच्चा यही बताता है कि उसके मामा ने उसे बेच दिया है। पुलिस से बच्चे की यह कहानी सुनते ही दीपिका बता देती है कि उसका घर कहां है और उसके घर वालों को सूचना दे दी जाती है।

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10 साल के कार्यकाल में मैं 200 से ज्यादा मिसिंग बच्चों को सर्च करवा चुकी हूं। ऐसे में अधिकतर बच्चों के नाम, पहचान, स्टोरी सभी कुछ जुबां पर रट गया है। 15 से 20 बच्चों की स्टोरी तो बार-बार रिपीट हुई है, मैं उन्हें तुरंत पहचान लेती हूं।

दीपिका पंवार, सेंटर को-ऑर्डिनेटर। चाइल्ड लाइन