-स्मार्ट फोन की लत युवाओं और बच्चों को बना रही है मानसिक रुप से बीमार

- मंडलीय हॉस्पिटल के मोबाइल नशा मुक्ति केन्द्र में पांच महीने में तीन सौ से ज्यादा मामले

यदि आप या आपके कोई अपने का ज्यादातर समय स्मार्टफोन पर कट रहा है तो ये खतरनाक है। जिसका नतीजा ये हो रहा है कि लोगों में तमाम तरह की बीमारियां पनप रही हैं। खासकर युवाओं और बच्चों में 'मोबाइल अडिक्शन' कुछ ज्यादा है। ऐसे में यदि आप इस लत से पीछा छुड़ाना चाहते हैं तो मंडलीय अस्पताल का रुख कर सकते हैं। हॉस्पिटल के मनोरोग विभाग के तहत बनाए गए मोबाइल नशा मुक्ति केन्द्र में इस नयी लेकिन गंभीर बीमारी का प्रॉपर इलाज हो रहा है। पिछले पांच महीने में तीन सौ से ज्यादा मोबोफोबिया के शिकार लोगों की काउंसलिंग की गई। इनमें ज्यादातर यूथ व बच्चे हैं।

बन चुका है नशा

मोबाइल केन्द्र के डॉक्टर्स का कहना है कि यूथ के साथ बच्चों में मोबाइल एक नशे के रूप में पनप रहा है। जिसे दूर करने के लिए ही इस मोबाइल नशा मुक्ति केन्द्र का संचालन मंडलीय अस्पताल में किया जा रहा है। पांच महीने पहले शुरू किए गए इस सेंटर का संचालन मनोरोग ओपीडी में किया जा रहा था। लेकिन मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अब इसे अलग सेंटर में संचालित किया जा रहा है। जिससे मरीज के साथ एकांत में बैठकर उनके ऊपर चढ़े मोबाइल के नशे को काउंसलिंग के जरिए उतारा जा सके।

रोक से डिप्रेशन का डर

डॉक्टर्स का कहना है कि मोबाइल पर गेम खेलने की आदत के चलते पढ़ाई डिस्टर्ब होने पर जब पैरेंट्स अचानक से उस पर रोक लगाते हैं तो बच्चों को डिप्रेशन होता है। ऐसे में बच्चों पर दबाव बनाकर मोबाइल की लत छुड़वाने की बजाए उनकी काउंसलिंग कर धीरे-धीरे सामाजिक गतिविधियों और कौशल से जोड़ने का प्रयास किया जाता है।

क्यों पड़ी केन्द्र की जरुरत

स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक मोबाइल का ज्यादा प्रयोग करते-करते युवा, वयस्क समेत हर आयु वर्ग में नए रोग ने जन्म ले लिया है। मोबाइल का प्रयोग इस हद तक किया जा रहा है कि आंखें शुष्क हो जा रही हैं। बच्चों से मोबाइल ले लिया जाए या उन्हें मोबाइल प्रयोग से मना किया जाए तो वे आक्रामक हो जा रहे हैं। ऐसे में इनकी काउंसलिंग कर इनसे इस लत को छुड़ाने के लिए हेल्थ डिपार्टमेंट ने यह कदम उठाया है। ऐसे लोगों की काउंसिलिंग और दवाओं से इलाज संभव है।

हद से ज्यादा इस्तेमाल खतरनाक

मनोवैज्ञानिकों की मानें तो किसी भी चीज का जब हद से अधिक इस्तेमाल बढ़ जाए तो वह बीमारी बन जाती है। कुछ ऐसा ही मोबाइल में भी हुआ है, जो आज बच्चों व यूथ में नशे की तरह फैल रहा है। कोई टिक टॉक का प्रेमी है तो कोई फेस बुक, वाट्सअप तो फिर किसी को हर एक घंटे पर सेल्फी लेनी की आदत पड़ रही। इस तरह की आदतें नशा बन रही है।

यूथ व बच्चों में बढ़ते मोबाइल की लत को छुड़ाने के लिए उनके पैरेंट्स सेंटर में पहुंच रहे हैं। इस तरह के पेशेंट की संख्या लगातार बढ़ रही है। यहां डेली दो से तीन पेशेंट की काउंसलिंग की जा रही है।

डॉ। आरपी कुशवाहा, मनोचिकित्सक, मंडलीय हॉस्पिटल