बरेली (ब्यूरो)। केस-1 : हर वक्त सुनाई पड़ती है रिंगटोन
पीलीभीत बाईपास के सनसिटी की रहने वाली गीता मोबाइल पर चैटिंग ज्यादा करती हैं जिसकी वजह से उन्हें चार-पांच महीने से हर वक्त महसूस होता था कि उनका मोबाइल फोन रिंग कर रहा है। इसके चलते वह डिप्रेशन में चली गई। फिर डिस्ट्रिक्ट हॉस्पिटल के मन कक्ष में गई तो पता चला नोमोफोबिया हुआ है। उन्होंने बताया कि चार दिन काउंसलिंग कराने के बाद काफी सुधार हुआ है।

केस-2 : मोबाइल गिरा तो हो गई बीमार
सुभाषनगर के रहने वाले संजीव ने बताया कि उसकी बेटी इंटरमीडिएट की स्टूडेंट्स है। अगस्त में कुतुबखाना बाजार में उनकी बेटी का मोबाइल कहीं गिर गया था। जिसके बाद से उसकी बेटी डिप्रेशन में चली गई। उन्होंने समझाया लेकिन वे गुमशुम रहने लगी। फिर अचानक से बीमार हो गई। मन कक्ष में गए तो पता चला फोबिया है। जिसके बाद उन्होंने काउंसलिंग कराई। वहीं ट्रीटमेंट के बाद उनकी बेटी का हालत में सुधार होने लगा।

केस-3 : पबजी के चलते छोड़ी पढ़ाई
इज्जतनगर के आकांक्षा इंक्लेव कॉलोनी की रहने वाली यास्मीन ने बताया कि उसका बेटा फोर्थ क्लास का स्टूडेंट्स है। अक्सर उसका बेटा मोबाइल फोन पर पबजी खेलता रहता है। जिस चलते उनके बेटे ने पढ़ना-लिखना छोड़ दिया। जब से वह बेटे को लेकर काउंसलिंग करने पहुंची तो धीरे-धीरे सुधार हुआ है। अब वह मोबाइल का कम यूज करता है।

यूथ में बढ़ रही है डिप्रेशन और दिमागी कमजोरी
मोबाइल के ज्यादा यूज से यूथ डिप्रेशन, दिमागी कमजोरी, भूलने की बीमारी बढ़ रही है। बीते एक साल में जिला अस्पताल के मन कक्ष में तीन हजार लोगों ने काउंसलिंग कराई। इनमें ज्यादातर लोगों को नोमोफोबिया नाम की बीमारी थी। एक्सपर्ट के मुताबिक यह बीमारी ज्यादा मोबाइल फोन के यूज करने से होती है।

 


पबजी का क्रेज, रोजाना पहुंचते हैं मरीज
मन कक्ष विभाग की लेडी काउंसलर ने बताया कि एक साल में 3000 काउंसलर की मानें तो यूथ पर पबजी का क्रेज छाया हुआ है। वहीं युवा सोशल मीडिया पर लाइक और कमेंट पाने की चाहत में मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल हद से ज्यादा करते हैं। मोबाइल एडिक्टेड लोगों को हर पल भ्रम होने लगता कि उनका मोबाइल बज रहा है। इसके कारण वह मोबाइल को कई बार चेक करते हैं। यह स्थिति सूडो पैरानायड सिजोफ्रेनिया कहलाती है। जोकि दिमाग की नसों में शिथिलता आ जाने के कारण उत्पन्न होती है।

डिप्रेशन में जा रहा युवा
मोबाइल का ज्यादा यूज से नींद भी प्रभावित रहती है। फोन कहीं गुम न हो जाए, खराब न हो जाए, नेटवर्क चला गया आदि का डर युवाओं को मानसिक रोगी बना रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक यह रोग 17-24 साल के युवाओं में तेजी से बढ़ रहा है। 55 परसेंट युवा नोमोफोबिया के शिकार हो चुके हैं। जहां फीमेल की तुलना में मेल 60 फीसदी हैं।

'मनकक्ष में नशा मुक्ति केंद्र मोबाइल चलाने के नशे को दूर किया जाता है। केंद्र में काउंसलर की मदद से मरीज की काउंसलिंग की जाती है। वो भी एक दो बार नहीं बल्कि जब तक उसकी मोबाइल के आदत को दूर न किया जा सके।'
- खुश अदा, काउंसलर

'जिला मानसिक स्वास्थ्य योजना के तहत यह प्रोजेक्ट है। केंद्र में अब तक तीन हजार से अधिक लोगों की काउंसलिंग की जा चुकी है।'
-विनीत कुमार शुक्ला, सीएमओ

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