अपनी मर्जी से विवाह का हक

यह फैसला न्यायाधीश जे बी पार्दिवाला ने सुनाया है. उन्होंने इस मामले में सुनवाई करते हुए कहा है कि अगर लड़का और लड़की दोनो मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं तो वे उन्हे विवाह की अनुमति है, क्योंकि मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के अनुसार जब कोई भी लड़की अगर रजस्वला हो जाती है या फिर 15 साल की हो जाती है तो वह मां बाप की रजामंदी के बगैर अपना जीवन साथी चुनकर विवाह रचा सकती है. उसे अपने पति के साथ रहने का भी अधिकार प्राप्त होता है भले ही उसकी आयु 18 साल से कम हो.

गैरकानूनी मानने का विकल्प भी

वहीं ऐसे ही एक दूसरे मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति एस. रवीन्द्र भट्ट और न्यायमूर्ति एसपी गर्ग ने भी एक अवयस्क लड़की के विवाह को वैध ठहराते हुए उसे अपने ससुराल में रहने की अनुमति प्रदान कर दी.अवयस्क मुस्लिम लड़कियों के विवाह के मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के विभिन्न फैसलों का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि उक्त व्यवस्थाओं से स्पष्ट है कि रजस्वला होने पर 15 वर्ष की उम्र में मुस्लिम लड़की विवाह कर सकती है. इस तरह का विवाह निष्प्रभावी नहीं होगा. बहरहाल, उसके वयस्क होने अर्थात् 18 वर्ष की होने पर उसके पास इस विवाह को गैरकानूनी मानने का विकल्प भी है

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