रांची: राजधानी सहित पूरे राज्य में प्रताड़ना की मार झेल रहे बचपन को अब कौन बचाएगा? प्रेजेंट में ये गंभीर सवाल तनकर खड़ा हो गया है। सवाल इसलिए भी बड़ा है क्योंकि झारखंड में पिछले तीन महीने से बाल संरक्षण आयोग बिना अध्यक्ष के ही चल रहा है। इससे आयोग पूरी तरह से डिफंक्ट हो गया है। इस वजह से राज्य में पीडि़त बच्चों से जुड़े मामलों की जांच तो बाधित हो ही रही है, साथ ही उन्हें कानूनी सहायता प्रोवाइड करने की प्रक्रिया भी आगे नहीं बढ़ पा रही है। वहीं आयोग के एक्टिव न होने से शहर के थाना क्षेत्रों में विभिन्न तरीके से सताये जा रहे बच्चों को रेस्क्यू कर लाने का काम भी ठप है। खुदा न खास्ता जो मामले सामने आ भी रहे हैं तो उसमें भी मदद प्रदान करना काफी मुश्किल हो रहा है। खास बात यह भी है कि इन प्रॉब्लम्स के बीच ही राजधानी में 23 अगस्त को राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग का कैम्प लगाया जा रहा है। इस कैम्प में बच्चों से जुड़े मामलों की शिकायत व अन्य प्रॉब्लम्स सुनी जाएंगी। ऐसे में आयोग के मृत हाल में रहने से मुसीबत के मारे इन बच्चों का कितना भला हो पाएगा, ये तो आयोग ही जाने।

तीन माह पूर्व ही दी थी जानकारी

बता दें कि बाल संरक्षण आयोग में अध्यक्ष समेत सभी 6 पद रिक्त पड़े हैं। आयोग की अध्यक्ष आरती कुजूर का कार्यकाल 22 अप्रैल को समाप्त हो गया। जबकि सदस्य रविन्द्र गुप्ता, भूपन साहू और अनहद लाल का टेनियोर 20 अप्रैल को ही समाप्त हो चुका है। इससे डेढ़ साल पहले आयोग की सदस्य विनीता देवी व डॉ। मनोज कुमार का कार्यकाल भी समाप्त हो चुका है। गंभीर मामला यह है कि आयोग में जो एक पद रिक्त रह गया था उसे भी नयी कमेटी के डिफंक्ट होने तक भरा नहीं जा सका। जबकि अन्य सदस्यों ने टेनियोर खत्म होने से तीन माह पहले जनवरी में ही महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय की मंत्री लुइस मरांडी व सीएम रघुवर दास को एक रिमाइंडर भेजा था, जिसमें यह साफ बताया गया था कि आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों का कार्यकाल पूरा होने वाला है। इसका पुनर्गठन किया जाना जरूरी है।

बच्चों के प्रति लापरवाह है विभाग

अध्यक्ष और सदस्यों का पद रिक्त होने से राज्य में आयोग की गतिविधियां पूरी तरह से ठप पड़ गई हैं। हालांकि, नियमानुसार नए सिरे से अध्यक्ष और सदस्यों को बहाल करने की प्रक्रिया तीन महीने पहले ही शुरू की जानी चाहिए थी। लेकिन विभाग की लापरवाही के चलते यह काम नहीं हो सका। इसका खामियाजा पीडि़त हाल में जी रहे बच्चों को भुगतना पड़ रहा है।

आयोग कार्यालय भी हुआ शिफ्ट

झारखंड राज्य बाल संरक्षण आयोग का कार्यालय भी कलेक्ट्रेट ए ब्लॉक से शिफ्ट होकर धुर्वा गोलचक्कर के समीप आर्टिजन हॉस्टल में चला गया है। अब बाल संरक्षण से संबंधित मामलों की शिकायत व उसके समाधान के लिए यहीं जाना होगा।

आयोग में इन मामलों की होती है सुनवाई

-बच्चों के घरेलु श्रम या खतरनाक कार्यो में लगाए जाने से संबंधित मामला

-बाल श्रम से मुक्त बच्चों के पुनर्वास का मामला

-एसिड हमलो से संबंधित मामले

-सड़क पर सामान बेचने वाले और भीख मांगने वाले बच्चों की फरियाद

-एचआईवी संक्रमित बच्चों के साथ भेदभाव के मामले

-गैर कानूनी तरीके से गोद लेने के मामले

-बच्चों के विरुद्ध हिंसा व अपहरण

--लापता बच्चे, स्कूल में बच्चों को शारीरिक यातनाएं

-विकलांगता से संबधित मामले आदि

वर्जन

पिछले तीन माह से कार्यकाल समाप्ति के बाद आयोग डिफंक्ट हो चुका है। आयोग के रिक्त पदों को भरने के लिए अभी तक प्रक्रिया शुरू नहीं की गयी है। इसके बाद भी अगर राष्ट्रीय बाल सरंक्षण आयोग के कैम्प में बुलाया जाएगा तो जरूर जाएंगे।

आरती कुजूर

पूर्व अध्यक्ष

राज्य बाल संरक्षण आयोग