हिरन का मांस खाते-खाते भेड़ियों के गले में हाड़ का एक कांटा अटक गया। बेचारे का गला सूज आया। न वह कुछ खा सकता था, न कुछ पी सकता था। तकलीफ के मारे छटपटा रहा था। भागा फिरता था-इधर से उधर, उधर से इधर। न चैन था, न आराम था। इतने में उसे एक सारस दिखाई पड़ा-नदी के किनारे। वह घोंघा फोड़ कर निगल रहा था। भेड़िया सारस के नजदीक आया। आंखों में आंसू भरकर और गिड़ गिड़ाकर उसने कहा-भइया, बड़ी मुसीबत में फंस गया हूं।

गले से कांटा निकालने के बाद मांगा इनाम

गले में कांटा अटक गया है, लो तुम उसे निकाल दो और मेरी जान बचाओ। पीछे तुम जो भी मांगोगे, मैं जरूर दूंगा। रहम करो भाई! सारस का गला लम्बा था, चोंच नुकीली और तेज थी। भेड़िये की वैसी हालत देखकर उसके दिल को बड़ी चोट लगी, भेड़िये ने मुंह में अपना लम्बा गला डालकर सारस ने चट्ट से कांटा निकाल लिया और बोला-भाई साहब, अब आप मुझे इनाम दीजिए! सारस की यह बात सुनते ही भेड़िये की आंखें लाल हो आईं।

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भेड़िये ने सारस को दिया ये ईनाम

फिर नाराजगी के मारे वह उठ कर खड़ा हो गया। सारस की ओर मुंह बढ़ाकर भेड़िया दांत पीसने लगा और बोला-इनाम चाहिए ! जा भाग, जान बची तो लाखों पाये ! भेड़िये के मुंह में अपना सिर डालकर फिर तू उसे सही-सलामत निकाल ले सका, यह कोई मामूली इनाम नहीं है। बेटा! टें टें मत कर! भाग जा नहीं तो कचूमर निकाल दूंगा। सारस डर के मारे थर-थर कांपने लगा। भेड़िये को अब वह क्या जवाब दे, कुछ सूझ ही नहीं रहा था। गरीब मन-ही-मन गुनगुना उठा-रोते हों, फिर भी बदमाशों पर करना न यकीन। मीठी बातों से मत होना छलियों के अधीन। करना नहीं यकीन, खलों पर करना नहीं यकीन।।

चंद्रधर शर्मा गुलेरी

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