इस बाबत कड़े निर्देश दिए
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LUCKNOW : बागपत जेल में मुन्ना बजरंगी की हत्या ने एकबार फिर यूपी के जेलों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। जेलों की पुख्ता सुरक्षा का दावा इस बात से ही हवा हो जाता है कि प्रदेश की 71 जेलों में लखनऊ सहित 24 कारागारों में सीसीटीवी लगे हैं लेकिन, बागपत सहित 47 जेल ऐसी हैं, जहां सीसीटीवी नहीं हैं। एडीजी जेल चंद्रप्रकाश ने चार व पांच जुलाई को कारागार मुख्यालय में जेल अधिकारियों की समीक्षा बैठक कर इस बाबत कड़े निर्देश दिए थे। इनमें बागपत के जेलर उदय प्रताप सिंह चार जुलाई को बैठक में आए थे।

लगातार सवाल उठ रहे थे
एडीजी ने जेल में चेकिंग व सुरक्षा के मुद्दे पर खासकर सख्ती बरतने को कहा था। जेलों में मोबाइल व अन्य आपत्तिजनक वस्तुएं पहुंचने व उनके प्रयोग को लेकर लगातार सवाल उठ रहे थे। इसी कड़ी में शासन ने चार जुलाई को सुलतानपुर में बंद अंडरवल्र्ड डान छोटा राजन के गुर्गे खान मुबारक को लखनऊ जेल स्थानांतरित किए जाने का आदेश दिया था। खान मुबारक ने सुलतानपुर जेल में मोबाइल से कई वीडियो क्लिप बना ली थीं और उल्टा जेल अधिकारियों को परेशान कर रहा था।

जेलों में क्षमता से अधिक भरे हैं बंदी

प्रदेश की जेलों में क्षमता से दो गुना तक बंदी हैं। इसके अलावा कारागार प्रशासन में अधिकारी व कर्मचारी भी नियतन के अनुपात में कम हैं। इसके चलते भी जेलों की सुरक्षा-व्यवस्था चुनौती रही है। वहीं बागपत जेल में अधीक्षक की तैनाती नहीं थी। एडीजी जेल चंद्रप्रकाश का कहना है कि जेल अधीक्षकों की कमी के चलते प्रदेश की छह-सात जेलों में जेल अधीक्षकों की तैनाती नहीं है। नोएडा के जेल अधीक्षक विपिन मिश्रा के पास बागपत जेल अधीक्षक का काम देखने की अतिरिक्त जिम्मेदारी थी। यहां जेलर उदय प्रताप सिंह 22 दिसंबर 2017 से तैनात थे।

एक साल से बागपत में था सुनील
बागपत जेल में मुन्ना का हत्यारोपी सुनील राठी 31 जुलाई 2017 से निरुद्ध है।

दहल गए दहशत फैलाने वाले
माफिया मुन्ना बजरंगी को जिस तरह बागपत जेल में गोलियों से छलनी किया गया, उसने दूसरी जेलों में बंद अन्य कुख्यात अपराधियों को भी दहला दिया। खुद को जेल में सुरक्षित समझने वाले माफिया अब अपनी सुरक्षा को लेकर परेशान हैं। अंडरवल्र्ड में बजरंगी हत्याकांड को लेकर चर्चाएं तेज हो गई हैं। सभी जेल में पिस्टल पहुंचने से लेकर मुन्ना की हत्या के पीछे गहरी साजिश की आशंकाएं जता रहे हैं। जिस प्रकार मुन्ना बजरंगी जेल से बाहर निकलने में अपनी जान को खतरा महसूस करता था, वैसे ही अन्य कुख्यात भी अपनी रंजिश व पुलिस के खतरे के चलते जेल में ही रहकर अपना नेटवर्क संचालित करने में भरोसा करते हैं। जेल की सलाखों से बाहर आने पर ऐसे अपराधी असुरक्षित महसूस करने लगते हैं। मुन्ना की हत्या के बाद जेल में बंद ऐसे कई कुख्यात दहल गए हैं।

किस जेले में कौन सरगना
विधायक मुख्तार अंसारी बांदा  
बाहुबली एमएलसी बृजेश सिंह वाराणसी
सुंदर भाटी हमीरपुर
अनिल भाटी कौशाम्बी
अनिल दुजाना बांदा
संजीव महेश्वरी उर्फ जीवा बाराबंकी
सीरियल किलर सलीम का भाई सोहराब उन्नाव

एसटीएफ व दिल्ली पुलिस बच निकला था मुन्ना
अपराध की दुनिया में मुन्ना के बढ़ते दखल के बाद वर्ष 1997 से ही स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने मुन्ना को दबोचने के लिए अपना जाल बिछाना शुरू कर दिया था। यूपी एसटीएफ ने दिल्ली पुलिस के साथ मिलकर 11 सितंबर, 1998 में दिल्ली के समयबादली थाना क्षेत्र में मुन्ना को घेर लिया था। पुलिस व मुन्ना के बीच हुई मुठभेड़ में दोनों ओर से ताबड़तोड़ गोलियां चली थीं। मुठभेड़ में मुन्ना को पुलिस की कई गोलियां लगी थीं, लेकिन इसी बीच अंडरवल्र्ड के छोटा राजन और बबलू श्रीवास्तव के नेटवर्क ने मुन्ना को राममनोहर लोहिया अस्पताल पहुंचा दिया था। पुलिस की गोलियां लगने के बाद भी मुन्ना बच गया था। इसके बाद मुन्ना प्रदेश की अलग-अलग जेलों में बंद रहा। 28 मई, 2001 को मुन्ना जमानत पर जेल से रिहा हुआ था, जिसके बाद वह फिर जबरदस्त रंगदारी में जुट गया था।

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