ऊंची जाति का कहर

फिल्‍म चौरंगा के साथ फिल्‍म निर्माण की दुनिया में कदम रखने वाले बिकास रंजन मिश्रा ने इसमें जाति वाद की प्रथा पर कड़ा प्रहार किया है। कहानी के जरिए समाज में आज भी मानी जाने वाली इस प्रथा को पूरी तरफ से साफ करने पर जोर दिया है। हो सकता है कि यह कुछ शहरी दर्शकों को कम समझ आए लेकिन सच तो सच होता है यह कभी कम नहीं हो सकता है। डायरेक्‍टर ने यह दिखाने का पूरा प्रयास किया है कि आज भी समाज में जब कोई दलित आगे बढ़ने की कोशिश करता है तो कैसे ऊंची जाति के लोग उसे दबाने की कोशिश्‍ा करते हैं। दलितों के साहस को कुचलने का हर संभव प्रयास करते हैं।

दलित मां की चिंता

फिल्‍म में संतू जो कि बड़े सपने पालता है। वह अपने पालतू जानवर सुअर के साथ काफी खुश दिखता है। इसके अलावा वह गांव की लड़की मोना को देखकर भी काफी खुश होता है। मोना उसे स्‍कूल जाते समय रास्‍ते में स्‍माइल देती है। वहीं संतू का बड़ा भाई (रिद्धी सेन) भी काफी आत्‍मविश्‍वास से भरा होता है। वहीं उसकी मां (तनीषा चटर्जी) उसके भविष्‍य को लेकर चिंतित दिखती हैं। वह गांव में संतू के बारे में सुनकर काफी परेशान रहती है, लेकिन संतू तो इन सबसे अंजान अपनी दुनिया में मस्‍त रहता है।

Chauranga

A; Drama

DIR: Bikas Ranjan MishraCAST: Sanjay Suri, Tannishtha Chatterjee, Soham Maitramovie review: जाति प्रथा और दूषित मानसिकता पर गहरा प्रहार करती फिल्‍म चौरंगा

सेक्‍स के लिए जाति नहीं

फिल्‍म में बाल कलाकार मैत्रा और सेन ने जबर्दस्‍त अभिनय किया। उनका अभिनय पूरी तरह से कई जगह पर बिल्‍कुल रियल दिखा। इनके किरदार ने दर्शकों का ध्‍यान खींचने में का काम किया है। जिससे जातिवाद की धारणा को और ज्‍यादा उभरने का बल मिला। वहीं इस फिल्‍म में गांव के मुखिया धवल (संजय सूरी) जो कि एक दलित महिला के साथ इंटीमेट रिलेशन का मजा लेता है, लेकिन उसके लड़के को अपने पैर छूने देता है। यह कहानी काफी हद हमसे जुड़ी हुई दिखती है।

रोल काफी रियलिस्‍टिक

हालांकि समाज से इस सच्‍चाई को मिटाना आसान नही है फिर भी यह मिटाएगी। इसका श्रेय डायरेक्‍टर बिकास रंजन मिश्रा को जाता है। जिन्‍होंने संतू के संघर्ष के जरिए मिटाने का प्रयास किया। हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि बिकास मिश्रा ने काफी उलझी और वृहद काहानी को पेश किया है। इसमें सेक्‍स के अंधे पुजारी (धृतिमन चटर्जी) का रोल भी काफी रियलिस्‍टिक है। कुल मिलाकर यह फिल्‍म एक पेनफुल तरीके से बढ़ती है। यह देखना आसान नही है, लेकिन हर किसी के लिए काफी महत्‍वपूर्ण है।

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Review by : Shubha Shetty Saha

shubha.shetty@mid-day.com

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