GORAKHPUR: दिल्ली के चर्चित निर्भया कांड के हैवानों की फांसी की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने जैसे ही मुहर लगाई गोरखपुर की निर्भया की याद भी लोगों को आने लगी। अलबत्ता यहां हालात दूसरे हैं। किसी भी मामले में दोषी को सजा दिलाने के लिए सबूत की जरूरत होती है। कोर्ट भी मौजूद साक्ष्यों के आधार पर ही सुनवाई और फिर फैसला सुनाता है। पुलिस का काम अपराध रोकना, अपराध के बाद शिकायत दर्ज करना और फिर साक्ष्य जुटाकर उसके आधार पर दोषी को सजा दिलवाने का है लेकिन जिले के अधिकतर थानेदार घटना के तुरंत बाद बिना शिकायत दर्ज किए खुद ही फैसला कर डालते हैं। रेप के ज्यादातर मामलों को झूठा बताकर पुलिस पीडि़तों को थाने से ही भगा देती है। दबाव में केस दर्ज करने वाली पुलिस भला पीडि़ता को इंसाफ दिलवाने के लिए साक्ष्य क्यों जुटाए? इस कारण पीडि़तों के इंसाफ पाने की राह बहुत ही कठिन हो जाती है। इसका जीता जागता उदाहरण है शहर के तीन चर्चित कांड।

चार दिन तक गैंग रेप

18 मार्च 2016

सहजनवां थाने से महज डेढ़ किमी। की दूरी से सहजनवां नगर पंचायत कस्बे की एक युवती को फोर व्हीलर सवार आरोपियों ने तब किडनैप कर लिया जब वह अपनी सहेली के घर जा रही थी। युवती को रास्ते से उठाने के बाद आरोपी उसे एक होटल में ले गए जहां गैंग रेप किया। इसके बाद उसकी हालत बिगड़ गई। उसने खाना-पीना छोड़ दिया और अपनी आजादी की गुहार लगाती रही लेकिन आरोपियों ने उस पर कोई दया नहीं दिखाई और चार दिनों तक गैंग रेप करते रहे। इस दौरान जब पीडि़ता की हालत काफी खराब हो गई तो उसके घर के पास छोड़कर भाग गए। पीडि़ता के घर पहुंचने पर घर वाले थाने पहुंचे। तब सहजनवां के इंस्पेक्टर के रूप में तैनात यादवेन्द्र बहादुर पाल ने पीडि़ता को झूठा बताते हुए थाने से ही भगा दिया। जब पीडि़त पक्ष ने वरिष्ठ अधिकारियों तक गुहार लगाई तो इंस्पेक्टर समझौते का दबाव बनाने लगा। मामला कोर्ट तक जा पहुंचा। काफी दबाव बनने पर छह दिन बाद 24 मार्च को पुलिस ने केस तो दर्ज किया लेकिन गैंग रेप की जगह रेप का। इसके बाद भी इंस्पेक्टर कार्रवाई से कतराता रहा। कोर्ट के आदेश पर इंस्पेक्टर पर भी कैंट थाने में केस दर्ज ि1कया गया।

मामले की लीपापोती

31 दिसंबर 2015

गोरखपुर के खोराबार स्थित फोरलेन के पास बहरामपुर में 31 दिसंबर 2015 की सुबह एक युवती की अर्धनग्न डेड बॉडी मिली। रेप की आशंका थी। युवती को छह गोली मारी गई थी और उसके चेहरे को बुरी तरह से कूच दिया गया था ताकि पहचान न हो सके। यहीं नहीं दरिंदों ने उसके प्राइवेट पार्ट में मिट्टी भर दिया था। 8 जनवरी 2016 को युवती की पहचान हुई। परिजनों ने पुलिस पर कार्रवाई का दबाव बनाया तो तीन आरोपियों को अरेस्ट भी किया गया। लेकिन एक सपा नेता के प्रभाव में आकर पुलिस ने एक आरोपी को छोड़ दिया। इस पर परिजनों ने एसएसपी से मुलाकात की। फिर तत्कालीन एसएसपी लवकुमार ने मामले के जांच के निर्देश दिए। उसके बाद मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। आज भी परिजन न्याय की आस लिए भटक रहे हैं। थाने से मिली जानकारी के मुताबिक, अभी मामला कोर्ट में लंबित है।

पुलिस ने बढ़ाया जख्म

2 जून 2015

सहजनवां के एक गांव की 23 वर्षीय युवती की शादी 2012 में हुई थी। शादी के कुछ समय बाद वह मानसिक रोग से ग्रसित हो गई। इसके बाद से वह अपने मायके में रह रही थी। 20-21 जून 2015 की शाम वह ननिहाल से गायब हो गई थी। 21 जून की सुबह सहजनवां के समधिया चौराहे के पास बेहोश हालत में मिली। प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस को बताया कि उसके प्राइवेट पार्ट से खून बह रहा था और कपड़े खून से भीगे थे। शरीर पर खरोंच के निशान थे। मौके पर पहुंची पुलिस ने पीएचसी सहजनवां में उसके प्राइवेट पार्ट में टांके लगवा दिए और उसे उसके घर छोड़ गई। घर वालों को बताया भी नहीं। युवती को नहलाने के दौरान परिवार की महिलाओं ने उसके घाव देखे तो पुलिस को जानकारी दी। पुलिस मामले से कतरा रही थी। इसी बीच युवती की हालत दोबारा खराब होने लगी तो परिजनों ने उसे जिला अस्पताल में भर्ती कराया, जहां डॉक्टर ने उसका इलाज किया। हालात गंभीर होने पर उसे मेडिकल कॉलेज रेफर कर दिया था। मामला सुर्खियों में आने के बाद पुलिस ने केस दर्ज कर लिया और आरोपियों की तलाश में जुट गई थी। अभी भी परिजनों को ठोस न्याय नहीं मिला है।

पब्लिक कॉलिंग

Shruti Singh

दिल्ली के केस को जितनी गंभीरता से लिया गया अन्य सभी केसेज को उतनी ही संवेदनशीलता के साथ देखा जाना चाहिए। अगर पुलिस सही से अपना कार्य करे तो पीडि़ताओं को निश्चत ही इंसाफ मिल सकेगा।

Klesh Haran Tripathi गोरखपुर सहित पूर्वाचल में न्याय को लेकर अभी बहुत कम जागरुकता है। सामाजिक लोक लाज के भय से कितनी ही महिलाएं न्याय के लिए अपनी रिपोर्ट दर्ज नहीं करातीं। जो करा भी देती हैं वह यहां न्याय मिलने की जटिल प्रक्रिया और राजनीतिक रसूख से तंग आकर केस वापस ले लेती हैं।

Saurabh Tripathi

सबको न्याय मिलना चाहिए। स्थानीय प्रशासन को ऐसे मामलों के प्रति सजग होना चाहिए ताकि प्रत्येक पीडि़ता को न्याय मिल सके।